एस.पी.सक्सेना/ बोकारो। सत्ता के शीर्ष पर बैठा इंसान जब लोलुपता की सारी हदे पार करने लगता है तब उसके मंत्री, दरबारी निरंकुश होकर प्रजा जनों के साथ अत्याचार करने लगते हैं। ऐसे में नारी शक्ति सत्ता की बागडोर अपने हांथ में लेकर जनता को सुकून देने का कार्य करती है। इसी पर आधारित है झारखंड के प्रखर राजनीतिक विश्लेषक विकास सिंह की यह ऐतिहासिक लेख:-
रूक्नूद्दीन फिरोज़ शाह भी कभी दिल्ली के तख्त पर रौनक़ अफरोज़ हुआ करता था। रूक्नूद्दीन फिरोज़ शाह गुलाम वंश के शासक इल्तुतमिश का नाकाबिल औलाद था जो सन् 1236 में अपने वालिद के इंतकाल के बाद सत्तानशीं हुआ था। रूक्नूद्दीन जाहिल और बद्अक्ल इंसान था जो सिर्फ ऐश मौज में मशगूल रहता था।
कहा जाता है कि वह अपने शाही दरबार में भी आता तो नाचते गाते आता था। इसको राज-काज़ और प्रजा जनों के दु:ख दर्द से कोई मतलब नहीं था। जिससे मौका पाकर कुछ सरदार बेलगाम होकर आवाम पर जुल्म करने लगे और अपनी तिजोरी भरने लगे। इस हालात में इल्तुतमिश के वफादार सरदारों की मदद से रूक्नूद्दीन की बहन रजिया सुल्तान ने दिल्ली सल्तनत पर कब्जा कर लिया और दिल्ली की पहली महिला सुल्तान बनीं।कुछ-कुछ इसी तरह के मंजर पशेमां हो रहे हैं।
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