सिंथेटिक पाराथाइराइड दवा का छिड़काव कार्य शुरु
अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। बिहार राज्य के सारण जिला में कालाजार उन्मूलन के लिए विभागीय स्तर पर कवायद जारी है। जिलावासियों को जागरूक करने एवं कालाजार की रोकथाम के लिए कीटनाशक के छिड़काव का काम शुरू कर दिया गया है। जिले के 20 प्रखंडों के 239 गांवों में कालाजार उन्मूलन को लेकर दवा का छिड़काव किया जायेगा। फिलहाल कुछ प्रखंडों मे दवा का छिड़काव शुरु किया जा चुका है।
इस संबंध में जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ दिलीप कुमार सिंह ने 24 फरवरी को बताया कि सारण जिले में 20 प्रखंडों के 157 पंचायत में 239 गांवों के 176275 घरों में दवा का छिड़काव किया जायेगा। इसके लिए 52 टीम का गठन किया गया है। बताया कि उक्त अभियान बीते 18 फरवरी से शुरू होकर आगामी 19 अप्रैल यानि अगले 60 दिनों तक प्रथम चरण का छिड़काव होगा।
उन्होंने जिलावासियों से अपील करते हुए कहा कि दवा छिड़काव के पूर्व घर की अंदरुनी दीवार की छेद/दरार बंद कर दें। घर के सभी कमरों, रसोई घर, पूजा घर एवं गोहाल (गौशाला) के अन्दरूनी दीवारों पर 6 फीट तक छिड़काव अवश्य कराएं एवं छिड़काव के दो घंटे बाद घर में प्रवेश करें। कहा कि छिड़काव के पूर्व भोजन सामग्री, बर्तन, कपड़े आदि को घर से बाहर रख दें।
ढाई से तीन माह तक दीवारों पर लिपाई-पोताई ना करें, जिसमें कीटनाशक (एसपी) का असर बना रहे। इस दौरान मच्छरदानी लगाकर सोने, घरों के आसपास साफ-सफाई रखने और नालियों को साफ रखने के लिए स्वास्थ्य कर्मी के माध्यम से रहिवासियों को जागरूक किया जाएगा। ताकि, वेक्टर जनित रोग जैसे कालाजार, मलेरिया, डेंगू से बचाव के लिए जिलावासियों को प्रेरित किया जा सके।
वीडीसीओ अनुज कुमार ने बताया कि कालाजार मादा फाइबोटोमस अर्जेंटिपस (बालू मक्खी) के काटने के कारण होता है, जो कि लीशमैनिया परजीवी का वेक्टर (या ट्रांसमीटर) है। किसी जानवर या मनुष्य को काट कर हटने के बाद भी अगर वह उस जानवर या मानव के खून से युक्त है तो अगला व्यक्ति जिसे वह काटेगा वह संक्रमित हो जायेगा। उन्होंने बताया कि इस प्रारंभिक संक्रमण के बाद के महीनों में यह बीमारी और अधिक गंभीर रूप ले सकती है, जिसे आंत में लिशमानियासिस या कालाजार कहा जाता है।
ज्ञात हो कि कालाजार से पीड़ित रोगी को मुख्यमंत्री कालाजार राहत योजना के तहत श्रम क्षतिपूर्ति के रूप में पैसे भी दिए जाते हैं। बीमार व्यक्ति को राज्य सरकार की ओर से 6600 रुपये और 500 रुपए केंद्र सरकार की ओर से दिए जाते हैं। यह राशि वीएल (ब्लड रिलेटेड) कालाजार में रोगी को प्रदान की जाती है। वहीं चमड़ी से जुड़े कालाजार (पीकेडीएल) में 4000 रुपये की राशि केंद्र सरकार की ओर से दी जाती है।
इसके लक्षणों में लगातार रुक-रुक कर या तेजी के साथ दोहरी गति से बुखार आना, वजन में लगातार कमी होना, दुर्बलता, मक्खी के काटे हुए जगह पर घाव होना, व्यापक त्वचा घाव जो कुष्ठ रोग जैसा दिखता है, प्लीहा में नुकसान होता है।
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