राम आस्था का केंद्र हैं विश्वास का नहीं-विकास सिंह

एस.पी.सक्सेना/ बोकारो। मंदिर निर्माण एक राजनीतिक चाल है। देश की डूबती अर्थव्यवस्था से ध्यान भटकाने और सरकारी प्रतिष्ठानों को बेचने की साजिश है। उक्त बातें क्षेत्र के समाजसेवक एवं राजनीतिक विश्लेषक विकास सिंह ने कही।

उन्होंने कहा कि वे मजदूरों और किसानों से कहना चाहते हैं कि आप अपनी दुर्दशा और बदहाली के खिलाफ तनकर खड़े न हों इसीलिए यह धर्म की अफीम चटाई जा रही है। राम मूर्त नहीं अमूर्त हैं। यह हमारे मन, वचन और कर्म में समाहित हो हमें सद्बुद्धि प्रदान करें और सन्मार्ग पर अग्रसर होने को प्रेरित करें। इसी पुण्य भावना से आदिकवि बाल्मीकि ने राम के चरित्र को गढ़ा और एक आदर्श के रूप में स्थापित किया।

कालांतर में इसी भावना से वशीभूत गोस्वामी तुलसीदास ने तत्कालीन परिस्थितियों में सामाजिक विद्रूपता, पारिवारिक वैमनस्यता और मर्यादाविहीन समाज को दिशा एवं स्थिरता देने के लिये राम के रूप में ऐसे पात्र की रचना की जिससे समाज को एक ऐसा आदर्श नायक मिले जो मानस को सुपथ पर चलने को प्रेरित करे। उन्होने कहा कि राम बाल्मीकि की कल्पना की उपज हैं, सत्यता का भौतिक आधार नहीं।

सिंह ने कहा कि आज से 3000 साल पूर्व बाल्मीकि रामायण का रचना काल है। उससे पहले 3000 से 5000 साल पूर्व महाभारत की रचना हुई थी, लेकिन महाभारत में कहीं भी राम का प्रसंग नहीं आता है। आम धारणा और लोकोक्ति है कि रामायण काल त्रेता युग में है, जबकि उसके बहुत बाद द्वापर युग में महाभारत घटित हुआ था। अब यह सवाल तो उठना लाजिम है कि महाभारत में राम का कहीं कोई ज़िक्र क्यों नहीं है?

भाषा विज्ञान के विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं का कहना है कि रामायण में प्रयुक्त भाषा और महाभारत में प्रयुक्त भाषा में भी फर्क है। रामायण की भाषा ज्यादा परिष्कृत है जो साबित करती है कि रामायण महाभारत काल के बाद की रचना है। अब आईये समाजशास्त्रियों के विष्लेषण पर गौर करें।

समाजशास्त्र और मानव विज्ञान के अध्येताओं का भी यही निष्कर्ष है कि रामायण काल का समाज ज्यादा सभ्य, सुसँस्कृत और आधुनिक है। जबकि महाभारत काल का समाज कबिलाई समाज से सभ्यता की ओर बढ़ता समाज है। उपर्युक्त स्थितियों के मूल्यांकन से यह स्पष्ट है कि राम बाल्मीकि रामायण के एक काल्पनिक पात्र हैं। जिन्हें समाज में आदर्श और मर्यादा को स्थापित करने के लिये ऋषि बाल्मीकि और गोस्वामी तुलसीदास ने माध्यम बनाया था ।

लेकिन आज हो रहा है उल्टा। राम के नाम का समाज में भय और अशांति के लिये उपयोग किया जा रहा है। आपसी वैमनस्य और साम्प्रदायिक घृणा पैदा करने के लिए किया जा रहा है। राजनीतिक कुर्सी पाने के लिये उन्हें मोहरा बनाया जा रहा है। फिर भी हिन्दुओं के घटघट में, मन और चेतन में बसनेवाले बाल्मीकि और तुलसी के राम के असली भक्तों के मन में राम की मर्यादा का भाव क्यों नहीं उत्पन्न हो रहा है। यह घोर आश्चर्य का विषय है।

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