एस.पी.सक्सेना/रांची(झारखंड)(Jharkhand)। रिविजनल खतियान और ग्राम मानचित्र का अंतिम प्रकाशन वर्ष 1932 के बाद से आज तक ना तो सर्वे हुआ और ना ही कोई भी रिविजनल खतियान प्रकाशित हुआ। जबकि नियम हर 15 साल में रिविजनल सर्वे करवाकर खतियान और ग्राम मानचित्र प्रकाशित करने का है। यही कारण है कि झारखंड में भू-माफियाओं की बल्ले-बल्ले है। उक्त बाते झारखंड की राजधानी रांची के मानींद अधिवक्ता एवं समाजसेवी दीपेश निराला ने कही।
उन्होंने कहा कि इसी कालखंड में 1956 में जमींदारी भी सरकार में वेस्ट हो गई और लैंड रिफॉर्म एक्ट और सीलिंग एक्ट प्रभाव में आ गया। जमींदारों ने अपनी जमीन ‘एम’ फार्म के रूप में रिटर्न दाखिल करके सुरक्षित की बाकी बची जमींदारों की जमीनें सरकार में वेस्ट हो गई। आज आलम यह है कि ना तो कई जमीनों के खतियान उपलब्ध हैं और ना ही उक्त ‘एम-फार्म्स’, जिससे बड़ी मात्रा में लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
खासकर गैरमजरूआ भूमि के मामले में, क्योंकि वर्ष 1956 के पहले यह जमींदारों की जमीन हुआ करती थी। 1956 के बाद यह सरकार की जमीन हो गई।
निराला के अनुसार वर्ष 1956 के पहले इन जमींदारों ने जिन रैयतों के साथ उक्त गैरमजरूआ जमीन का विधिवत सेटलमेंट कर दिया गया था उसको मान्य रखा गया। लेकिन स्पष्ट कागजातों के अभाव में आज भी विवाद बना हुआ है। इन्हीं सब कारणों से आए दिन भू-माफिया हावी रहते हैं और भूमि को लेकर दिन प्रतिदिन कोई न कोई हत्या जैसी घटनाएं सुनने को मिलती है। झारखंड सरकार को इस बारे में गंभीरतापूर्वक विचार करते हुए एक स्पष्ट नीति बनाने की आवश्यकता है ताकि विवादो का त्वरित निबटारा संभव हो सके और भू-अपराधो पर अंकुश लग सके। कार्यालय संवाददाता /
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