जीवन से मुक्ति से पहले वह दल से भी मुक्त हो गए
संतोष कुमार झा/ मुजफ्फरपुर (बिहार)। खांटी देसी स्वभाव, भाषा, चरित्र और व्यवहार के दिग्गज पूर्व राजद नेता (राजनीतिज्ञ नहीं) रघुवंश प्रसाद सिंह (Raghuvansh Prasad Singh) हमेशा यही चाहते थे, बंधनमुक्त रहना। लंबे अरसे तक राज्य और केंद्र की राजनीति में सक्रिय रहे। कई बार मंत्री भी रहे लेकिन उन्हें भाया हमेशा एक साधारण सांसद बने रहना। पूछने पर कहते थे- ‘मंत्री के रूप में बंध जाता हूँ। जो कहना चाहता हूँ वह कह नहीं सकता। प्रश्न पूछ नहीं सकता। बस सरकार की राग में गा सकता हूं। कभी कभी बहुत बेचैनी होती है।’ जीवन से मुक्ति से पहले वह दल से भी मुक्त हो गए।
विश्व व् देश के पहले गणराज्य वैशाली संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे रघुवंश प्रसाद सिंह को एक राजनीतिज्ञ इसलिए नहीं कहा जा सकता है क्योंकि उन्होंने कभी राजनीति की नहीं। कभी दिल से, कभी श्रद्धा के साथ, कभी कर्तव्य के नाते अपनी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल की लाइन का पालन किया। यही कारण है कि कई बार घुटन और कई बार प्रलोभन के बावजूद उन्होंने कभी राष्ट्रीय जनता दल का साथ नहीं छोड़ा।
तब भी नही जब उन्होंने पार्टी में परिवारवाद के बाद ऐसी प्रजातियों को भी खुद से आगे बढ़ते देखा जिनकी विशेषता चाटुकारिता रही है। लेकिन वह अलग माटी के थे। संयुक्त गठबंधन सरकार में जब वह केंद्र में खाद्य आपूर्ति मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाए गए थे। विभाग के एक संयुक्त सचिव उनसे मिलने आए और डरते डरते बताया कि बिहार में जिलाधिकारी रहते हुए उन्होंने प्रदर्शन करने वाले रघुवंश को बाहर घंटों बिठाया था।
रघुवंश ने उन्हें सलाह दी- अब से यह जरूर ध्यान रखिएगा कि आवाज उठाने वालों की बात जरूर सुनी जाए। एक अनुशासित कार्यकर्ता की तरह उन्होंने अपनी पार्टी के अंदर भी कई बार असहमति जताई। लालू प्रसाद यादव उन्हें समझते थे। इसीलिए अगर लालू कोई ऐसा फैसला पहले ही कर चुके होते जिससे रघुवंश सहमत नहीं होते तो रघुवंश से चर्चा भी नहीं करते थे। रघुवंश भी फिर कोई सवाल नहीं खड़ा करते। लालू और रघुवंश में एक अदृश्य समझ थी। दोनों एक दूसरे को पहचानते थे। पहले बता सकते थे कि कौन क्या सोच रहा है।
यही कारण है कि लाख चुभन के बावजूद रघुवंश ने कभी राजद से नाता नहीं तोड़ा था। अपने नजदीकियों से रघुवंश ऐसे ही कई सवालों के जवाब में कहते रहे थे- ‘मैं यह लांछन लेकर नहीं जी सकता हूं कि किसी प्रलोभन के कारण मैंने पार्टी को छोड़ दिया। अगर पार्टी मुझे धक्का दे दे तभी छोड़ूंगा।’ यही हुआ। लालू प्रसाद की गैर मौजूदगी में राजद ने उन्हें इतना किनारे लाकर खड़ा कर दिया कि जीवन छोड़ते छोड़ते पार्टी से भी बंधनमुक्त हो गए।
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