तितिर स्तूप पर विश्व कल्याण की कामना के साथ की गई भगवान बुद्ध की पूजा
प्रहरी संवाददाता/सिवान (बिहार)। सिवान जिला के हद में जीरादेई प्रखंड क्षेत्र के तितिर स्तूप के पास स्थित बुद्ध मंदिर परिसर में बीते 16 मई को बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर भगवान बुद्ध की पूजा अर्चना कर विश्व कल्याण के लिए प्रार्थना की गई। मौके पर दर्जनभर गणमान्य सहित बड़ी संख्या में स्थानीय ग्रामीण रहिवासी उपस्थित थे।
इस अवसर पर स्थानीय विद्यालय के प्रधानाचार्य कृष्ण कुमार सिंह ने भगवान बुद्ध के जीवन दर्शन पर बोलते हुए कहा कि बुद्ध मानव सभ्यता के इतिहास में मील के पत्थर हैं। उन्होंने कहा कि बुद्ध दार्शनिक नहीं, दृष्टा थे। क्योंकि दार्शनिक सोचता है, दृष्टा देखता है। बुद्ध ने कभी सोचा नहीं, सिर्फ देखा।
उन्होंने बताया कि भगवान बुद्ध परम्परावादी नहीं, मौलिक रहे हैं। बुद्ध कहते हैं, किसी को मत मानो, केवल अपने अंदर देखो, इससे ही तुम्हें परम ज्ञान प्राप्त हो जायेगा। सिंह ने कहा कि बुद्ध ने किसी की आलोचना नहीं की। ईश्वर व आत्मा को नकारा नहीं, केवल बस इतना कहा कि इन बातों पर व्यर्थ बहस नहीं कर ध्यान करें।
सिवान के पाठक आईएएस संस्थान के गणेश दत्त पाठक ने कहा कि विश्व में हिंसा और सामाजिक भेदभाव बढ़ रहा है। मनुष्य विचारों से हिंसात्मक होता जा रहा है। आतंकवाद या फिर दो देशों के बीच युद्ध जैसे हालात हैं। ऐसी विकट परिस्थिति में बौद्ध दर्शन कहीं ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है।
उन्होंने कहा कि व्यक्ति के विनाशकारी विचारों को बदलना और उन पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है। उन्होंने बताया कि आज से लगभग ढाई हजार साल पहले बुद्ध ने मानवीय प्रवृतियों का विश्लेषण करते हुए कहा था कि मनुष्य का मन ही सारे कर्मों का नियंता है। इसलिए मानव की गलत प्रवृतियों को नियंत्रित करने के लिए उसके मन में सदविचारों का प्रवाह कर उसे सदमार्ग पर ले जाना जरूरी है।
अत: आज मानव-मात्र की कुप्रवृत्तियों, जैसे- हिंसा, शत्रुता, द्वेष, लोभ आदि से मुक्ति पाने के लिए बौद्ध दर्शन को समझने की जरूरत है।
शोधार्थी के के सिंह ने बताया कि काशी प्रसाद जयसवाल शोध संस्थान पटना के निदेशक डॉक्टर जगदीश्वर पांडेय सोनालिका के पृष्ठ 125 पर लिखते हैं कि दुनिया भर के इतिहासकारों के मुताबिक अब तक तीन स्थलों को कुशीनगर के रूप में पहचाना गया है।
प्रथम कसिया उत्तर प्रदेश, द्वितीय सिवान और तृतीय मुजफ्फरपुर का कुशी गांव। सिवान के ही किशुनपुर के प्राचीन कुशीनारा होने के पर्याप्त साक्ष्य मौजूद है। सर्व प्रथम साक्ष्य जीरादेई के पास हिरण्यवती यानी सोना नदी का होना है।
इसके पश्चिमी तट के निकट किशुनपुर गांव तथा इसके आसपास तीन बड़े स्तूप मिले हैं, को आज गढ़ के नाम से जाना जाता है। फिर सोना नदी के दक्षिण पश्चिम के तट पर तितिरा टोला हिरौरी में हिरण स्तूप तथा यहां प्रचुर मात्रा में काली पॉलिश व धूसर मृदभांड का मिलना भी अहम साक्ष्य है।
शोधार्थी सिंह ने बताया कि प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत पर गंभीरतापूर्वक विचार किया जाए तो सिवान के हिरण्यवती नदी के पश्चिम किशुनपुर के आसपास उनके द्वारा वर्णित प्रत्येक चीज उपलब्ध है। सर्वप्रथम अशोक द्वारा निर्मित तीन स्तूप क्रमशः तितिरा बंगरा, मुईयागढ और भरथुई गढ़। यहां प्रचुर मात्रा में बौधकालीन मृदभांड, बुद्ध मूर्ति और अन्य प्राचीन अवशेष उपलब्ध है।
सिंह ने बताया कि सिवान जिला के हद में जीरादेई प्रखंड के तीतिरा टोले बंगरा में स्थित तीतिर स्तूप का परीक्षण उत्खनन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण पटना अंचल के सहायक पुरातत्व विद शंकर शर्मा के नेतृत्व में 20 जनवरी 2018 से 20 फरवरी 2018 तक कराया गया, जिसमें प्रचुर मात्रा में पुरातात्विक साक्ष्य मिला।
जैसे एंबीपीडब्ब्ल्यू, धूसर मृद्भांड, टेराकोटा की दर्जनों मुर्तिया, स्टाम्प, टेराकोटा के खिलौने, धूपदानी, चीलम, पीली मिट्टी से बना छोटा स्तूप जैसा आवरण, शीशा की गोली, छोटा शिलालेख (जिस पर किसी लिपि में कुछ अंकित है) मौर्य कालीन ईंट से निर्मित पीलर के साथ ही अन्वेषण के क्रम में मौर्य, कुषाण व गुप्तकाल के मिश्रित ईंटों से निर्मित भगनावशेष तथा दो सौ फीट लम्बी दीवार की नींव तथा 30 फीट लम्बी 4 फीट चौड़ा दीवाल का अवशेष मिलना शामिल है।
यहां कार्यक्रम के दौरान बौद्ध दर्शन को आत्मसात कर बेहतर भारत बनाने का संकल्प लिया गया। इस मौके पर युवा चित्रकार रजनीश कुमार मौर्य, पटना के चित्रकार अविनाश कुमार, गोपालगंज के लोकपाल प्रशांत कुमार, राष्ट्रसृजन अभियान के राष्ट्रीय महा सचिव ललितेश्वर कुमार, रामदेव विचार मंच के संस्थापक अभिषेक कुमार सिंह ,स्थानीय मुखिया नूरनबाब अंसारी, आदि।
सरपंच चुन्नू सिंह, प्रमोद शर्मा, माधव शर्मा, हरिशंकर चौहान, बलिंद्र सिंह, आयुष दुबे, डॉ सुजीत सिंह, देवरिया से रविभूषण दूबे, निशांत पांडेय, हरिकांत सिंह, अंकित मिश्र, नितेश कुमार सिंह, अंकित सिंह, अशोक सिंह, धुरेन्द्र राम, सीता राम हरिजन एवं काफी संख्या में छात्र एवं छात्राएं उपस्थित थे।
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