एस.पी.सक्सेना/ रांची (झारखंड)। स्कूल-कॉलेज बंद हैं। विभिन्न विद्यालयों द्वारा ऑन लाइन क्लासेज़ चलायी जा रही है। वहीं जिनके पास न तो किताब और कॉपी ही उपलब्ध है और न ढंग के कपड़े। वे मोबाइल और लैप टॉप कहाँ से लाएं? ऐसे में सूरज किसी के साथ भेदभाव नहीं करता। समूची दुनिया में समान रूप से रौशनी फैलाता रहता है।
अपने नाम के अनुरूप ख़ुर्शीद आलम वर्षों से यही सब कर रहे हैं। वे रांची जिला के हद में उत्कर्मित मध्य विद्यालय बाढ़ू सेमरटोली कांके (Kanke) में हेडमास्टर हैं। दोनों पैर से मजबूर होने के बाद भी रोज़ सुबह वो अपनी तीन पहिया स्कूटी से आसपास के गांव से बच्चों को लेकर आते हैं। एक वृक्ष के नीचे उनका गुरुकुल आकार ले लेता है।
क़रीब एक दर्जन से अधिक बच्चे इस खुली पाठशाला में हर दिन शामिल होकर खुर्शीद के तालीमी उजियारे से लाभ उठा रहे हैं। बच्चे दिव्यांग गुरुजी को देख प्रेरणा भी पा रहे कि उड़ान पंखों से नहीं हौसले से होती है। शिक्षक दिवस के अवसर पर 5 सितंबर को खुर्शीद कक्षा में बच्चों को कहानी बताते हैं कि समुंदर को पार कैसे किया जाता है।
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