मुश्ताक खान/ मुंबई। सिंधी समाज (Sindhi samaj) का सबसे महत्वपूर्ण पर्व चालिया साहेब (Chalia Saheb) का आज 12वां दिन है। चालीस दिनों तक चलने वाले चालिया पर्व कि जय-जयकार मुंबई व आस-पास के शहरों के अलावा पूरे देश में होने लगी है। सिंधियों के महापर्व में आस्था के पुजारियों के जमावड़े से गुलजार हुआ आशीष तालाब (Asish Talab), झूलेलाल (Jhulelal) की जय-जयकार से चेंबूर भक्तिमय हुआ। सिंधी समाज का मानना है कि इस पर्व में जल देवता की अराधना से इष्ट देव प्रसन्न होंगे।
गौरतलब है कि सिंधी समाज के लोगों द्वारा करीब पांच दशकों से चेंबूर कैंप के पूज्य भाजी पाला पंचायत (Pujya Bhaji Pala Panchayat Chembur Camp) की देख रेख में चालिया महापर्व को धूमधाम से मनाया जाता है। इसे विधिवत तरीके से वरनपुरी जल आश्रम मंदिर से हर शाम ढोल नगाड़ों के साथ समाज के लोग निकलते हैं। चेंबूर कैंप से आशीष तालाब पर विधिवत रूप से आरती के बाद पूजा होती है।
इसके बाद जल देवता को श्रद्धालुओं द्वारा दूध, खीर, चावल आदि का चढ़ावा चढ़ाया जाता है। पूज्य भाजी पाला पंचायत के मुखिया रमेश लोहाना (Ramesh Lohana) ने बताया की चालीस दिनों तक चलने वाले चालिया पर्व का विशेष महत्व है। बताया जाता है कि सूफी परंपरा से प्रेरित इस सिंधी समुदाय की संख्या भारत में कम है लेकिन हर संस्कृति की तरह इनके भी अपने कुछ विशेष पर्व हैं। सिंधी समुदाय अपने इष्ठ देव भगवान झूलेलाल की जयंती को बेहद धूमधाम से मनाते हैं, जो चेटीचंड के नाम से भी जाना जाता है।
झूलेलाल की जयंती की विशेष बातें
इष्ठ देव भगवान झूलेलाल जल-देवता वरुण का अवतार माना जाता है। उनका जन्म चैत्र शुक्ल पक्ष द्वितीया संवत 1007 में हुआ। झूलेलाल की शक्ति से प्रभावित होकर मिरक शाह ने अमन का रास्ता अपनाकर बाद में कुरुक्षेत्र में एक ऐसा भव्य मंदिर बनाकर दिया, जो आज भी हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक और पवित्र स्थान माना जाता है।
पाकिस्तान के सिंध प्रांत से भारत के अन्य प्रांतो में आकर बसे हिंदुओं में झूलेलाल को पूजने का प्रचलन ज्यादा है। झूलेलाल को वेदों में वर्णित जल-देवता, वरुण का अवतार माना जाता है। झूलेलाल के अनुयायी उन्हें जिन्दपीर, लालशाह, पल्लेवारो, ज्योतिनवारो, अमरलाल, उदेरोलाल, घोड़ेवारो आदि नामों से संबोधित करते हैं।
वरुण देव को सागर के देवता, सत्य के रक्षक और दिव्य दृष्टि वाले देवता के रूप में सिंधी समाज भी पूजता है। सिंधी समाज के भगवान झूलेलाल का अवतरण धर्म के लिए हुआ है। बता दें कि सिंधी समाज भारत में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। व्यापार से जुड़ा यह वर्ग विभाजन से पूर्व भारत के विभिन्न शहरों में रहकर अपने लिए विशेष मुकाम बनाने में सफल रहा है।
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