मोबाइल के डिब्बे में समाया संसार

मुंबई। लंबे शोध के बाद ग्राहम बेल ने जब टेलीफोन का ईजाद किया था, तो शायद उन्होंने सोचा भी नहीं था कि इसकी आने वाली नस्लें (मोबाइल) स्लिम-टिम होने के साथ म्यूजिक, कैमरा, कंप्यूटर और सब कुछ अपने अंदर ठूस लेगी। बहरहाल आवश्यकता ही आविष्कारों को जन्म देती है, कभी लोगों को टेलीफोन की जरूरत थी अब मोबाइल फोन का जुनून है। मोबाइल धारकों का गुस्सा उस समय देखते बनता है, जब वे नेटवर्क से बाहर हों, या फिर किसी ऐसे स्थान या काम में व्यस्त हों जहां फोन उठाना उचित नहीं।

पिछले सप्ताह की बात है कि सबका साथ सबका विकास का दावा करने वाले महामहीम ने विशेष मीटिंग के लिए एक मल्टीप्लेकस में अपने कारोबारी मित्रों को बुलाया था। इस दौरान वे खुद मल्टीप्लेकस के कमफर्ट रूम में (लघु) शंका निवारण के लिए गए, उस समय उनके मोबाइल पर एक पवित्र श्लोक की रिंगटोन सुनाई पड़ी, इत्तेफाक से उनके बगल में उनके सलाहकार और अमित भाई भी थे।

अमित भाई रिंग टोन की सोच के सागर में गोता लगा रहे थे कि मोबाइल में रिंगटोन और कॉलर टाून्स की जुड़वा संतानें कब लोगों की जरूरत बन गईं, जिसके चलते इसका जन्म हुआ ? असमय फोन घनघनाने के कारण बाजू वाले एक और सज्जन यानी शर्मा जी थोड़ा असहज दिखे। तभी कान से जनेऊ उतारने के बाद शाह ने अशुद्ध अशौच वातावरण में पवित्र मंत्र के गुंजित होने पर ‘सॉरी’ बोलने का शिष्टाचार भी निभाया।

जब यह सब महामहीम से देखा न गया तो उन्होंने कहा, भइये ऐसी स्थिति में जब आप मौन साध लेते हो, तो बेचारे मोबाइल को भी साइलेंट मोड में डाल दिया होता- वहीं अपना बड़प्पन उड़ेलते हुए शाह ने सलाह दे डाली। बता दें कि ग्राहम बेल ने जब फोन का ईजाद किया था, तो शायद उन्हें यह इल्म नहीं होगा, कि इसकी आने वाली नस्लें (मोबाइल) स्लिम-टिम होने के साथ म्यूजिक, कैमरा, कंप्यूटर सब कुछ अपने अंदर ठूंस लेगी ! बेस फोन अब भी बुजुर्गों की तरह घर बैठे ट्रिन-ट्रिनाता (भुनभुनाता) रहता है। प्रायः डेड भी हो जाता है। रिंगटोन के मामले में शर्मा जी का पहला अनुभव श्मशान में घटित हुआ।

पेड़विहीन स्थान में अचानक कोयल की कूक पर भौचवका इधर उधर निहार रहे थे कि निकट बैठे ‘गमगीन’ भाई साहब ने जेब से फोन निकाल कर मुस्कराते हुए कहा कि यह मेरे मोबाइल की रिंगटोन है। मंत्रों, कर्णप्रिय धुनों और शास्त्रीय आवाजों को इस घुमंतू डिबिया में कैद करना सांगीतिक क्रांति नहीं, एक जुनून है। ये संगीत बस उस इंतजार के लिए परोसा जाता है, जब तक हरा बटन दबाया न जाए।

इस पर शर्मा ने बताया कि बिना किसी बोधि वृक्ष के नीचे बैठ मुझे यह ज्ञान हुआ है, कि रिंगटोन और कॉलर टून्स क्षणभंगुर और नश्वर होते हैं। बचना ऐ हसीनो के रिलीज होते ही सिंह इज किंग (पंच तत्व में) विलीन हो जाता है। उन्होंने कहा कि मोबाइल का सर्वोत्तम उज्जवल पक्ष यह भी है कि भले ही कॉल न अटेंड की जाए, उसका धारक ‘बाथरूम’ में होने की मजबूरी नहीं जताता।

गपशप अनावश्यक सूचनाओं की जानकारी के अलावा किसी न किसी सरोकार अथवा संवाद के लिए भी किया जाने लगा है। किसी अफसोस या दुःख की खबर साझा करने पर नगाड़ा -नगाड़ा बजा की कॉलर धुन हमारे दुःख का उपहास ही उड़ाती है। संगीत प्रेम की यह सनक किसी दिन ‘डोर बेल’ पर अटैक न कर दे! ऐसा हुआ तो दस्तक देने या घंटी बजाने के बजाय लोग दरवाजे पर खड़े होकर अलापते मिलेंगे। ‘तेरे द्वार खड़ा…? क्या पता, कविता के शौकीन हाई पिच पर गुहार लगाते नजर आएंगे अरे ओ शांभा, जरा फोन तो उठा बहुत देर से बज रेला है, ‘अब! देखिए आगे- आगे होता है क्या?

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