एस. पी. सक्सेना/बोकारो। बिहार के बोधगया में चल रहे महाबोधि मंदिर मुक्ति आंदोलन में भाग लेने के लिए 7 मार्च को बोकारो बुद्ध विहार से एक टीम गया जाने के लिए रवाना हो गयी।
जानकारी के अनुसार उक्त आंदोलन का मुख्य उद्देश्य बिहार राज्य के बोधगया स्थित महाबोधि मंदिर के नियंत्रण को भारतीय बौद्धों के हाथों में लौटाना है, क्योंकि सन् 1949 में ब्रिटिश शासन द्वारा मंदिर का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया गया था। इसे हिंदू साधुओं को सौंप दिया गया था। महाबोधि मंदिर बिहार के बोधगया में स्थित है। यह वह स्थान है जहाँ भगवान बुद्ध ने बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए ज्ञान प्राप्त किया था। यह बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत पवित्र स्थल है।
बताया जाता है कि, 19वीं शताबदी में जब ब्रिटिश साम्राज्य ने भारत पर शासन करना शुरू किया। उन्होंने महाबोधि मंदिर का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया और इसे हिंदू पुजारियों के नियंत्रण में दे दिया, जबकि बौद्ध समुदाय को इससे बाहर रखा गया। इससे बौद्ध समुदाय में विरोध और असंतोष बढ़ता गया। इसके बाद महाबोधि मंदिर मुक्ति आंदोलन की शुरुआत की गयी। इस आंदोलन का नेतृत्व बौद्ध धर्म के अनुयायियों और कुछ भारतीय नेताओं ने किया। वर्ष 1880 के दशक में इस आंदोलन ने जोर पकड़ लिया। इसके परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने मंदिर के नियंत्रण को हिंदू धर्म और बौद्धों की एक समिति बनाकर सौंप दिया।
बिगत माघी पूर्णिमा से बौद्ध भिक्षु महाबोधि मंदिर के संचालन को पुर्ण रूप से बौद्ध भिक्षुओं को सौंपने को लेकर धरना दे रहे हैं। इस धरना के समर्थन में बोकारो बुद्ध विहार से एक टीम बोध गया को प्रस्थान की। टीम में ए. पी. वर्मा, सुनील प्रसाद, कुंवर कुशवाहा, सुनील गांधी, धर्मेंद्र कुमार, अरविंद मेहता आदि शामिल थे।
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