हर मौत की जिम्मेवार है सरकार, हम तो पूछेंगे सवाल-माले
एस.पी.सक्सेना/समस्तीपुर (बिहार)। कोविड -19 और अन्य संदर्भों में मारे गये लोगों का शोक मनाने का देशव्यापी अभियान “अपनों की याद में” के मौके पर 20 जून की संध्या समस्तीपुर शहर (Samastipur City) के ओभर ब्रीज चौराहा स्थित कर्पूरी स्थल पर आइसा, इनौस, ऐपवा एवं भाकपा माले (Bhakpa Male) के कार्यकर्ताओं ने संयुक्त रूप से मोमबत्ती जलाकर कोविड महामारी के तमाम मृतकों को श्रद्धांजलि दिया।
इस दौरान उपस्थित लोगों ने कोविड एवं अन्य संदर्भों में मरे नयानगर निवासी पत्रकार प्रशांत प्रियदर्शी, विद्यापतिनगर निवासी पत्रकार बालाजी तिवारी, समस्तीपुर शहर निवासी मार्क्सवादी चिंतक डाक्टर शंकर प्रसाद यादव, अधिवक्ता राम भरोश प्रसाद सिंह, डॉ आर आर झा, विधान पार्षद हरिनारायण चौधरी, कवि कैफ अहमद कैफी, सरोजनी गली निवासी राम स्वार्थ महतो, आप नेता रोहित सिंह, वीरसिंहपुर निवासी संत पाल स्कूल के संस्थापक पीपीएन सिंह, जटमलपुर निवासी विधुत कार्यपालक अभियंता देवेंद्र राम, वारिसनगर चंदौली निवासी सेवानिवृत शिक्षक रामनरेश राय, हांसा निवासी मोहम्मद नसीब, ताजपुर के कृषि सलाहकार सुरेन्द्र कुमार, मोतीपुर निवासी शोभा देवी, युवा ई० चंदन कुमार समेत जिले के सैकड़ों मृतकों की तस्वीर हाथों में लिए नम आंखों से मोमबत्ती जलाकर अपनों को याद किया।
कार्यक्रम में रेल कर्मी संतोष कुमार निराला, आइसा के सुनील कुमार, इनौस के मिथिलेश कुमार, ऐपवा के बंदना सिंह, उपेंद्र राय, नीलम देवी, प्रमिला देवी, माले के सुरेन्द्र प्रसाद सिंह, मो. सगीर, मनोज शर्मा, विश्वनाथ गुप्ता, सुखदेव सहनी, अनील चौधरी, द्रक्षा जबीं आदि ने नेतृत्व किया। मौके पर अपने अध्यक्षीय संबोधन में माले जिला सचिव प्रोफेसर उमेश कुमार ने कहा कि एक ओर कोविड के दौरान लचर स्वास्थ्य व्यवस्था मसलन अस्पताल, बेड, चिकित्सक, एंबुलेंस, वेंटिलेटर, आक्सीजन सिलेंडर, दवा आदि के आभाव में बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो गई। दूसरी ओर पिछले साल लॉकडाउन में पैदल घर लौटते मजदूर, भूख से खत्म हुए बच्चे- बुजुर्ग, तुफान, बाढ़, सुखाड़ में खत्म हुए लोग, नफरत या झूठ से उकसाये भीड़ की हिंसा में मारे गये लोग, सांप्रदायिक, जातिगत या पितृसत्तात्मक हिंसा में मारे गये लोग, पुलिस दमन में मारे गये लोग, सीवर की सफाई करते हुए मारे गये सफाईकर्मी आदि को उनके परिजन न तो अंतिम दर्शन कर पाये और न ही सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार किया जा सका।
उन्होंने कहा कि मृतकों को कफन तक नसीब नहीं हुए। सरकारी नाकामी के कारण शव को गंगा से लेकर अन्य जगह फेंके गये। शवों को कुत्ते, चील, कौए नोंचते दिख रहे थे। अधजले शव को ईधर- उधर फेंका जा रहा था। एक- एक गड्ढे में कई शव डाले जा रहे थे। पुल पर से शव फेंके जा रहे थे। मौत के आंकड़े छुपाये जाने को लेकर संस्कार किये गये शवों के उपर से रामनामी चादर सरकार खींचवा रही थी। सरकारी देखरेख में मानवता तार- तार हो रहा था और मृतक के परिजन चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे।
ऐसे में भाकपा माले ने अन्य दलों, संगठनों को साथ लेकर हर गमों को बांटने, अपनों को याद करने, सम्मान देने, श्रद्धांजलि देने के लिए बीते 13 जून से प्रत्येक रविवार को श्रद्धांजलि देने का कार्यक्रम शुरू किया है। उक्त कार्यक्रम इसी का हिस्सा था। आइसा के सुनील कुमार ने तमाम सामाजिक एवं राजनीतिक दलों समेत छात्र, नौजवान, महिला, किसान, मजदूर, कर्मचारी, व्यवसायी, बुद्धीजीवी, पत्रकार समेत सभी तबकों से इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की अपील की। ऐपवा के बंदना सिंह ने कहा कि अपनों को याद करने का यह बेहतर तरीका है। इसे पंचायत स्तर तक फैलाना चाहिए।
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