हरिहरक्षेत्र मेले में 109 वर्ष पूर्व 1915 में हुआ था अखिल भारतवर्षीय सनातन धर्म सम्मेलन

महाराज दरभंगा सभापति, हथुआ महाराज संरक्षक एवं रीवा महाराज थे मुख्य अतिथि

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में सोनपुर में लगने वाले हरिहरक्षेत्र मेला का धार्मिक और आध्यात्मिक अतीत सनातन हिंदू धर्म के अनवरत प्रचार-प्रसार के कारण गौरवपूर्ण रहा है।

ज्ञात हो कि, यह मेला सारण जिले के पूर्वी द्वार पर नारायणी, जाह्नवी और मही नदियों के पावन संगम पर सदियों से लगता रहा है। आज से 109 वर्ष पूर्व देशी राजा महाराजाओं का इस मेले में अभूतपूर्व एकत्रीकरण हुआ था, जिसमें सनातन धर्म की रक्षा के साथ- साथ उसके प्रचार-प्रसार का संकल्प भी लिया गया था। उक्त मौके पर आयोजित धर्म सम्मेलन के सभापति महाराज दरभंगा थे। धर्मात्मा महाराज रीवा व महाराज हथुआ भी सम्मेलन के मुख्य संरक्षक थे।

धर्म की जय हो और अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो और विश्व का कल्याण हो का महामंत्र इसी हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला से राष्ट्रव्यापी प्रसारित हुआ और आज भी जन-जन की वाणी बना हुआ है। यह धर्म सम्मेलन सोनपुर के अखिल भारत वर्षीय सनातन धर्म के सभा भवन में वर्ष 1915 के कार्तिक मेले के समय हुआ, जिसमें 20 से 25 हजार मेला दर्शकों ने शिरकत की थी।

इसी वर्ष 27 नवम्बर को प्रकाशित पाटलिपुत्र नामक अखबार ने कहा है कि धर्म सम्मेलन के सभापति महाराज दरभंगा के बगल में बायीं ओर महाराज रीवां और दाहिने ओर महाराज हथुआ विराजे थे। तब सम्मेलन के स्वागताध्यक्ष व्याख्यान वाचस्पति पंडित दीन दयालु शर्मा ने अपने स्वागत भाषण में कहा था कि महाराज रीवां के शुभ आगमन से आज यहां की अपूर्व शोभा हो गयी है।

जिस प्रकार हरिहरक्षेत्र में नारायणी, जान्हवी और मही का संगम है, इसी प्रकार यहां रीवां, दरभंगा और हथुआ नरेशों का सम्मेलन हुआ है। कहना चाहिए कि यहां महाराज रीवां कृष्ण भक्त होने के कारण विष्णु रूप से, हमारे सभापति दरभंगा महाराज रामेश्वर शिव रुप से और महाराज हथुआ ब्राह्मण होने के कारण ब्रह्मा स्वरुप से एकत्र हुए हैं। आज इन त्रिदेवों का सम्मेलन यथार्थ में धर्म सम्मेलन हुआ है।

धर्म सम्मेलन में हुआ सनातन धर्म की जय का उद्घोष

इस सम्मेलन में धर्म की जय का उद्घोष जन- जन की वाणी बना। राजा महाराजाओं का आश्रय मिलने के कारण आम जनता भी काफी खुश हुई। पाटलिपुत्र ने अपने इसी अंक में सनातन संस्कार का जिक्र करते हुए कहा है कि सर्वप्रथम महाराज रीवां ने मेला स्थित धर्म

सभा मंडप के दरवाजे पर दर्शन दिया। जनता ने बड़े प्रेम से महाराज रीवां का स्वागत और अभिनंदन किया। महाराज रीवा के सभा मंडप में प्रवेश करते हुए महाराज दरभंगा और हथुआ ने सभा मंडप के बीच अग्रसर हो महाराज की अभ्यर्थना की। ब्राह्मण भक्त महाराज रीवां ने दोनों नरेशों के पैर छू प्रणाम किया। यह दृश्य इस गिरे जमाने में भी ब्राह्मण गौरव का महात्म्य बढ़ाने वाला था।

दंडीस्वामी स्वामी सहजानंद सरस्वती की पुस्तक ब्रह्मर्षि वंश विस्तर में है इसका वर्णन

स्वामी सहजानंद सरस्वती ने अपनी पुस्तक ब्रह्मर्षि वंश विस्तर में इसका विस्तार से वर्णन किया है। तब से अब तक यह मेला सनातन धर्म का लगातार अलख जगाता रहा है। राजे- महाराजे तो अब नहीं रहे और न अब उनके वंशजों का ही यहां आना होता है, परंतु वर्षों पूर्व इन धर्मात्मा नरेशों ने धर्म की जय-जयकार की जो अलख यहां जगायी वह आज भी इसकी फिजा में गुंज रहा है।

बिहार के दरभंगा राज घराने के महाराज रामेश्वर सिंह सनातन हिंदू धर्म के महान प्रचारक थे। उन्होंने अनेक मठ मंदिरों का निर्माण कराया। इस भारत वर्षीय सनातन धर्म सम्मेलन के वे सभापति थे। हथुआ महाराज गुरु महादेव आश्रम प्रसाद साही बहादुर इस सम्मेलन सभा के संरक्षक थे और रीवा महाराज वेंकट रमण सिंह मुख्य अतिथि बतौर उपस्थित थे। भारत वर्षीय सनातन सभा के ये तीनों रीढ़ की हड्डी की तरह थे। इन तीनों महाराजाओं की उपस्थिति से हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला का आध्यात्मिक परिदृश्य भक्तिमय हो गया था।

 61 total views,  61 views today

You May Also Like

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *