ब्रह्म को पहचानने की कसौटी है शिव धनुष-पंडित निर्मल कुमार शुक्ला

एस. पी. सक्सेना/बोकारो। बोकारो जिला के हद में बेरमो प्रखंड के जारंगडीह स्थित दुर्गा मंदिर प्रांगण में चल रहे राम चरित मानस ज्ञान यज्ञ के अवसर पर मानस भारती पंडित निर्मल कुमार शुक्ला ने सीता-राम विवाह की मार्मिक व्याख्या करते हुए विशाल जनसमूह को भावविभोर कर दिया।

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हमारे जीवन का अहंकार ही शंकर भगवान का विशाल धनुष जब तक हमारे अहंकार का विघटन नहीं होगा, तब तक सीता राम का विवाह संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि अनेक लोग कहते हैं कि राजा जनक ने धनुष यज्ञ का प्रण करके उचित नहीं किया।

अगर कोई राक्षसी अपात्र व्यक्ति धनुष तोड़ देता तब तो सीता के साथ अन्याय हो जाता। ऐसा नहीं है। महाराज जनक परम विद्वान है। उन्हें मालूम है कि यह भगवान शिव का धनुष है।

पंडित शुक्ला ने कहा कि एक बार नारद को भड़काने के कारण भगवान विष्णु और शिव में भयंकर युद्ध हुआ। दोनों ने अंत में अपने अपने धनुष पर ब्रह्मास्त्र चलाया। यह देखकर ब्रह्मा ने सोचा इससे तो सारा विश्व हीं भस्म हो जाएगा, इसलिए उन्होंने श्राप देकर दोनों के धनुष बना दिए। अब इसकी डोरी ही नहीं चढ़ेगी। श्राप कैसे छूटेगा।

तब भगवान विष्णु ने धनुष परशुराम को देते हुए कहा कि इस धनुष की पूजा करो। जब मेरा पूर्ण विस्तार होगा तो यह स्वयं चलकर मेरे पास आ जाएगा। भगवान शंकर अपना जड़ धनुष राजा जनक के पूर्वज महाराज रोमपात को देते हुए कहा कि जब पूर्ण ब्रह्म का अवतार होगा तब यह धनुष उन्हीं के हाथ से टूटेगा।

आज के युवकों को राम की भूमिका का निर्वाह करते हुए इस धनुष का विखंडन करना पड़ेगा। तब तक समाज में यह दहेज रूपी धनुष टूटेगा नहीं। यानी दहेज प्रथा का निर्मूलन नहीं होगा। तब तक लाखों सीताओं के जीवन में अंधकार का साम्राज्य रहेगा।

उन्होंने कथा के प्रारंभ में ही भगवान राम भक्तों की मंगलमयी बाल लीला का वर्णन करके श्रोताओं को अपने भावनात्मक रूप से मानव अयोध्यापुरी में महाराज दशरथ के आंगन में ही उपस्थित कर दिया।

संगीत में ऑर्गन वादक प्रवीण सिंह राजपूत, जबलपुर के राकेश शुक्ल और नागपुर (महाराष्ट्र) वालों ने सुंदर भजनों के माध्यम से कथा में चार चांद लगा दिया। तबला वादक के रूप में विशाल और पैड के माध्यम से ध्रुव साहू बैतूल वालों ने वातावरण को आनंद रस से परिपूर्ण कर दिया ।

विनू सत्संग विवेक न होई राम कृपा बिनु सुलभ सोई-आचार्य पुरेंद्र

इससे पूर्व बीते 23 मार्च की संध्या प्रवचन के क्रम में आचार्य पुरेंद्र ने कहा कि जीवन में तीन बातों का होना अनिवार्य है। सत्संग, भगवत भजन और परोपकार। इनके बीच सत्संग की बड़ी महिमा है।

सत्संग का अर्थ सत वस्तु का ज्ञान, परमात्मा की प्राप्ति और प्रभु के प्रति प्रेम उत्पन्न करने तथा बढ़ाने के लिए सपूतों को श्रद्धा एवं प्रेम से सुनना यही सत्संग है। उन्होंने कहा कि जीव की उन्नति सत्संग से ही होती है।

सत्संग से उसका स्वभाव परिवर्तित हो जाता है। सत्संग उसे नया जन्म देता है। जैसे कचरे में चल रही चींटी यदि गुलाब के फूल तक पहुंच जाए तो वह देवताओं के मुकुट तक भी पहुंच जाती है। ऐसे ही महापुरुषों के सानिध्य पाकर व्यक्ति दीप उत्तम गति को पा लेता है।

इस अवसर पर यज्ञ कमेटी के सचिव बसंत ओझा ने बताया कि मानस मंदाकिनी साध्वी पूनम बाहगामा पोस्ट छावनी बस्ती उत्तर प्रदेश का प्रवचन महिलाओं की ओर से साध्वी पूनम को प्रवचन को लेकर बुलाया गया है, आदि।

ताकि श्रद्धालुओं के साथ-साथ भक्तजन उनके प्रवचन को सुनकर अपने अंतरात्मा की आवाज को समझेंगे। यज्ञ को सफल बनाने में कमेटियों का काफी योगदान देखा जा रहा है।

 290 total views,  3 views today

You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *