जब धर्म की हानि होती है, भक्तों की रक्षा के लिए धरती पर होता प्रभु अवतरण-देवीप्रिया

भगवान श्रीकृष्ण सुदामाजी से समझ सकते हैं मित्रता कैसे निभाई जाए-कथा वाचिका

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में सोनपुर प्रखंड के सबलपुर नेवल टोला में आयोजित श्रीमद्भागवत सप्ताह ज्ञान यज्ञ के अंतिम दिन 23 मई को कथा व्यास देवी प्रिया भगवतीजी ने भगवान श्रीकृष्ण के सोलह हजार एक सौ आठ विवाह प्रकरण पर विस्तार पूर्वक जानकारी दी।

श्रीकृष्ण विवाह प्रकरण पर प्रवचन के दौरान कहा कि नरकासुर नामक एक दैत्य ने अपनी माया शक्ति से इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु आदि सभी देवताओं को परेशान कर रखा था। उसने कई राज्यों की राजकुमारियों और संतों की स्त्रियों को अपने पास बंदी बना लिया था और सबकी बलि देना चाहता था। कहा कि जब नरकासुर का अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया, तो देवता व ऋषि-मुनि भगवान श्रीकृष्ण के पास मदद मांगने गये।

भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नरकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वसान दिया लेकिन एक श्राप के अनुसार नरकासुर की मृत्यु केवल एक स्त्री के हाथों ही संभव थी। इसीलिए श्रीकृष्ण उसका संहार करने के लिए अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाकर ले गए। उन्होंने उसका वध किया और सभी कैद कन्याओं को मुक्त कराया।

कथा वाचिका ने कहा कि दैत्य के कारावास से मुक्त होने के बाद जब ये कन्याएं अपने घर पहुंची, तो समाज और परिवार ने उन्हें चरित्रहीन कहकर अपनाने से मना कर दिया। तब उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से मदद मांगी और श्रीकृष्ण ने 16100 प्रतिरूप धरे और उन्होंने एक साथ सबके साथ 16100 रूपों में प्रकट होकर विवाह किया। श्रीकृष्ण अपने प्रतिरूप बनाकर अपनी सभी पत्नियों के साथ रहते थे और उन्होंने कभी किसी के साथ न तो अन्याय किया और न कभी किसी को उसके अधिकार से वंचित किया। उन्होंने सबको पति का प्रेम दिया।

बताया कि श्रीकृष्ण के 1 लाख 61 हजार 80 पुत्र भी थे। उनकी सभी पत्नियों के 10-10 पुत्र थे और एक-एक पुत्री भी उत्पन्न हुई थी। इसी गणना के अनुसार कृष्ण के 1 लाख 61 हजार 80 पुत्र और 16 हजार 108 पुत्रियां थीं। भगवान कृष्ण की आठ प्रमुख पटरानियां रुक्मणी, जामवंती, सत्यभामा, कालिन्दी, मित्रवृदां, नग्नजिति, रोहिणी और लक्ष्मणा थी।

सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कथा व्यास देवीप्रिया ने बताया कि मित्रता कैसे निभाई जाए, यह भगवान श्रीकृष्ण सुदामाजी से समझ सकते हैं। उन्होंने कहा कि सुदामा अपनी पत्नी के आग्रह पर अपने मित्र से सखा श्रीकृष्ण से मिलने के लिए द्वारिका पहुंचे। उन्होंने कहा कि सुदामा द्वारिकाधीश के महल का पता पूछा और महल की ओर बढ़ने लगे। द्वार पर द्वारपालों ने सुदामा को भिक्षा मांगने वाला समझकर रोक दिया। तब उन्होंने कहा कि वे द्वारिकाधीश कृष्ण के मित्र हैं। इस पर द्वारपाल महल में गए और प्रभु श्रीकृष्ण से कहा कि हे प्रभु आपसे कोई मिलने आया है। अपना नाम सुदामा बता रहा है।

जैसे ही द्वारपाल के मुंह से उन्होंने सुदामा का नाम सुना, प्रभु सुदामा- सुदामा कहते तेजी से महल द्वार की तरफ भागे। सामने सुदामा सखा को देखकर उन्होंने उसे अपने सीने से लगा लिया। सुदामा ने भी कन्हैया कन्हैया कहकर उन्हें गले लगाया। दोनों की ऐसी मित्रता देखकर सभा में बैठे सभी सभासद अचंभित हो गए। कृष्ण सुदामा को अपने राज सिंहासन पर बैठाया और उन्हें कुबेर का धन देकर मालामाल कर दिया। इसी प्रकार जब -जब भक्तों पर विपदा आ पड़ी है। प्रभु उनका तारण करने अवश्य आए हैं।

इस प्रकार कथा के अंत में व्यास पीठ से देवीप्रिया बहन ने बताया कि अगले प्रसंग में शुकदेवजी ने राजा परीक्षित को सात दिन तक श्रीमद्भागवत कथा सुनाई, जिससे उनके मन से मृत्यु का भय निकल गया। तक्षक नाग आता है और राजा परीक्षित को डस लेता है। राजा परीक्षित कथा श्रवण करने के कारण भगवान के परमधाम को पहुंचते है। इसी के साथ कथा का विराम हो गया।

सबलपुर गंगा घाट पर गंगा आरती का आयोजन

वहीं,संध्याकाल में सबलपुर पश्चिमी पंचायत के कुमार घाट पर गंगा आरती का आयोजन किया गया। जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालु गण उपस्थित रहे। गंगा आरती में महाकाल बाबा के नेतृत्व में आधे दर्जन से ऊपर पंडितो ने वैदिक मंत्र उच्चारण के साथ शंख ध्वनि, घंटी एवं गंगा आरती कर यजमान उत्तरी पंचायत के पूर्व पैक्स अध्यक्ष संगीता देवी पति जयराम राय एवं समाजसेवी लाल बाबू पटेल ने सात दिवसीय यज्ञ व गंगा आरती में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।

मौके पर संगीता देवी ने कहा कि सनातन धर्म में माँ गंगा क़े जल को स्वच्छ रखना और पुजा अर्चना करना हमारी संस्कृति की रक्षा मातृशक्ति व मां की आरती से ही संभव है। लाल बाबू पटेल ने कहा कि गंगा का पानी निर्मल और स्वच्छ व सुंदर कल कल छल -छल धाराएं है। सभी आम व् खास गंगा व नरायणी सहित अन्य नदियों को स्वच्छ रखें। कहा कि गंगा आरती करने या उसमें शामिल होने से धन, सुख, वैभव की प्राप्ति होती है। गंगा आरती के दौरान अर्पित किए गए दीप हमारी प्रार्थना को देवताओं तक पहुंचाने का सरल मार्ग है।

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