हिंदी पत्रकारिता ने उल्लेखनीय परंपराओं का निर्वाह किया है। भाषाई पत्रकारिता ने आजादी की लड़ाई में भी अहम योगदान दिया था। आजादी के बाद पत्रकारिता लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में काम कर रही है। भाषाई पत्रकारिता की प्रासंगिकता खत्म नहीं हो सकती। यह बात प्रदेश के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कही। वे बुधवार को मुंबई के ट्राईडेंट होटल में मुंबई हिंदी पत्रकार संघ के स्मारिका विमोचन कार्यक्रम में बोल रहे थे।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हमारी भारतीय मानसिकता इस प्रकार की है कि यहां विचारों की अभिव्यक्ति पर दवाब नहीं लाया जा सकता। इस देश में आपातकाल का दौर चला, किंतु जितनी बंदिशें लगाई गई उतनी ही तेजी से विचारों ने लोगों को जागृत किया। इमरजेंसी के दौरान पूरे देश को जेल में बदल दिया गया। इसके बावजूद जितनी पाबंदी लगी, विचारों को लोगों तक पहूंचाने का प्रयास किया गया। इसलिए भाषाई पत्रकारिता की प्रासंगिकता खत्म नहीं हो सकती। विदेशों में बैठे हमारे भाई हमारी भाषा का महत्व अच्छी तरह से समझते हैं।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजी ज्ञान आधारित भाषा अंग्रेजी बन गई है, लेकिन यह भाषा अंग्रेजी ही रहेगी, यह जरूरी नहीं है। चीन में चीनी भाषा ही ज्ञान आधारित भाषा है। इसके पहले भाषाई पत्रकारिता की प्रासंगिकता पर आयोजित परिचर्चा में पूर्व सांसद और वरिष्ठ पत्रकार संतोष भारतीय, लोकमत समाचार के समूह संपादक विकास मिश्र, न्यूज 18 लोकमत के संपादक प्रसाद काथे, उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त समिति के अध्यक्ष हेमंत तिवारी, दोपहर का सामना के निवासी संपादक अनिल तिवारी और मिड डे गुजराती के पूर्व संपादक सौरभ ने हिस्सा लिया।
संतोष भारतीय ने कहा कि भाषाई पत्रकारिता का महत्व कायम रहेगा। ऐसे में जब हिंदी की खबरें अच्छी हों तो उसे अंग्रेजी वाले भी प्रकाशित करते हैं। उन्होंने कहा कि जब वे रविवार पत्रिका में थे तो उनकी खबरें अंग्रेजी पत्रिका संडे में भी अनुवाद कर छापी जाती थी। लोकमत समाचार समूह के संपादक विकास मिश्र ने कहा कि भाषाई पत्रकार को हीन भावना से ग्रसित नहीं होना चाहिए। दोपहर का सामना के निवासी संपादक अनिल तिवारी ने कहा कि पत्रकारों को मुखपत्र की तरह अपनी बात रखनी चाहिए।
भाषायी अखबारों पर 95 फीसदी पाठक निर्भर हैं, ऐसे में इसकी प्रासंगिकता खत्म नहीं होगी। न्यूज 18 लोकमत के प्रसाद काथे का कहना था कि मुंबई हिंदी पत्रकार संघ का कार्यक्रम ट्रायडेंट के रीगल रूम तक पहूंचा, इसके लिए बधाई। गुजराती मिड डे में रह चुके सौरभ ने कहा कि भाषाई पत्रकारिता का अपना महत्व है और इसे अंग्रेजी के रहमो करम पर नहीं होना चाहिए।
उन्होंने उल्लेख किया कि जब बाबरी का ढांचा गिरा था तो ज्यादातर अखबारों ने उसे बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरा लिखा, क्योंकि अंग्रेजी अखबारों में उसे इसी तरह से उल्लेख किया गया था, जबकि कुछ चुनिंदा अखबारों ने ही यह उल्लेख किया कि बाबरी ढांचा गिरा। अतिथियों का स्वागत संघ के अध्यक्ष आदित्य दूबे, महासचिव विजय सिंह, राज कुमार सिंह, विनोद यादव, अशोक शुक्ला, हरिगोविंद विश्वकर्मा ने किया। अंत में आभार प्रदर्शन सुरेंद्र मिश्र ने किया।
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