बुलंद विरासत का वट वृक्ष है बिहार-प्रिंस राज़

मृत्युंजय कुमार/उजियारपुर(समस्तीपुर)। 22 मार्च का दिन बिहार दिवस है अर्थात आज ही के दिन 22 मार्च 1912 को बिहार राज्य (Bihar State) की स्थापना हुई थी। प्रशासनिक दृष्टि से बिहार भारत का एक राज्य है। लेकिन, यह मात्र एक सीमा के अंदर सिमटे विभागों का नाम भर नहीं है। यह एक ऐसा भूखंड है जो अध्यात्म से अर्थशास्त्र तक ,ज्ञान से विज्ञान तक के लिए विचार भूमि के रूप में इसकी चर्चा होती रहती है। भौगोलिक क्षेत्रफल तथा जनसंख्या के दृष्टिकोण से तो बिहार भारत में अपना विशिष्ट महत्त्व रखता ही है। बुद्धि और वैभव के साथ ही प्रकृति की अनुपम सुंदरता ने भी इसे एक अलग पहचान दी है।
यहां का मृदा अत्यंत उर्वर है तो नदियों का यहां संसार है। मतलब प्रकृति भी अपने वैभव से इसके स्वरूप को सुंदर बना रही है। तभी तो यहां की मिट्टी और वातावरण में सभी ऋतु ओं का आनंद देखने को मिलता है। प्रकृति ने तो बिहार को अपनी ओर से खूब सजाया और अपने तमाम उत्पादों से नवाजा है। मगर इच्छाशक्ति की कमी और कुछ राजनीतिक कुंठा ने बिहार को प्रगति के मार्ग पर चलने से रोका भी है।
बिहार का इतिहास भी अत्यंत गौरवशाली और वैभवशाली रहा है। वैसे बिहार के बारे में चंद शब्दों या वाक्यों में बहुत कुछ कहा नहीं जा सकता है। छोटे से भाग में इसे समेटना संभव नहीं है। बिहार की पावन भूमि में ही गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। भगवान महावीर ने शांति का संदेश यही दिया था। यह शांति की धरती के रूप में स्थापित है। चंद्रगुप्त, अशोक, शेरशाह, गुरु गोविंद सिंह, वीर कुमार सिंह, देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद, डॉ श्रीकृष्ण सिंह, लोकनायक जयप्रकाश नारायण सरीखे महान विभूतियों की धरती बिहार क्रांति की भी भूमि रही है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी चंपारण आंदोलन का बिगुल यहीं से फूका था। लोकनायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति का उद्घोष यहीं से हुआ था। जिसने संपूर्ण भारतवर्ष को जगा दिया था।
तमाम विशेषताओं के बीच कुछ विडंबना कभी-कभी मायूस अवश्य करती है, लेकिन बिहार से झारखंड के अलग हो जाने के बाद खनिज बहुल क्षेत्र झारखंड (Jharkhand) में चले जाने के बाद बिहार के पास केवल उर्वरा भूमि तथा नाम मात्र के कुछ उद्योग शेष बच गए। प्रकृति का प्रकोप, कभी अतिवृष्टि, तो कभी अनावृष्टि के रूप में प्रकट होता रहा है। गरीबी, बेरोजगारी जैसी अनेक समस्याएं स्थिति की गंभीरता को बढ़ा रही है। रोजी- रोजगार की तलाश में बेरोजगारों का अन्य राज्यों में पलायन जारी है। अब केवल कृषि भूमि ही एकमात्र मूल साधन है जिस पर बिहार की कुल जनसंख्या के 80 प्रतिशत आबादी निर्भर है।
बिहार की वर्तमान दशा के लिए कुछ कारण अवश्य ही उत्तरदाई है। उसमें अधिक उत्तरदाई राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और विकास के बाधक तत्व भी हैं। फिर भी हमारा बिहार प्रदेश कृषि एवं कृषि आधारित उद्योगों से समृद्ध हो सकता है। इसकी संभावनाएं तो आज भी भरपूर है। आज बिहार की प्रतिभाओं के बल पर देश चहुमुखी विकास के पथ पर अग्रसर है। सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक प्रगति की ओर बिहार के लोग निरंतर विकास के नए प्रतिमान स्थापित कर रहे हैं। आशा की जानी चाहिए कि निकट भविष्य में बिहार देश के अग्रणी राज्यों में अपना स्थान बना लेगा तथा राष्ट्र के विकास की प्रक्रिया में सार्थक एवं सक्रिय भूमिका अदा करेगा।
हर बिहारी का यह सपना है कि वह बिहार को इतना खुशहाल और संपन्न देखें जितना प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास में बिहार को आर्थिक प्रशासनिक और सांस्कृतिक रूप से धनी और संपन्न दिखाया गया है। एक प्रश्न बार-बार कौंधता है कि आखिर हमारा बिहार कब आत्मनिर्भर, आत्मसमर्पण और खुशहाल बनेगा? आखिरकार इसका चौमुखी और बहुमुखी विकास कैसे और कौन करेगा? बिहार और बिहार वासियों की गरिमा और प्रतिष्ठा कब स्थापित होगी? वर्ष 1912 को बिहार राज्य की स्थापना की घोषणा से लेकर आज तक का इतिहास ना जाने क्या क्या बता रहा है।
जिस प्रदेश में गंगा, सरयू, गंडक, बागमती, कोसी, पुनपुन, फल्गु, सन जैसी नदियां बहती है। उस प्रदेश में कभी आकार तो कभी भयावह बाढ़ से प्रदेश और जनता पिछड़ ती रही है। इसके पानी और इसके द्वारा लाई गई उपजाऊ भूमि का कभी सही उपयोग हुआ ही नहीं। इन्हें प्रकृति के भरोसे एवं जनता के भाग्य के भरोसे छोड़ देना कतई उचित नहीं है। इतना ही नहीं विशालतम वन क्षेत्रों में उपयोगी वनों की सुधि लेना समय की मांग है। साल, शीशम, सेमल, तुन और लाख जैसी वनस्पतियां फिर से हमारे लिए कुबेर का खजाना बन सकती है। धान, गेहूं, मक्का, जौ, मरुआ, ज्वार, बाजरा, गन्ना, जूट, तिलहन, दलहन, आलू, तंबाकू जैसी फसलों का कभी रिकॉर्ड उत्पादन करने वाला बिहार फिर से धन्य- धान्य से पूर्ण हो सकता है ।
प्रदेश का उद्योग धंधे या तो बंद पड़ गया है अथवा बंद होने की स्थिति में है। नए उद्योग धंधे लगाने वाले बिहार में निवेश नहीं कर रहे है। उन्हें रिझाने की आवश्यकता है। यातायात के मामले में राष्ट्रीय राजमार्ग का भी कार्य चल रहा है। राजकीय मार्ग ग्रामीण सड़क निर्माण युद्ध स्तर पर होना बाकी है। जनसंचार के क्षेत्र में जहां पूरा भारत क्रांति के दौर से गुजर रहा है वहीं बिहार के सुदूर गांव और खेत खलिहान में मोबाइल टावर लग गए हैं। कभी ज्ञान के क्षेत्र में भारत विश्व गुरु या भारत को विश्व गुरु बनाने वाला तो बिहार ही था। आज बिहार के बच्चे अन्य प्रदेशों को शिक्षा प्राप्त के लिए सबसे अधिक धन चुका रहे हैं। कभी पटना विश्वविद्यालय से ऑक्सफोर्ड में उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाले का साक्षात्कार नहीं लिया जाता था। यह वही विहार है जहां से कभी हिंदी पत्रकारिता को दिशा मिलती थी। पाटलिपुत्र, कुम्हरार, भिखना पहाड़ी, हरमंदिर, गोलघर, खुदाबख्श पुस्तकालय, जालान का किला, पादरी की हवेली, पटना संग्रहालय, सदाकत आश्रम, सेफ़ की मस्जिद, सोनपुर का मेला, मुंगेर का किला, बोधगया, वैशाली, नालंदा, राजगीर, बनगांव, महसी, पावापुरी, मनेर, बिहार शरीफ, सासाराम, बरौनी, बाल्मीकि नगर, भागलपुर, दरभंगा आदि ऐतिहासिक और पर्यटन स्थलों में बिहार का बुलंद विरासत छुपा हुआ है
जब अशोक और उनके पुत्र एवं पुत्री बौद्ध धर्म के प्रचार और प्रसार के लिए श्रीनगर, नेपाल और अफगानिस्तान के अनेकों स्थानों के स्थापना कर सकते हैं, तो आज बिहार के लोग नवीन बिहार के निर्माण क्यों नहीं कर सकते? यह हर क्षेत्र के महान विभूतियों की साधना भूमि रही है। जिसमें प्रेरणा देने की शक्ति है। ऐसे नए बिहार, संपन्न विहार, सुंदर विहार और सामर्थ्यवान विहार बनाने की आवश्यकता है। बिहार के लोगों से एक बार फिर से बिहारी पन का एहसास दिलाने की आवश्यकता है और आवश्यकता है सिर्फ नए बिहार के निर्माण की शुरुआत करने की। हमारी वर्तमान परिस्थिति थोड़ी देर के लिए बेचैन कर सकती है लेकिन विचलित नहीं। कारण हम बिहार के लोग हर हालात से जूझने की माद्दा रखते हैं लेकिन नए बिहार के निर्माण को मुद्दा नहीं बना पाते हैं। समय की मांग है कि हम स्वयं को जाने और पहचाने। बिहारी प्रतिभा और क्षमता का कुछ अंश, हमारी विपुल संपदा का सारांश के साथ ही प्राकृतिक सौंदर्य का उपयोग समृद्ध बिहार के निर्माण के लिए हो।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की चंद पंक्तियों के साथ ही समस्त बिहार वासियों को बिहार दिवस की हार्दिक शुभकामना
चल अतीत की रंगभूमि में स्मृति- पंखों पर चढ़ अनजान ,
विकल चित सुनती तू अपने चंद्रगुप्त का क्या जय गान?
घूम रहा पलकों के भीतर स्वप्नों सा गत विभव विराट?
आता है क्या याद मगध का सुरसरि! वह अशोक सम्राट?
सन्यासिनी – समान विजन में कर कर गत विभूति का ध्यान ,व्यथित कंठ से गाती हो क्या गुप्त वंश का गरिमा -गान ?
गूंज रहे तेरे इस तट पर गंगे !गौतम के उपदेश –
ध्वनि त हो रहे इन लहरों में देवी! अहिंसा के संदेश।

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