उपेक्षा का दंश झेल रहा है टीटीपीएस ललपनियाँ का शहीद पार्क

ममता सिन्हा/तेनुघाट (बोकारो)। 210×2 मेगावाट क्षमता की लाभ में चलने वाली झारखंड सरकार (Jharkhand government) की एकलौती विद्युत उत्पादक प्रतिष्ठान तेनुघाट थर्मल के निर्माण के क्रम में दुर्घटनाओं में जान गंवाने वाले दर्जनों कामगारों के स्मृति में टीटीपीएस ललपनियाँ के जीरो पॉइंट में लुगू पहाड़ के तलहटी पर मुखपथ के किनारे स्थित शहीद पार्क उपेक्षा और अपमान का पीड़ा झेल रहा है।

इस पार्क के निर्माण का उद्देश्य निर्माण के क्रम में दुर्घटनाओं में मृत कामगारों के बलिदान को सम्मानित करना रहा है। आज इस पार्क की बदतर स्थिति को देखकर टीटीपीएस के सक्षम पदाधिकारियों के निम्न स्तरीय सोच का एहसास हर किसी को हो रहा है।

ज्ञात हो कि तेनुघाट थर्मल के ललपनियाँ में गांधी, अंबेडकर, भगवान बिरसा सहित राजस्थान के भामाशाह का स्मारक बना हुआ है। यह सारे स्मारक काफी हद तक सुसज्जित एवं सुव्यवस्थित है। लेकिन निर्माण के क्रम में जान गंवाने वाले लोगों की याद वाली उपर्युक्त शहीद पार्क प्रबंधन की अनदेखी का शिकार है।

जानकार बताते हैं कि शहीद कामगारों की याद में शहीद पार्क के निर्माण करने के पक्ष में प्रबंधन कभी नहीं रही है। ठीकेदार मजदूर यूनियन (एटक) के आंदोलन के फलस्वरुप मई 1996 में हुए त्रिपक्षीय समझौता में उक्त शहीद पार्क का निर्माण करने की यूनियन की मांग को प्रबंधन ने स्वीकार किया था।

किंतु समझौता को लागू नहीं किया गया। तब सरकार के आदेश पर सहायक श्रमायुक्त बोकारो ने टीटीपीएस के महाप्रबंधक, उप महाप्रबंधक एवं कार्मिक पदाधिकारी पर तेनुघाट सिवील कोर्ट में आपराधिक मुकदमा दर्ज किया। जिसका एलइओ केस नंबर 129/99 है।

मुकदमे की कार्रवाई की गंभीरता को देख कर चार वर्ष पूर्व वर्ष 2018 में शहीद पार्क का निर्माण का काम शुरू किया गया, लेकिन निर्माण कार्य पूरा भी नहीं हुआ कि वर्ष 2020 के बरसात में पार्क का एक हिस्सा धंस गया।

धंसे हुए हिस्से का जीर्णोद्धार के लिए प्रक्कलन बनाया गया, किंतु प्राक्कलन की स्वीकृति की तकनीकी प्रक्रिया पूरा होते-होते वर्ष 2021 का बरसात आ गया। इस बरसात में पार्क के ग्रिल सहित बचा हुआ हिस्सा भी पानी के साथ बह गया।

शहीद पार्क के निर्माण के लिए सदैव प्रयासरत् रहने वाले ठीकेदार मजदूर यूनियन के महासचिव एवं झारखंड आंदोलनकारी इफ्तेखार महमूद ने 28 अगस्त को बताया कि शहीद पार्क बनाने के लिए तेनुघाट थर्मल प्रबंधन कानूनी रूप से बाध्य है।

प्रबंधन के लोग एक अच्छा शहीद पार्क बनाने की बात तो हमेशा करते हैं, किंतु चार साल में भी निर्माण कार्य अधूरा है। महमूद ने कहा कि तेनुघाट थर्मल में काम होने के बाद प्राक्कलन स्वीकृत होने की प्रैक्टिस है, किंतु उपर्युक्त शहीद पार्क के मामले में प्राक्कलन स्वीकृति के प्रत्याशा में पार्क के अस्तित्व को ही समाप्त किया जा रहा है।

यूनियन महासचिव ने कहा कि पिछले एक साल में दस-दस, पन्द्रह-पन्द्रह लाख रुपए की लागत का ऐसे ऐसे कार्यादेश जारी किए गए हैं, जिनकी कोई जरूरत दिखलाई नहीं पड़ती है। किंतु शहीद पार्क का प्रक्कलन काम होने के लायक़ भी तैयार नहीं किया जाता है।

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