खतरनाक नहीं मिर्गी का इलाज- डॉ. नीलू देसाई

मुंबई। मौजूदा समय में खान-पान व रख-रखाव के कारण देश और दुनिया में बीमारियों का सैलाब आ गया है। जिसके कारण औसतन लोग किसी न किसी रोग से पीड़ित हैं। इनमें मिर्गी के रोग पर शोध कर रही पी डी हिंदुजा अस्पताल की पेडियाट्रिक न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. नीलू देसाई का नजरिया कुछ इस तरह है। हमने डॉ नीलू देसाई से असाध्य रोग मिर्गी के बारे में जानने की कोशिश की : –

डॉ. नीलू देसाई का कहना है कि मिर्गी एक साध्य और तंत्रिका से संबंधित विकार है, जिसमे अचानक दौरे पड़ते हैं। यह रोग 1000 में से 8 या 10 लोगों में पाया जाता है, इनमें 70 फीसदी मामलों में मिर्गी के दौरे बचपन से शुरू होते हैं। उन्होंने बताया कि एक अनुमान के मुताबिक पूरी दुनिया में 50 मिलियन लोग मिर्गी से प्रभावित हैं।

मुंबई के पी डी हिंदुजा अस्पताल की पेडियाट्रिक न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. नीलू देसाई ने बताया की अमूमन मिर्गी का दौरा दो तरह का होता है। इनमें एक केंद्रीय (आंशिक) और दूसरा सामान्य दौरा होता है। केंद्रीय दौरा जहां दिमाग के एक हिस्से को प्रभावित करता है, वहीं सामान्य दौरा पूरे मस्तिष्क को प्रभावित करता है। हालांकि मिर्गी का दौरा पड़ने पर बहुत तरह के शारीरिक लक्ष्ण नजर आते हैं।

साध्य रोग मिर्गी के लक्ष्ण
डॉ. नीलू देसाई ने बताया कि मिर्गी का दौरा पड़ने पर मरीज के अलग-अलग लक्ष्ण हो सकते हैं। लेकिन कुछ आम लक्ष्ण मिर्गी के दौरा पड़ने पर नजर आते हैं। कभी-कभी दौरा पड़ने पर अचानक हाथ, पैर और चेहरे की मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न होने लगता है, सर और आंख की पुतलियों में लगातार मूवमेंट होने लगते हैं। ऐसे में कई बार मरीज या तो पूर्ण रूप से बेहोश हो जाता है, या आंशिक रूप से मुर्छित होता है, ऐसे में पेट में गड़बड़ी, जीभ काटने और असंयम की प्रवृत्ति देखने को मिलती है।

इतना ही नहीं मिर्गी के दौरे के बाद मरीज उलझन में होता है, नींद से बोझिल और थका हुआ महसूस करता है। इस तरह के दौरे के कारणों के बारे में डॉ देसाई ने बताया कि मनुष्य का मस्तिष्क लाखों तंत्रिका कोशिकाओं से बना है, जो विभिन्न क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं। मस्तिष्क का काम न्यूरॉन्स के सही तरह से सिग्नल देने पर निर्भर करता है।

लेकिन जब इस काम में बाधा उत्पन्न होने लगता है, तब मस्तिष्क की कोशिकाओं में दुश्वारी शुरू हो जाती है। इसके कारण मिर्गी के मरीजों को जब दौरा पड़ता है तब उसका शरीर अकड़ जाता है, बेहोश हो जाते हैं, कुछ वक्त के लिए शरीर के विशेष अंग निष्क्रिय भी हो जाते हैं आदि। उनहोंने कहा की मिर्गी के होने के सही कारण के बारे में बताना मुश्किल है।

कुछ कारणों से मस्तिष्क पर असर पड़ सकता है, जैसे- सिर पर किसी प्रकार का चोट लगने के कारण, जन्म के समय मस्तिष्क में पूर्ण रूप से ऑक्सीजन का आवागमन न होना, ब्रेन ट्यूमर, दिमागी बुखार (meningitis) और इन्सेफेलाइटिस (encephalitis) के इंफेक्शन का प्रभाव भी हो सकता है। क्योंकि ब्रेन स्ट्रोक होने पर ब्लड वेसल्स को क्षति पहुँचती है। न्यूरोलॉजिकल डिजीज जैसे अल्जाइमर रोग, जेनेटिक कंडीशन, कार्बन मोनोऑक्साइड के विषावतता के कारण भी मिर्गी का रोग होता है। इसके अलावा ड्रग एडिक्शन और एन्टीडिप्रेसेन्ट के ज्यादा इस्तेमाल होने पर भी मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ सकता है।

कैसे होगा मिर्गी का निदान
मिर्गी के निदान के बारे में डॉ. देसाई का कहना है कि यदि किसी व्यक्ति को 24 घंटे के दौरान 2 या उससे अधिक बार दौरे पड़ते हैं तो मिर्गी की जाँच की जरुरत पड़ती है। मिर्गी रोग का निर्धारण मरीज के मेडिकल हिस्ट्री को देखकर ही पता लगाया जा सकता है। इसके अलावा मरीज के घरवाले या दोस्त परिजन मरीज के दौरे के समय की हालत और शारीरिक प्रक्रिया में बदलाव के बारे में सही जानकारी दे सकते हैं।

या डॉक्टर मरीज के पल्स रेट और ब्लड प्रेशर को चेक करने के साथ-साथ न्यूरोलॉजिकल साइन को भी एक्जामीन करते हैं। इसके अलावा डॉक्टर इस रोग का पता ईईजी (electroencephalogram (EEG), सीटी स्कैन या एमआरआई (CT scan or MRI) और पेट positron emission tomography (PET) scan) के द्वारा लगाते हैं।

मिर्गी का उपचार संभव
मिर्गी के रोग का दो तरह से उपचार किया जा सकता है, एक तो दौरे के समय सीजर को कंट्रोल में करके। इसके लिए एन्टी एपिलेप्टिक ड्रग (anti-epileptic drug (AED) थेरपी होती है या फिर सर्जरी होती है। डॉ. देसाई के अनुसार जिन लोगों पर ये ड्रग काम नहीं करता, उन्हें सर्जरी करने की सलाह दी जाती है, ऐसा कम होता है। बच्चों के बारे में डॉ. का कहना है कि मिर्गी के साथ बच्चा सामान्य जीवन जी सकता है। बशर्ते उस पर किसी तरह के खानपान आदि का प्रतिबंध न लगाया जाए। इसके अलावा थोड़ा ध्यान दें तो मिर्गी से पीड़ित बच्चे तैराकी और साइकिलिंग में भी शामिल हो सकते हैं।

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