एस. पी. सक्सेना/पटना (बिहार)। बूढ़े सास ससुर की सेवा करते हुए कुच्चि के पात्र में मुंबई से आयी साईस्ता व् नाटक के नायिका कुच्ची के पति के किरदार में मनीष महिवाल ने दिल्ली के दर्शकों का दिल जीत लिया। महिवाल मुलरूप से बिहार प्रांत के वैशाली जिले के रहिवासी हैं। महिवाल पेशे से रंगकर्मी व् चर्चित टीवी कलाकार भी हैं।
देश की राजधानी दिल्ली मे चल रहे पांच दिवसीय महोत्सव के तहत नाटक कुच्ची का कानून का जबरदस्त मंचन किया गया। बिहार प्रदेश की चर्चित नाट्य संस्था प्रवीण सांस्कृतिक मंच की ओर से इस वर्ष पहली बार प्रवीण स्मृति नाट्य महोत्सव दिल्ली के श्रीराम सेंटर में आयोजित किया जा रहा है।
दिसंबर माह के प्रथम सप्ताह में दिल्ली वासियों को पूर्वांचल की नाट्य कला व् सांस्कृतिक धरोहरों की छठा देखने को मिल रहा है। बीते 7 दिसंबर की शाम शिवमूर्ति लिखित नाटक कुच्ची का कानून दर्शकों से खचाखच भरे प्रेच्छा गृह् में प्रस्तुत की गई। पांच दिवसीय प्रवीण स्मृति नाट्य महोत्सव के दूसरे दिन कुच्ची का कानून नाटक का मंचन किया गया। यह शिवमूर्ति की लिखी कहानी है, जिसका नाट्य रुपांतरण अभिजीत चक्रवर्ती ने किया।
प्रस्तुत नाटक का निर्देशन बिजयेंद्र कुमार टांक ने किया है। नाटक में कुच्ची कहती है कि मेरा कहना है कि कोख देकर ब्रह्ना ने औरतों को फंसा दिया। अपनी बला उनके सिर डाल दी। अगर दुनिया की सारी औरतें अपनी कोख वापस कर दे। क्या ब्रह्मा के वश का है कि वे जब मेरे हाथ-पैर, आंख, कान पर मेरा हक है, इनपर मेरी मर्जी चलती है, तो मेरी कोख पर किसका हक होगा? उसपर किसकी मर्जी चलेगी? इन सवालों के साथ महिलाओं की स्वतंत्रता और हक के हनन के खिलाफ एक आवाज उठाती है कुच्ची।
भारतीय समाज प्राचीन काल से ही पुरुष सत्तात्मक रहा है। इसमें महिलाओं की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति व संवेदना का कोई महत्व नहीं रहा है। उन्हें मात्र एक वस्तु के रूप में प्रयोग करने की सामग्री समझा गया है। कुच्ची विधवा होते हुए बिना दूसरा विवाह किए गर्भ धारण करती है, जो समाज के पुरुष मानसिकता को नागवार गुजरता है। प्राचीन काल से बस इसी मानसिकता के डर से कई बच्चे मारे जाते एवं गिराए जाते रहे हैं, जिन्हें समाज नाजायज समझता है।
पर कुच्ची अपने बच्चे को पैदा करने के लिए अपनी पूरी ऊर्जा से सारे समाज के सामने खड़ी हो जाती है…. और कहती है कि सीता की माई डर गई। अंजनी की माई डर गई, पर बालकिशन की माई नहीं डरने वाली। मेरा बालकिशन पैदा होकर रहेगा, लेकिन क्या किसी एक महिला की हिम्मत से पितृ सत्तात्मक मानसिकता बदल सकती है? प्रस्तुत नाटक में कलाकार शाइस्ता खान, मृत्युंजय प्रसाद, प्रतिमा कुमारी, जफर, राहुल रंजन, रोहित चंद्र, स्पर्श मिश्रा, मनीष महिवाल आदि ने अपने बेहतरीन अभिनय का परिचय दिया है।
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