दशरथ मांझी नाट्य महोत्सव के तीसरे दिन देवासुर संग्राम नाटक की प्रस्तुति

एस. पी. सक्सेना/पटना (बिहार)। बिहार की राजधानी पटना की सांस्कृतिक संस्था लोक पंच द्वारा शेखपुरा जिला के हद में बरबीघा के बेलाव में आयोजित 4 दिवसीय दशरथ मांझी नाट्य महोत्सव के तीसरे दिन 11 अक्टूबर को देवासुर संग्राम नाटक का मंचन किया गया। गौरव कुमार निर्देशित नाटक देवासुर संग्राम का उपस्थित दर्शकों ने भरपूर आनंद उठाया।

उक्त जानकारी देते हुए लोक पंच के सचिव मनीष महीवाल ने बताया कि जहाँ शहरी क्षेत्र की अन्य संस्थाएं केवल शहर में ही नाटकों का प्रदर्शन करती हैं, वही लोक पंच द्वारा विगत 8 वर्षों से बिहार के विभिन्न जिलों के ग्रामीण हलकों में नाट्य महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है, ताकि नाट्य कला उन जगहों तक पहुंच सके, जहाँ के रहिवासी इससे परिचित नहीं है।

उन्होंने बताया कि महोत्सव के तीसरे दिन 11 अक्टूबर को प्रयत्नम द्वारा गौरव कुमार निर्देशित नाटक देवासुर संग्राम की प्रस्तुति की गयी। इस नाटक में आंसूरी शक्ति का प्रतीक प्रलंभासुर और रम्भासुर नाम का पात्र है। दोनों असुरो द्वारा ब्रम्भा जी को तपस्या कर खुश करना चाहता है, पर देवराज इंद्र इन दोनो को तपस्या करते ही मार देते हैं। वे यह सोंचकर कि इनकी तपस्या से खुश होकर भगवान ने अगर वरदान दे दिया तो कल यह देवताओं का दुश्मन बन जाएंगे। जिससे देव गण मुश्किल में पड़ जाएंगे।

नाटक के अनुसार इस असुर कुल में महिषी नाम की एक कुलवधू रहती है, जो भगवान की बहुत पूजा करती है। इंद्र उसके इष्ट देव हैं और वही उसके पति कर्मबासुर की हत्या कर देते हैं। मनीषी जब अपने पति का कटा सिर देखती है तो बिलाप करने लगती है। वह कहती है कि मुझे भी इनके साथ सती हो जाना है। वह देवराज इंद्र को श्राप देती है कि जिस तरह से आज मैं वेदना भोग रही हूं, उसी तरह से एक दिन तुम भी भोगोगे।

फिर वो चिता पर बैठ जाती है। उसको एक वरदान रहता है अग्नि देव से कि तुम्हारा पुत्र अग्नि में कभी नहीं जलेगा। जब वह चिता पर बैठी है, इस समय वह अपने तपस्या के बल से अग्नि में भस्म हो जाती है। उसी अग्नि से पुत्र को जन्म देती है। वह पुत्र महिषासुर के रूप में पैदा होता है। बाद में वह देवताओं से बदला लेता है और सभी देवताओं को बंदी बना लेता है। अंत में मां दुर्गा महिषासुर का संघार करती है और देवताओं को मुक्त करवाती है।

महीवाल के अनुसार प्रस्तुत नाटक देवासूर संग्राम में कर्मभासुर दीपक पांडेय, राम्भासुर अंकित कुमार, प्रलंभासुर राकेश राज, महिषासुर मंटू कुमार, रक्तासुर नीरज पांडेय, चिक्षुर महेंद्र साव, कराल सुधीर राम, ब्रह्म सुधाकर पांडेय, इंद्र विजय रजक, कार्तिकेय राजू मंडल, वृहस्पति सतीश प्रसाद तथा महिषी सिकंदर रजक, जबकि मंच से परे नैपथ्य में प्रकाश राम प्रवेश, संगीत अभिषेक, हारमोनियम राजू मिश्रा, नाल राम अयोध्या, नगाड़ा मुन्ना यादव, प्रस्तुति नियंत्रक नीरज शुक्ला, लेखक बी. पी. राजेश का सराहनीय योगदान रहा है।

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