पटना (बिहार)। बहुचर्चित चारा घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री और आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव पर रांची स्थित सीबीआई की स्पेशल कोर्ट के फैसले का उनकी पार्टी और बिहार की राजनीति पर बड़ा असर होगा। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक लालू के जेल जाने से उनकी पार्टी में बगावत भी हो सकती है। लालू के जेल जाने के बाद नेताओं को एकजुट रख पाना उनके दोनों बेटों तेजस्वी यादव और तेज प्रताप के बस में नहीं। हालांकि फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए आरजेडी प्रवक्ता ने भाजपा पर निशाना साधा है। ऐसे में आरोप-प्रत्यारोप का नया दौर शुरू हो सकता है।
सूत्रों के अनुसार, आरजेडी के अंदर कुछ सीनियर नेता मौके की तलाश में हैं, जो आगे चलकर पाला बदल सकते हैं। हालांकि आरजेडी के प्रवक्ता ने ऐसी किसी भी संभावनाओं से इनकार किया है। पार्टी के नेताओं का दावा है कि तेजस्वी यादव लालू प्रसाद के उत्तराधिकारी घोषित हो चुके हैं और वह ही आरजेडी की कमान संभालेंगे। कांग्रेस में भी लालू प्रसाद के जेल जाने की स्थिति में खलबली मच सकती है। पार्टी के डेढ़ दर्जन विधायकों के पहले ही एनडीए की राज्य सरकार से संपर्क करने की चर्चा है।
तेजस्वी संभाल पाएंगे विरासत?
लालू के जेल जाने के बाद अब सबकी नजरें उनके बेटे और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर टिकी हैं। तेजस्वी ने सरकार में रहते हुए और अब विपक्ष में अपनी मजबूत स्थिति दर्ज कराई है, लेकिन राजनीतिक मोर्चे पर यह युवा नेता कितना परिपक्व है, इसकी असली परीक्षा अब होगी। बताया जा रहा है कि पार्टी के कुछ बड़े नेता उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं, जो लंबे समय से पार्टी के वफादार रहे हैं, लेकिन वह इस बात से आहत हैं कि लालू ने उन्हें दरकिनार कर अपने बेटों को आगे कर दिया।
बदलेगी बिहार की राजनीति?
लालू जब पहली बार जेल गए थे, तब सीएम का पद छोड़कर अपनी पत्नी को बिहार का सीएम बनाकर गए थे। तब उनकी पार्टी पर इसका कोई असर नहीं पड़ा था, लेकिन तब से लेकर अब हालात पूरी तरह बदल गए हैं। अंतिम बार लालू प्रसाद अक्टूबर 2013 में इस मामले में जेल गए थे, जब कोर्ट ने उन्हें दोषी करार देते हुए 5 वर्षों की सजा दी थी। बाद में उसी साल दिसंबर में उन्हें राहत मिली और उसके बाद उन्होंने अगले दो वर्षों में बिहार की राजनीति में मजबूत वापसी करते हुए नीतीश के साथ गठबंधन कर शानदार चुनाव जीत हासिल की, लेकिन नीतीश का साथ छोड़ने के बाद फिर वह हाशिए पर आ गए हैं। ऐसे में उनके सामने बड़ी चुनौती खड़ी है।
लालू का जनाधार भले ही बिहार तक सीमित हो, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में वह अहम भूमिका निभाते रहे हैं। यूपीए सरकार में रेल मंत्री रहे आरजेडी सुप्रीमो कांग्रेस के साथ मजबूती से खड़े रहे हैं और सेक्युलर राजनीति के नाम पर विभिन्न दलों को एकजुट करने की कई बार कोशिश कर चुके हैं। 2019 से पहले गैर-भाजपा दलों को एक मंच पर लाकर मोदी के लिए कड़ी चुनौती पेश करने की उनकी तमन्न अब अधर में लटकती दिख रही है।
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