सिद्धार्थ पांडेय/चाईबासा (पश्चिम सिंहभूम)। झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिला के हद में जगन्नाथपुर अनुमण्डल में बैतरणी नदी तट पर रामतीर्थ रामेश्वर मंदिर अद्भुत व् लोकप्रिय है। इस मंदिर के बारे में कई रोचक किस्से मशहूर हैं। यहां भगवान राम के पैरों के निशान मौजूद हैं। इन पैरों का दर्शन कर श्रद्धालू धन्य हो रहे हैं।
क्षेत्र में ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ जब 14 वर्षों के वनवास पर थे, इस दौरान वे यहां भी पहुंचे थे। तीनों ने बैतरणी नदी के इस तट पर आराम किया था। इसके बाद भगवान राम ने खुद अपने हाथाें से यहां शिवलिंग की स्थापना की थी। भगवान राम ने इस शिवलिंग की पूजा की थी। कुछ दिनों तक यहां विश्राम करने के बाद भगवान राम नदी पार कर आगे की यात्रा पर निकल गए थे।
उक्त तथ्यों को मुस्लिम समाज के होते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को अपना आदर्श मानने वाले नोवामुंडी क्षेत्र मे चर्चित समाजसेवी तथा राम तीर्थ मंदिर विकास समिति अधिशासी सदस्य निसार अहमद ने 19 मई को बताया कि वस्तुतः उक्त मंदिर क्षेत्रीय इतिहास, संस्कृति और धार्मिक परंपराओं की जीवंत झलक से अवगत कराता है । उन्होंने बताया कि उक्त मंदिर परिसर का शांतिपूर्ण वातावरण और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण दृश्य को देखकर कोई भी आत्मविभोर हो जाएगा।
रामेश्वर मंदिर की स्थापना, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के पदचिह्नों का रहस्य और मंदिर की अद्भुत वास्तुकला का परिचायक है। सच्चाई यह है कि त्रेता युग में श्रीराम वनवास काल के दौरान बैतरणी तट पर विश्राम के लिए रुके थे। वहीं उन्होंने शिवलिंग की स्थापना की थी। एक स्थानीय देवरी (पुजारी) को स्वप्न में यह जानकारी मिली कि श्रीराम के पदचिह्न नदी की गहराई में स्थित हैं। ग्रामीणों ने टाटा स्टील नोवामुंडी की सहायता से पानी के भीतर से इन पदचिह् को निकालकर ऊपरी स्थान पर प्रतिष्ठापित किया। इन पदचिन्हों में एक पदचिन्ह वास्तविक है जो स्वयं श्रीराम का माना जा रहा है, जबकि अन्य दो पदचिन्ह कृत्रिम रूप से बाद में बनाए गए हैं।
उन्होंने बताया कि वर्ष 1910 में ग्रामीणों के सहयोग से इस मंदिर परिसर में मुख्य रूप से चार मंदिर यथा रामेश्वरम मंदिर, शिव मंदिर, जगन्नाथ मंदिर और बजरंगी मंदिर बनाए गए हैं। इस मंदिर के सौंदर्यीकरण एवं विकास में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा एवं पूर्व सांसद गीता कोड़ा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। झारखंड सरकार ने इसे हाल में पर्यटन स्थल घोषित किया है। निसार अहमद ने बताया कि यह मंदिर भारतीय वास्तुकला की एक विशिष्ट शैली है, जो वेसर शैली पर आधारित है।

राम तीर्थ मंदिर पर परिचर्चा करते समाजसेवी निसार अहमद ने बताया कि ग्रामीणों द्वारा कहा जाता है कि भगवान श्रीराम यहाँ से जाते समय अपना खड़ाऊं और पदचिह्र यहां छोड़ गए थे। बहुत दिनों बाद पास के देवगांव के एक देवरी को स्वप्न आया। तब इस स्थान के बारे में पता चला। इसके बाद स्थानीय रहिवासियों ने यहां मंदिर का स्वरूप दे दिया। अब यहां चार मंदिर मौजूद हैं। यह सभी मंदिर देखने में काफी आकर्षक हैं।
यहां का प्राकृतिक वातावरण मन को काफी आनन्द व शांति देता है। यहां हर वर्ष मकर संक्रांति पर बहुत बड़ा मेला लगता है। दूर -दूर से यहां श्रद्धालू नदी में स्नान करने आते हैं। सुबह से ही स्नान कर पूजा करने का सिलसिला शुरू हो जाता है।
स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि यहां झारखंड के अलावा ओडिशा के मयूरभंज और सुदंरगढ़ से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालू आते हैं। भगवान श्रीराम के पदचिह्रों का दर्शन कर खुद को धन्य महसूस करते हैं। मंदिर के पास में ही एक छोटा-सा गांव है देवगांव। यहां के ग्रामीणों ने इस मंदिर की देखभाल के लिए कमेटी बना रखी है।
कमेटी ने ही मंदिर को विशाल और सुंदर स्वरूप दिया है। प्रत्येक सोमवार को यहां पूजा अर्चना की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि यहां पूजा अर्चना करने से सारी इच्छाएं पूरी हो जाती है। अन्य मंदिरों की तुलना में रामतीर्थ मंदिर की अलग पहचान है। सावन, महाशिवरात्रि और मकर मेला, कार्तिक पूर्णिमा पर यहां मंदिर कमेटी की ओर से विशेष व्यवस्था की जाती है। मंदिर भव्य तरीके से सजाए जाते हैं। बहरहाल उक्त मंदिर झारखंड राज्य में चर्चित होता जा रहा है। भगवान राम भक्तो का आवागमन एवं श्रद्धा का केंद्र के कारण काफी लोकप्रिय हो रहा है।
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