आज ही के दिन 1822 को हरिहरक्षेत्र मेला में हुआ था 50 राजा व् 50 नवाबों का समागम

पचास हजार ब्राह्मणों ने अपनी उपस्थिति से बढ़ाया था मेले की गौरव गरिमा

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में विश्व प्रसिद्ध हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला में आज से 202 वर्ष पूर्व 28 नवंबर 1822 को लगे मेले में भारत वर्ष के 50 राजा व् 50 नवाबों का ऐतिहासिक समागम हुआ था। आज मेला के जिस अंग्रेजी बाजार में सारण के आला अधिकारियों का तंबू और शामियाना खड़ा है, वहीं पर उनका खेमा गड़ा था।

उक्त अवसर पर लखनऊ सहित देश के विभिन्न प्रांतों के 20 हजार उमरांव एवं जमींदार भी मौजूद थे। सबसे खास बात यह थी कि हिन्दू समाज के अग्रणी व सजग प्रहरी माने जाने वाले विभिन्न कोटि के 50 हजार वेदपाठी ब्राह्मणों का भी जमावड़ा हुआ था। इन ब्राह्मणों की उपस्थिति से मेले की गौरव-गरिमा में चार-चांद लग गया था। तब मेला क्षेत्र के कालीघाट व हाजीपुर के कौनहारा घाट पर गंगा-गंडक नदियों का संगम हुआ करता था।

इसी संगम स्थल पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन बिहार प्रांत के हिन्दुओं का विशाल जमावड़ा हुआ और संगम के पावन जल में उन्होंने डुबकी लगायी। यह रहस्योद्घाटन एक प्रसिद्ध बंगला पत्रिका संवाद कौमुदी में किया गया है।

उपरोक्त पत्रिका के बिहार की राजधानी पटना स्थित संवाददाता ने लिखा है कि उस समय गंगा-गंडक नदियों का संगम हाजीपुर के कौनहारा घाट एवं सोनपुर मेला के काली घाट के बीच हुआ करता था।यह मेला 28 नवम्बर को आरंभ हुआ था। इस अवसर पर साधु-संतों का महामिलन देखने लायक था।संपूर्ण गंगा-गंडकी नदी का दोनों किनारा स्नानार्थियों से पटा पड़ा था।पूजा-पाठ, मंत्र-तंत्र, झाड़-फूंक का तब भी नजारा था, जैसा कि आज भी है। गंगा और नारायणी की जय- जयकार से संपूर्ण सोनपुर एवं हाजीपुर क्षेत्र गूंज रहा था।

सन् 1822 ई. के मेले में बिहार के 5 लाख स्त्री-पुरुषों ने की थी शिरकत

तब हरिहर क्षेत्र मेले में मनोरंजन के साधनों की भी कोई कमी नहीं थी। भला मनोरंजन न हो तो मेला ही क्या? तब के श्रद्धालू भी आज की तरह नृत्य-गीत, वाद्य और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दीवाने थे। यही कारण है कि तब भी हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले में रंगारंग कार्यक्रम हुआ करता था और इसके अच्छे दर्शक थे।

यहां अंग्रेजों के अतिरिक्त बिहार प्रांत के दुकानदार और पशुपालक भी घोड़े, गाय, बैल, हाथी और ऊंट खरीद-बिक्री के लिए बड़ी संख्या में मेले में पहुंचे थे। यह मेला तब हरिहरक्षेत्र मेला के नाम से जाना जाता था। मालूम हो कि बाबा हरिहर नाथ का मंदिर सोनपुर में स्थापित होने के कारण हरिहरक्षेत्र कहलाता है। इसी नाम पर हरिहर क्षेत्र मेला लगता है।

संवाद कौमुदी ने यह भी लिखा है कि 1822 ई. के इस मेले में 5 लाख स्त्री- पुरूष ने शिरकत की थी। तब यह मेला सात दिनों का था। मेले में वरीय पदाधिकारियों समेत चार सौ अंग्रेजों ने भाग लिया था। आज यह मेला पशु मेला, कृषि मेला, धार्मिक मेला व अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। तब भी व्यवसाय होता था और अब भी होता है।

उस वर्ष घोड़ा व्यापारियों की संख्या दस हजार थी, जबकि सामान्य व्यापारियों की संख्या भी पांच हजार आंकी गयी थी। मेले में सर्वाधिक 50 हजार घोड़ा, 5 हजार गाय और बैल, हाथियों की संख्या भी जब दो सौ थी। आज की तरह उस समय भी बकरी, भेड़, कुत्ता, बिल्ली, तोता, बुलबुल आदि की बिक्री होती थी। पांच सौ बकरी, भेड़, कुत्ता, बिल्ली भी बिक्री के लिए आए थे। रंग-बिरंगी चिड़ियों की तादाद भी 20 हजार थी। अब मेले में चिड़ियों की बिक्री पर रोक है।

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