बारूद के ढेर पर साकीनाका के गोदाम

साभार/मुंबई। प्रशासन की लापरवाही और सेठों के साथ मिलीभगत की कीमत हमेशा गरीब आदमी को ही चुकानी पड़ती है। सोमवार को साकीनाका के गोदामों से जब लपटें उठ रही थीं, तो उनमें कुछ मजदूरों के जिस्म ही खाक नहीं हो रहे थे, हिंदुस्तान के दूर गांवों में कुछ लोगों के सपने भी धूं-धूं कर जल रहे थे। इस हादसे में 12 लोगों की जान चली गई।

मुंबई में ऐसे कई इलाके हैं, जहां कई ऐसे गोदाम हैं, जहां बारूद के ढेर पर तमाम सपने पलते हैं। साकीनाका के खैरानी रोड पर जहां ये गोदाम मौजूद हैं, वहां कई संकरी-संकरी गलियां हैं। आपातकाल में राहत पहुंचाने की कोशिशें इन गलियों में कई स्थानों पर नाकाम साबित होती हैं। जब तक राहत पहुंचती है, तब तक बहुत कुछ नष्ट हो चुका होता है। सोमवार को फायर ब्रिगेड की गाड़ियों के साथ भी यही हुआ।

वे अटकते-भटकते इन गोदामों तक देर से पहुंच सकीं। सेठों और कारोबारियों के लिए नियम-कायदे ज्यादा मायने नहीं रखते, इसीलिए वे ऐसे स्थानों पर गोदाम बना पाते हैं और उनमें ज्वलनशील पदार्थ और तमाम खतरनाक चीजों को भी रख पाते हैं। साकीनाका के इन गोदामों में सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं देखे गए।

साकीनाका के जिस भानुशाली फरसाण मार्ट में आग लगी, उसके मालिक ने नियमों का खुले आम उल्लंघन किया था। 15 से अधिक मजदूरों से काम करवाने वाले भानुशाली ने बीएमसी को केवल 5 मजदूरों के काम करने की जानकारी दी थी। बीएमसी से मिली जानकारी के मुताबिक, आधिकारिक कागजात में फरसाण मार्ट में 5 मजदूरों की ही अनुमति ली गई थी। स्थानीय लोगों की मानें तो फरसाण के गोदाम में 12-15 मजदूर काम करते थे, जिनमें से ज्यादातर उत्तर-प्रदेश और आसपास के ही थे।

गौरतलब है कि किसी भी तरह की दुकान खोलने से पहले बीएमसी के दुकान एवं अस्थापना विभाग से मंजूरी लेनी पड़ती है। इसके तहत मजदूरों की संख्या भी बतानी होती है। तमाम गोदाम मालिक खुले आम मजदूरों की संख्या से फेरफार करते रहते हैं। एक अधिकारी ने बताया कि मजदूरों की संख्या कम बताकर तमाम नियमों का उल्लंघन किया गया होगा।

1974 से बसे इस परिसर में गालों के भाड़े लाखों रुपये में हैं। खुलेआम ऊंचाई का उल्लंघन करने वाले इन गालों पर कार्रवाई के नाम पर शायद ही कभी हथौड़ा चलता है। 1991 की डीपी में यह इलाका नो डिवेलपमेंट जोन था, लेकिन गाले बनते रहे। बीएमसी के एक अधिकारी ने बताया कि संभवत: इस इलाके को झोपड़पट्टी घोषित किया गया है। ऐसे में, यहां कार्रवाई उपजिलाधिकारी के निर्देश पर होनी है। हम जल्द ही उनसे तालमेल करेंगे।

भानुशाली प्रशासन को पूरी तरह से ठेंगा दिखाकर आसानी से अपना फरसाण मार्ट पिछले डेढ़ साल से चला रहे थे। बीएमसी के एक अधिकारी की मानें तो फरसाण बनाने और बिक्री के लिए तमाम विभागों से लाइसेंस लेने होते हैं, जिनमें मुख्य रूप से लाइसेंस विभाग, स्वास्थ्य विभाग होते हैं। लेकिन कोई अनुमति नहीं मांगी गई थी। अंदर के जिस लाफ्ट (छोटा सा हिस्सा) पर मजदूर सोकर मर गए, उसे बनाने की कोई अनुमति भी नहीं ली गई थी।

यहां बता दें कि दुकान के अंदर चिमनी सुलगाकर बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता था, जहां नियमों को ताक पर रखना सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा था। अधिकारी ने बताया कि फायर विभाग की ओर से पिछले कुछ महीनों में हमें कोई चेतावनी भी नहीं मिली थी, पहले कोई सूचना आई हो तो उसे देखना होगा। डेढ़ साल पहले फरसाण की दुकान खुलने से पहले यहां लेदर का काम होता था। दरअसल, कंपाउंड मालिक ने भानुशाली को यह जगह पिछले साल ही दी थी।

इस इलाके में कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। दरअसल, एक-दूसरे से सटे होने के साथ ही इनमें कई ज्वलनशील पदार्थ का संचय भी होता है। इससे आग लगने की स्थिति में जान बचना भी मुश्किल ही है। हर दिन करोड़ों रुपये का टर्नओवर करने वाले इन गोदामों में सुरक्षा के नाम पर शायद ही कोई उपकरण मिले। एनबीटी ने हादसे के बाद आसपास की कई गलियों का जायजा लिया, जहां कोई पुख्ता इंतजाम नजर नहीं आए।

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