एस. पी. सक्सेना/बोकारो। बोकारो के अपर जिला एवं सत्र न्यायधीश प्रथम दीपक बर्नवाल के न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या) और धारा 201 (साक्ष्य मिटाने) के तहत आरोपी राउत सोरेन को रिहा करने का महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। राउत सोरेन पर अपनी पत्नी को जंगल में ले जाकर हत्या करने का गंभीर आरोप था।
बताया जाता है कि इस मामले में बोकारो जिला के हद में चंदनकियारी प्रखंड के सियालजोरी थाना में कांड क्रमांक-87/20 दर्ज किया गया था। जिसका ट्रायल सत्र वाद क्रमांक-155/ 23 में आरोपी की ओर से वरीय युवा अधिवक्ता रणजीत गिरि ने प्रभावी ढंग से पैरवी की, जिसके परिणामस्वरूप न्यायालय ने यह निर्णय लिया।
मामले की सुनवाई के दौरान अधिवक्ता रणजीत गिरि ने ठोस तर्क और साक्ष्यों के आधार पर अपने मुवक्किल की बेगुनाही को साबित करने का प्रयास किया। उन्होंने अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए और यह दलील दी कि आरोपी राउत सोरेन के खिलाफ पेश किए गए सबूत अपर्याप्त और परिस्थितिजन्य हैं। अधिवक्ता गिरि ने यह भी तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि आरोपी सोरेन ने जानबूझकर हत्या की या साक्ष्य मिटाने की कोशिश की।
न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलों और साक्ष्यों की गहन समीक्षा के बाद पाया कि अभियोजन पक्ष के पास राउत सोरेन को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए, जिसमें कहा गया है कि केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों या पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर किसी को धारा 302 और 201 के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता। न्यायालय ने सोरेन को बरी कर दिया। अधिवक्ता गिरि ने न्यायालय के इस फैसले को कानून और न्याय की जीत बताते हुए कहा कि हमने शुरू से ही दावा किया था कि हमारे मुवक्किल के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं हैं। न्यायालय ने तथ्यों और कानूनी प्रावधानों के आधार पर निष्पक्ष फैसला सुनाया है।
उल्लेखनीय है कि धारा 302 के तहत हत्या एक गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध है, जिसमें मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है। वहीं, धारा 201 के तहत साक्ष्य मिटाने या अपराधी की सहायता करने की सजा अपराध की गंभीरता पर निर्भर करती है। इस मामले में अभियोजन पक्ष द्वारा पेश किए गए साक्ष्यों की कमी ने राउत सोरेन के पक्ष में फैसले को प्रभावित किया है।
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