एस. पी. सक्सेना/रांची (झारखंड)। झारखंड में डोमिसाइल नीति के दौरान आंदोलन में वीर शहीदों के सपने 22 वर्षो के बाद भी अधूरे है। माय, माटी की बात करने वाले हेमंत सरकार उन वीर शहीदों के सपनों को पूरा करे, अन्यथा सरकार को इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
उपरोक्त बातें 24 जुलाई को झारखंडी सूचना अधिकार मंच के केंद्रीय अध्यक्ष सह पूर्व प्रत्याशी हटिया विधानसभा क्षेत्र विजय शंकर नायक ने कही। नायक डोमिसाइल आंदोलन में आज से 22 वर्ष पूर्व शहीद हुए वीर संतोष कुंकल, कैलाश कुजूर तथा विनय तिग्गा के शहादत के अवसर पर शहीदों की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उक्त बातें कही।
नायक ने कहा कि यह आक्रोश का विषय है कि पूर्ववर्ती भाजपा, झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन की सरकारों ने झारखंड के आदिवासी मूलवासी समाज की भावनाओं को सम्मान देने का काम नहीं किया।
आज तक जो राज्य निर्माण के समय झारखंड के झारखंडी समाज द्वारा देखे गए सपने थे कि अबुवा दिशुम, अबुआ राज यानी अपना प्रदेश अपना राज्य में झारखंड के दलित आदिवासी मूलवासी समाज का उत्थान होगा। उनका हरेक क्षेत्र में भागीदारी सुनिश्चित होगी।
मगर दुर्भाग्य कि पूर्व के सभी सरकारों ने झारखंड के दलित आदिवासी मूलवासी समाज के सपनों को छलने का काम किया। सिर्फ वोट लेकर सत्ता का मलाई खाने का काम किया। उनके देखे गए सपनों को पूरा करने का काम किसी भी सरकार ने नहीं किया।
नायक ने शहादत दिवस समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि इन 22 वर्षों में जिन मूल्यों एवं सिद्धांतों पर स्थानीय नीति एवं स्थानीय नियोजन नीति के लिए हमारे शहीदों ने शहादत देने का काम किया, उनके शहादत व् बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देंगे।
आने वाले समय में अगर सरकारों ने स्थानीय नीति, स्थानीय नियोजन नीति पर गंभीरता पूर्वक विचार नहीं किया तो पार्ट टु डोमिसाइल आंदोलन राज्य में पुनः खड़ा किया जायेगा। उस आंदोलन को समाप्त करने की दिशा में कोई भी सरकार सफल नहीं होगी। जब तक कि स्थानीय नीति, नियोजन नीति को लागू नहीं किया जाता।
नायक ने झारखंड के तमाम दलित आदिवासी, मूलवासी संगठनों से अपील किया कि छोटे-छोटे मंच, छोटे-छोटे संगठन बनाने से झारखंड के दलित, आदिवासी, मुलवासी समाज का भला कदापि नहीं होने वाला है।
इसलिए तमाम झारखंडी विचारधारा एवं तमाम झारखंड के दलित आदिवासी मुलवासी के हितों की रक्षा की बात करने वाली संगठन एक मंच में आए और नए सिरे से झारखंड मे झारखंडी समाज के हक और अधिकार की लिए आंदोलन करने का काम करें। तभी झारखंड के दलित आदिवासी मूलवासी समाज का भला हो सकता है।
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