अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में विश्व प्रसिद्ध हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला में दरियापुर प्रखंड के बेला पंचायत की बांसुरी की धूम मची है। यहां के पांच दर्जन से अधिक बांसुरी विक्रेताओं ने मेले में डेरा डाल दिया है।
बेला की बांसुरी से मेला क्षेत्र का हर कोना गूंज रहा है। बांसुरी की मीठी तान को सुनकर मेला में घूम रहे नन्हें बच्चे उसे पाने के लिए सबसे ज्यादा मचल रहे हैं। उनके अभिभावक उनके जिद को पूरा भी कर रहे हैं।
सोनपुर मेले के मीना बाजार, हरिहरनाथ मंदिर चौक, मीना बाजार सिंदूर चौक, नखास मेला मुख्य मार्ग, लकड़ी बाजार रोड, नखास चौक, नखास हरिहरनाथ द्वार, आर्य समाज मंदिर, डिज्नी लैंड, शहीद महेश्वर चौक, गज-ग्राह चौक, चिड़िया बाजार थाना रोड, बकरी बाजार चौक के अलावा मेला के थियेटर पुलिस चौकी रोड में इन बांसुरी विक्रेताओं की रंग-बिरंगी बांसुरियों का जलवा बरकरार है। यहां के आर्ट एंड क्रॉफ्ट मेला ग्राम में भी इन बांसुरी विक्रेताओं की बांसुरी की धुन गूंज रही है। यहां भीड़ अधिक है और बांसुरी खूब बिक रही है।
जिले के कई प्रखंडों की मुरली की मेला में हो रही बिक्री
हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले में बेला की बांसुरी के अतिरिक्त बनियापुर की बांसुरी भी बिक रही है। बांसुरी की मनमोहक ध्वनि बच्चों को अपनी ओर सहज ही आकर्षित कर ले रही है, जिसके कारण उसकी बिक्री भी हो रही है। ऐसा माना जाता है कि मुरलीधर श्रीकृष्ण ने सर्वप्रथम मुरली बजाई थी। उन्होंने ही इसका आविष्कार भी किया था। जब बचपन में वे गैया चराने मधुवन जाते थे तो अकेलापन से बचने के लिए उन्होंने जंगली बांस से मुरली निर्माण और उससे ध्वनि निकालने का अविस्मरणीय अविष्कार कर लिया।
ज्ञात हो कि, मुरली बांसुरी का ही प्राचीनतम रुप है। इसका आविष्कार द्वापर काल में भगवान श्रीकृष्ण ने किया था। तबसे बांसुरी को हिंदू धर्म में पवित्र वाद्य माना जाता है। बांसुरी केवल बांस से बनाई जाती है। बांस का होना बांसुरी की अनिवार्य शर्त और पहचान है।
सारण जिला के हद में बनियापुर के मुरली विक्रेता रफ़ीक अहमद बताते हैं कि उनके क्षेत्र के करीब आधा दर्जन मुरली या बासुंरी विक्रेता मेले में घूम-घूम कर बांसुरी बेंच रहे हैं। मुरली भी विविध रंग की है, और उसका शुल्क भी अलग -अलग है। इसी तरह इसी जिले के दरियापुर प्रखंड के बेला मठिया और महमदपुर के बांसुरी विक्रेताओं की टोली दर्जनाधिक संख्या में मेला में बांसुरी बेचकर अपनी जीविका चला रहे है। इन्हें ज्यादा मुरली बिक्री के लिए मेला में और भीड़ का इंतजार है।
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