रसोई गैस की मूल्य वृद्धि से उपभोक्ता लौटने लगे जलावन गोईठा की ओर-बंदना सिंह

भोजन का अधिकार है तो उसे पकाने का अधिकार भी होना चाहिए-ऐपवा

एस. पी. सक्सेना/समस्तीपुर (बिहार)। भोजन का अधिकार है तो इसे पकाने का भी अधिकार होना चाहिए। रसोई गैस की अप्रत्याशित मूल्य वृद्धि से उपभोक्ता फिर से परम्परागत ईंधन जलावन गोईठा, लकड़ी, पत्ता आदि की ओर लौटने लगे हैं।

यहाँ तक की मोदी सरकार की बहुचर्चित उज्जवला रसोई गैस योजना में मिला सिलेंडर अब खाना बनाने में नहीं बल्कि देगची, कराही रखने में ईस्तेमाल किया जाता है। उक्त बातें महिला संगठन ऐपवा के समस्तीपुर जिलाध्यक्ष बंदना सिंह ने महंगाई के खिलाफ महिला संपर्क अभियान के दौरान जिला के हद में ताजपुर प्रखंड के मोतीपुर में महिलाओं को संबोधित करते हुए कही।

महिला नेत्री ने कहा कि आज दलित- गरीब परिवार को एक सिलेंडर की कीमत करीब 1 हजार 1 सौ 50 रूपये देना पड़ता है, जो क्रय क्षमता से बाहर है। अत: सरकार को तमाम गरीब परिवारों को नि:शुल्क सिलेंडर उपलब्ध कराना चाहिए। जब भोजन का अधिकार है, तो भोजन पकाने का अधिकार भी मिलना चाहिए, ताकि हरेक परिवार आसानी से भोजन कर सके।

उन्होंने कहा कि महंगाई की मार गरीब परिवारों को झेलना पर रहा है। हरेक परिवार को दो वक्त का भोजन मिलना मुश्किल हो गया है। यूपी, दिल्ली, झारखंड आदि राज्यों से ज्यादा महंगा बिहार में बिजली है। यहां 8 रूपये 5 पैसे प्रति यूनिट के अलावे मीटर, वायर, बकाये का चक्रवृद्धि ब्याज, केवीए चार्ज समेत अन्य टैक्स उपर से वसूल किया जाता है।

प्रीपेड मीटर लगातार उपभोक्ता की रही- सही कमर भी तोड़ती जा रही है। अब गरीबों के घर से विधुत कनेक्शन काटा जा रहा है। अत: सरकार तमाम गरीबों को 2 सौ यूनिट तक बिजली नि: शुल्क दें।

उन्होंने कहा कि सिलेंडर एवं बिजली गरीबों के पहुँच से बाहर हो गया है। राशन के साथ उन्होंने सरसों तेल, दाल, नमक, चीनी आदि जन वितरण प्रणाली के माध्यम से देने की भी मांग की। इसके लिए महिला नेत्री सिंह ने संघर्ष तेज करने की बात कही।

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