वसंत पंचमी पर की गयी विद्या की देवी सरस्वती की विधि विधान से पूजा अर्चना

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला मुख्यालय छपरा सहित सम्पूर्ण जिले में 3 फरवरी को वसंत पंचमी का उत्सव धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा अर्चना विधि विधान के साथ की गयी।

ज्ञात हो कि, वसंत पंचमी से पूजा-पंडालों में होली – फगुआ गायन का शुभारंभ भी किया गया। देवी की पूजा के साथ उमंग और उल्लास के इस वसंतोत्सव पर भक्तों ने एक दूसरे को गुलाल लगाकर बधाई और शुभकामनाएं दीं। सारण जिला के हद में सोनपुर प्रखंड क्षेत्र की बात करें तो नगर से लेकर ग्रामीण क्षेत्र तक हर इलाका सरस्वती पूजा में मगन दिखा। यहां सरकारी एवं गैर सरकारी शिक्षण संस्थानों में भी जहां पूजा की परंपरा रही है। छात्र – छात्राओं ने सादगी के साथ मां सरस्वती की पूजा की।

प्रसाद का वितरण प्रत्येक पूजा पंडालों में श्रद्धालुओं के बीच किया गया। विद्या की देवी सरस्वती के प्राकट्य दिवस पर पूजा पंडालों को आकर्षक ढंग से सजाया गया था।गांव, टोले और मोहल्ले में मां शारदे की मिट्टी की प्रतिमाओं को स्थापित कर पूजा की जा रही थी। वैदिक मंत्र उच्चारण के साथ जैसे ही मां का पट खुला, वैसे ही मां शारदे की जय -जयकार से पूरा वातावरण गूंज उठा। मां सरस्वती की अराधना में भक्तगण दिनभर डूबे रहे। छात्र- छात्राओं ने मां सरस्वती से ज्ञान और विद्या की कामना की।

श्रद्धालुओं ने केसउर, गाजर, बैर, मकोय, सेव, नारंगी, खीर, लड़डू से माता सरस्वती को भोग लगाकर उनके चरणों में अबीर -गुलाल, कलम, पाठ्य पुस्तक तथा अन्य सामग्री चढ़ाकर आशीर्वाद ग्रहण किया। इस अवसर पर पूजा पंडालो में विद्यादायिनी मां सरस्वती की भक्ति गीतों और जयकारों से सम्पूर्ण वातावरण दिन और रात भर गूंजता रहा। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती का धरती पर आगमन हुआ था।

बता दे कि बसंत पंचमी एक धार्मिक उत्सव है और देवी सरस्वती का प्राकट्य दिवस होने के कारण महापर्व भी है। इस दिन देवी सरस्वती की आराधना विशेष रूप से की जाती है। मां सरस्वती के बारे में कहा जाता है कि ये मूर्ख को भी विद्वान बना सकती हैं। वे समस्त ज्ञान, कला, संगीत और विद्या की देवी मानी जाती हैं। वे भारती, शारदा, वागेश्वरी, विणापाणी, वाग्देवी, महाश्वेता, ज्ञानदा, हंसवाहिनी, ब्राह्मी, वागीशा, बुद्धिदात्री, भुवनेश्वरी, भारती, विद्यारूपा, सुरवन्दिता, सुरपूजिता, गिरा, ब्रह्मजाया, वाक्, जगती, शास्त्ररूपिणी, हंसासना आदि नाम से जानी जाती हैं।

मां शारदे की उपरोक्त सभी नामों से पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को मां की कृपा प्राप्त होती है और ज्ञान, कला के साथ-साथ सभी कार्यों में निपुणता का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। इस दिन किताब और कलम की पूजा-अर्चना करने का विधान सदियों से चला आ रहा है। स्कूलों, कॉलेज, विभिन्न शिक्षण संस्थानों, यहां तक की छात्राएं अपने घरों में भी मां सरस्वती की पूजा विधि -विधान के साथ कर मन से आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। मां सरस्वती की प्रतिमा स्थल के समीप किसी प्रकार की अशांति न हो, इसको लेकर पुलिस प्रशासन की व्यापक व्यवस्था देखी गई।

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