राहुल सांकृत्यायन का साहित्यिक एवं सामाजिक अवदान विषय पर सेमिनार

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में सोनपुर के गांधी चौक में कविता स्मृति अगस्त क्रांति संग्रहालय सभागार में 9 अप्रैल को राहुल सांकृत्यायन का साहित्यिक एवं सामाजिक अवदान विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया।

आयोजित सेमिनार में बाबा साहेब भीम राव बिहार विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग के प्राध्यापक राकेश रंजन ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन जैसा रचनाकार एवं विद्वान किसी भाषा एवं साहित्य के इतिहास में हजार हजार वर्ष के बाद ही पैदा होता है। सेमिनार का आयोजन शहीद महेश्वर स्मारक संस्थान एवं प्रगतिशील लेखक संघ द्वारा किया गया था।

सेमिनार में बाबा भीम राव बिहार विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग के प्राध्यापक राकेश रंजन ने कहा कि राहुल सांकृत्यायन जैसा रचनाकार एवं विद्वान किसी भाषा एवं साहित्य के इतिहास में हजार हजार वर्ष के बाद ही पैदा होता है। उन्होंने कहा कि 36 भाषाओं में समान रूप से दखल रखनेवाले सांकृत्यायन ने 138 पुस्तकों की हिंदी में रचना की। वे एक ऐसे बौद्धिक यायावर थे जिन्होंने तिब्बत की चार बार यात्रा की और उन बौद्ध ग्रंथों को वहां से लाने में सफलता प्राप्त की जो ग्रन्थ भारत के होते हुए भी भारत में अनुपलब्ध थे।

वे जीवन और समाज के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते थे और साइंस एंड टेक्नोलॉजी को मानव जीवन के विकास का प्रमुख आधार मानते थे। यही कारण है कि उनका ईश्वर में विश्वास नहीं था, पर विज्ञान में अटूट विश्वास था। भागो नहीं दुनिया को बदलो आर्टिकल की चर्चा करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार सह पत्रकार सुरेन्द्र मानपुरी ने कहा कि बंगाल के अकाल के दौरान जब इंसान कुड़ों से अन्न बिन कर खाने के लिए मजबूर था तो दूसरी ओर शोषक वर्ग एवं पूंजीपतियों के घरों में दूध भात कुत्तों को खिलाए जा रहे थे।

समाज में आर्थिक विषमता के लिए पूंजीवाद को जिम्मेवार ठहराया और कहा कि सांकृत्यायन आमलेट खाकर भूख पर लिखनेवाले साहित्यकार नहीं थे, बल्कि आम आदमी एवं किसानों के हक के लिए सड़कों पर उतरने वाले में अग्रणी थे।
स्वामी सहजानंद सरस्वती आश्रम बिहटा के कैलाश चंद्र झा ने नागार्जुन द्वारा लिखी गई कई चिट्ठियों की चर्चा की और कहा कि स्वामी सहजानंद और सांकृत्यायन ने अंग्रेजी हुकूमत में किसान सभा की स्थापना कर शोषकों के खिलाफ किसान संघर्ष की नींव रखी थी। वे केवल लिखनेवाले साहित्यकार नहीं, बल्कि आम आदमी एवं किसानों के हक के लिए सड़कों पर उतरने वाले में अग्रणी थे। रंगकर्मी एवं ऐप्सो के महासचिव अनीश अंकुर ने राहुल सांकृत्यायन के जन संघर्षों की चर्चा की।

इस मौके पर धर्मनाथ शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए उनके व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार सीताराम सिंह ने राहुल जी के रचना संस्कार और उनके पांडित्य को हिंदी भाषा और साहित्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना और कहा कि उन्हें महापंडित कहा जाना उनके प्रति बौद्धिक समाज की ओर से बड़ा सम्मान है। संचालन गोपाल शर्मा ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन अच्युत नंदन ने किया। इस अवसर पर ब्रज किशोर शर्मा, विजय कुमार शर्मा, मुकेश कुमार शर्मा, प्रमोद राय, राजू सिंह, जितेन्द्र कुमार सिंह आदि की सहभागिता रही।

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