प्रहरी संवाददाता/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में विश्व विख्यात हरिहर क्षेत्र सोनपुर स्थित श्रीगजेन्द्र मोक्ष देवस्थान नौलखा मन्दिर में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव आगामी 27 अगस्त को मनाया जायेगा।
हरिहरक्षेत्र श्रीगजेंद्र मोक्ष पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी लक्ष्मणाचार्य महाराज ने 22 अगस्त को उपरोक्त जानकारी देते हुए बताया कि प्रत्येक वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की तिथि को लेकर भक्तों के बीच असमंजस की स्थिति उत्पन्न होती है। यह सवाल भी उठता है कि कृष्ण जन्माष्टमी पर्व दो दिन क्यों मनाया जाता है?
उन्होंने इसका कारण बताते हुए कहा कि स्मार्त संप्रदाय के अनुयायी जन्माष्टमी पर्व के दिन अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र में मध्य रात्रि के समय भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करते हैं। वहीं श्रीवैष्णव संप्रदाय के अनुयायी जन्माष्टमी पूजा सूर्योदय काल रोहिणी नक्षत्र होने अथवा उषाकाल से अर्द्ध रात्रि रोहिणी नक्षत्र में मनाते हैं।
इसलिए दो दिन जन्माष्टमी पर्व मनाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण चन्द्र वंश से हैं। उनके पूर्वज चंद्रदेव थे। रोहिणी चंद्रमा की पत्नी व नक्षत्र हैं, इसी कारण रोहिणी नक्षत्र में भगवान ने जन्म लिया। वहीं अष्टमी तिथि शक्ति का प्रतीक मानी जाती है।
कहा कि मध्य रात्रि के समय भगवान श्रीकृष्ण की उपासना करते हैं। वहीं श्रीवैष्णव संप्रदाय के अनुयायी जन्माष्टमी पूजा सूर्योदय काल रोहिणी नक्षत्र होने अथवा उषाकाल से अर्द्धरात्रि रोहिणी नक्षत्र में मनाते हैं। इसलिए दो दिन जन्माष्टमी पर्व मनाए जाते हैं।
लक्ष्मणाचार्य महाराज ने बताया कि श्रीकृष्ण को कई कठिन कार्यों को पूरा करने के लिए पृथ्वी पर मायावी शक्ति की मदद लेने के लिए इस नक्षत्र में जन्म लेना आवश्यक था। कृष्ण को सबसे स्थिर, सांसारिक और अच्छी तरह से संतुलित, ईमानदार, शुद्ध व्यक्तित्व की आवश्यकता थी। यह केवल रोहिणी नक्षत्र ही इसे दे सकता था।
स्वामी लक्ष्मणाचार्य ने कहा कि भगवान विष्णु के 8वें अवतार और दिव्य प्रेम और आनंद के अवतार भगवान कृष्ण अपने दिव्य गुणों को केवल रोहिणी नक्षत्र के माध्यम से ही सर्वोत्तम रूप से व्यक्त कर सकते थे।
कहा कि रोहिणी नक्षत्र के राजसिक गुण का अगर दृढ़ संकल्प के साथ उपयोग किया जाए तो यह व्यक्ति को सच्चा कर्म योगी बना सकता है। वह नि:स्वार्थ शुद्ध कर्मों के माध्यम से ईश्वर से मिलन प्राप्त करता है।
भगवान कृष्ण भगवद गीता के अध्याय 3 के श्लोक 7 में कहते हैं कि यस्तविन्द्रियानिमनसा नियम्यारभते अर्जुन कर्मेन्द्रियैः कर्म-योगम् असक्तःविसिस्यते अर्थात जो मनुष्य मन के द्वारा इन्द्रियों को वश में रखता है और अपनी सक्रिय इन्द्रियों को आसक्ति रहित होकर भक्ति के कार्यों में लगाता है, वह सबसे श्रेष्ठ है।
स्वामी लक्ष्मणाचार्य महाराज बताते हैं कि भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र में भगवान सूर्य देव का 27 अगस्त को उदय हो रहा है। ऐसे में जो श्रद्धालू रोहिणी नक्षत्र में पूजा-पाठ करेंगे, वे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत 27 अगस्त दिन रखेंगे। बताया कि नौलखा मन्दिर में इस दिन बड़े धूमधाम से श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया जायेगा। मन्दिर प्रबंधक नन्द बाबा ने बताया कि उत्सव की तैयारी अभी से हीं उत्साह पूर्वक की जा रही है।
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