प्रहरी संवाददाता/पेटरवार (बोकारो)। आवाज के बादशाह भारतीय फिल्म इंडस्ट्री (Film Industry) के सदाबहार पार्श्वगायक मोहम्मद रफी का जन्म 24 दिसंबर 1924 को हुआ था। उन्होंने 20 वर्ष की उम्र में 1944 में फिल्म जगत में गायन शुरू किया, जो अनवरत 1980 के मध्य तक चलता रहा।
मात्र 55 वर्ष की उम्र में 31जुलाई 1980 में मो० रफी हम सब को अलविदा कह गए।उन्होंने अपने गायकी कार्यकाल में कोई 26 हजार गानों को अपनी सुरीली आवाज से पिरोया है। सर्वप्रथम रफी ने 1945 में फिल्म ‘गांव की गोरी’ में “अजी दिल हो काबू में तो दिलदार की ऐसी तैसी” से शुरू किया था।
महात्मा गांधी की हत्या के बाद 1948 में राजेंद्र कृष्ण द्वारा लिखे गीत सुनो सुनो ये दुनियां वालों बापू की अमर कहानी को उन्होंने आवाज दिया। फिर तो फिल्म दोस्ती के सभी गाना हिट और कर्णप्रीय साबित हुआ।
बड़ी देर भये नंदलाला, कौन परदेसी तेरा दिल ले गया, ओ दूर के मुसाफिर हमको भी साथ ले ले, चली चली रि पतंग मेरी चली रि, खिलौना जानकर तुमतो, ये दुनियां ये महफिल, मेरे महबूब तुझे सलाम, ओ मेरी महबूबा, नफरत की दुनियां छोड़ आज तूं प्यार की दुनियां में, पत्थर के सनम तुझे हमने, क्या मिली ये ऐसे लोगों से, आदमी मुसाफिर है, जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा, आदि।
मेरे मितवा मेरे गीत रि, आया रि खिलौने वाला खेल, धक धक से धड़कना सीखा दे, नागन सा रूप है तेरा, तेरे इश्क का मुझपर हुआ ये असर है, ओ फिरकी वाली तूं कल फिर आना, शादी के लिये राजामंद कर ली, मैं जट यमला पहला दीवाना, मस्त बहारों का मैं आशिक, ये रात है प्यासी प्यासी, एक बंजारा गाए जीवन के गीत सुनाए, बहारों फूल बरसाओ, तेरी आंखों के सिवा दुनियां में रखा क्या है आदि हजारों गाने लोकप्रिय और कर्णप्रिय हैं। जिसका वर्णन संभव नहीं।
दिवंगत रफी साहब की जयंती के मौके पर 24 दिसंबर को ऑनलाइन उन्हें श्रद्धा-सुमन अर्पित किया गया। श्रद्धा सुमन अर्पित करने वालों में मेघदूत रेडियो लिस्नर्स क्लब के उपाध्यक्ष बेरमो से अजीत जयसवाल, रामाधार विश्वकर्मा, अमित छाबड़ा, अनिल पाल, निरंजन दत्त, लुधियाना से अध्यक्ष मंजीत छाबड़ा, नैनू छाबड़ा, बिनु छाबड़ा, रांची से मो नौशाद खान, गुजरात से बिपिन गुप्ता, चांदनी पटेल, महाराष्ट्र से सुनैना, धनबाद से रामचंद्र गुप्ता आदि शामिल हैं।
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