जंगल में गणतंत्र

एस.पी.सक्सेना/ बोकारो। वर्तमान में जिधर भी नजर जाता है झूठ और फरेब ही दिखता है। मंत्री के चातुर्य की बदौलत राजा जनता को सदा से बेवकूफ बनाता रहा है। जनता के मन में राजा के प्रति आक्रोश के बाद भी भोली भाली जनता मंत्री के भुलावे में आकर बार बार राजा को ही अपना अधिकार सौंप देते हैं। और राजा लगातार जनता को छ्लने का काम करता है। इसी प्रकार की सोच पर आधारित है झारखंड के प्रखर राजनीतिक विश्लेषक विकास सिंह की यह व्यंगात्मक लेख:-

जंगल में गणतंत्र की घोषणा हो गयी। अब शेर का बेटा शेर राजा नही रहेगा। चुनाव होगा और ज़िसे सारे जंगलवासी वोट देंगे वही अब जंगल का प्रधान बनेगा। जंगल में खुशी की लहर दौड़ गई। सब तरफ एक ही चरचा … शेर के आतंक एवं अत्याचारों से मुक्ति मिलेगी। …अब हमलोग निर्विघ्न एवम निर्भिक होकर पूरे जंगल में विचरण करेंगे। शेर से अब डरने की ज़रूरत नही। बूढे बुजुर्ग जानवर नये वयस्क हुये जानवरों को गणतंत्र का मतलब समझा रहें थे। चहूँओर जंगल में मंगल व्याप्त हो गया।

उधर राजा शेर चिंतामग्न उदास बैठा था। अभी अभी खरगोश ताली बजाते हुए उसे चिढाते हुये गुजरा था। मन तो किया स्साले का गर्दन मरोड़ दूँ, पर क्या करूं कल कही कोई खरगोश ही प्रधान निर्वाचित हो गया तो मुझे तो फांसी पर ही चढा देगा। यही सब सोंच कर शेर दुखी हो रहा था। तबतक उसका प्रधानमंत्री श्रीगाल जीं आ पहुंचे। वे बहुत चतुर और होशियार जीव थे। उनकी झुधा की तृप्ति भी राजा शेर के शिकार के जूठन से ही होती थी।

बात तो उनके लिये भी चिंता वाली ही थी …लेकिन मुश्किल घड़ी में भी राजा की समस्या का समाधान ना निकाले तो मंत्री किस बात का? …श्रीगाल जीं थोड़ी देर चिंतामग्न रहें …फिर कुछ मन ही मन विचार कर अचानक आरकेमीडीज की तरह ” यूरेका ” का भाव चेहरे पर लाते हुए मंत्री श्रीगाल ने क़हा ….महाराज आप चिंता ना करें। …कल उम्मिदवार् चयन के लिये जंगल में मिटिंग बुलायी गयी है। …आप चलने के लिये तैयार रहियेगा। शेर ने आश्चर्य से सियार की तरफ देखा ..लेकिन सियार ने इशारे से उन्हे चुप कराते हुए क़हा …मै जैसा कहता हूँ महाराज वैसा आप करते जाईये। मै सब संभाल लूँगा। कल सुबह मैं आऊंगा आप तैयार रहियेगा। शेर असमंजस में था लेकिन उसे अपने मंत्री की बुद्धि एवम चातुर्य पर भरोसा था।
दुसरे दिन मंत्री सियार समय पर आ गया। पहले उसने राजा शेर का मुकुट (ताज) उतार कर अपने साथ लाये गाँधी टोपी को पहना दिया। फिर शेर के दांतो में फंसे मांस के टुकड़ो को निकाल कर उसमे घास के तिनके खोंस दिये। …फिर बोला चलिये नेताजी। शेर को फिर आश्चर्य हुआ कि ये मेरे मंत्री को क्या हो गया है। सियार ने शेर को समझाया ….महाराज अब आप राजा नहीं नेताजी हैँ और मैं आपका मंत्री नही सेग्रेटरी हूँ। अब चलिये मिटिंग में। आप कुछ नही बोलियेगा …मैं जो बोलूँगा आप सहमति में सिर्फ सिर हिलाईयेगा।

मिटिंग में शेर और सियार को देखकर सारे जानवर आश्चर्यचकित रह गये। सियार ने धीरे धीरे कहना शुरू किया ….”भाईयो हमारे राजा शेर जी गाँधी जी से बहुत प्रभावित हो गये है। कल ही गाँधी बाबा के चरणो में अपना ताज रखकर अहिंसा का कसम खा लिये हैँ। अब तो सिर्फ घास और कन्दमूल ही खा रहें हैं। देख लीजिये …नेताजी मुंह खोलिये। शेर ने मुंह खोल दिया और सियार ने दांतो में खोंसे घास के टुकड़ो को दिखा दिया। सियार ने आगे कहना शुरू किया ..तो भाईयो गाँधी बाबा ने इनको अपना खास शिष्य बना लिया हैं और हमलोगों की सेवा की ज़िम्मेवारी देकर इनको भेजा है। ….बोलिये नेता शेर जी ज़िन्दाबाद …सारे जानवर गाँधी बाबा का शिष्य समझ कर….ज़िन्दाबाद ज़िन्दाबाद का नारा जोर शोर से बोलने लगे।

और राजा शेर जी सर्वसम्मति से जंगल के प्रधान चुन लिये गये। फिर संसद की पहली बैठक में य़ह कानून पास हुआ कि प्रधान शेर जी के लिये 5 भैसा 10 हिरंण और 20 खरगोश प्रतिदिन राज्य की तरफ से भोजन के लिये आपूर्ति की जायेगी। अब जंगल में गणतंत्र मजे में चल रहा है।
(प्रसिद्ध लेखक हरिशंकर परसाई से प्रेरित यह लेख )।

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