कानूनी कार्रवाई बाल विवाह के खात्मे की कुंजी-सहयोगिनी

गैरसरकारी संगठन सहयोगिनी ने एक साल के दौरान 68 बाल विवाह रुकवाए

रंजन वर्मा/कसमार (बोकारो)। बोकारो जिले में गैर सरकारी संगठन सहयोगिनी ने एक साल के दौरान 68 बाल विवाह रुकवाए है।

भारत में बाल विवाह के खात्मे में कानूनी कार्रवाइयों और अभियोजन की अहम भूमिका को उजागर करने वाली एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए सहयोगिनी के निदेशक गौतम सागर ने 18 जुलाई को संस्था कार्यालय में आयोजित गोष्ठी मे कहा कि कानूनी कार्रवाइयां और कानूनी हस्तक्षेप 2030 तक बाल विवाह के खात्मे के लक्ष्य को हासिल करने की कुंजी है। कहा कि सहयोगिनी ने बीते एक साल के दौरान बोकारो में 68 बाल विवाह रुकवाए हैं।

उन्होंने कहा कि टूवार्ड्स जस्टिस: इंडिंग चाइल्ड मैरेज शीर्षक से जारी यह रिपोर्ट इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन की शोध टीम ने तैयार की है। सहयोगिनी और चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड 2030 तक देश से बाल विवाह के खात्मे के लिए काम कर रहे बाल विवाह मुक्त भारत के सहयोगी संगठन के तौर पर साथ हैं।

कहा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे -5 के अनुसार बोकारो में बाल विवाह की दर 26 प्रतिशत थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 23.3 है। संगठन ने सरकार से अपील की कि वह अपराधियों को सजा सुनिश्चित करे, ताकि बाल विवाह के खिलाफ रहिवासियों में कानून का भय पैदा हो सके।

उन्होंने बताया कि आइसीपी की रिपोर्ट टूवार्ड्स जस्टिस: इंडिंग चाइल्ड मैरेज बाल विवाह के खात्मे के लिए न्यायिक तंत्र द्वारा पूरे देश में फौरी कदम उठाने की आवश्यकता को रेखांकित करती है।

रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 में देश भर में बाल विवाह के कुल 3,563 मामले दर्ज हुए, जिसमें सिर्फ 181 मामलों का सफलतापूर्वक निपटारा किया गया। यानी लंबित मामलों की दर 92 प्रतिशत है। मौजूदा दर के हिसाब से इन 3,365 मामलों के निपटारे में 19 साल का समय लगेगा।

सहयोगिनी निदेशक ने कहा कि बाल विवाह की रोकथाम के लिए असम सरकार की कानूनी कार्रवाई पर जोर देने की रणनीति के शानदार नतीजे मिले हैं। इस मॉडल की सफलता को देखते हुए इसे पूरे देश में आजमाया जा सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार वित्तीय वर्ष 2021-22 से 2023-24 के बीच असम के 20 जिलों में बाल विवाह के मामलों में 81 प्रतिशत की कमी आई है, जो बाल विवाह के खात्मे में कानूनी कार्रवाई की अहम भूमिका का सबूत है। इस अध्ययन में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) और असम के 20 जिलों के 1,132 गांवों से आंकड़े जुटाए गए।

जहां कुल आबादी 21 लाख है। जिनमें 8 लाख बच्चे हैं। नतीजे बताते हैं कि बाल विवाह के खिलाफ जारी असम सरकार के अभियान के नतीजे में राज्य के 30 प्रतिशत गांवों में बाल विवाह पर पूरी तरह रोक लग चुकी है। जबकि 40 प्रतिशत उन गांवों में इसमें उल्लेखनीय कमी देखने को मिली, जहां कभी बड़े पैमाने पर बाल विवाह का चलन था।

रिपोर्ट के तथ्यों और आंकड़ों का हवाला देते हुए संगठन ने कहा कि बाल विवाह के मामलों में सरकार की मदद से कानूनी हस्तक्षेप यहां भी काफी प्रभावी साबित हुआ है।
सहयोगिनी के निदेशक गौतम सागर ने आगे कहा कि इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन की यह रिपोर्ट साफ तौर से कानूनी कार्रवाई और अभियोजन की अहमियत को रेखांकित करती है।

हम सबों में बाल विवाह के खिलाफ जागरूकता के प्रसार के साथ यह सुनिश्चित करने के अथक प्रयास कर रहे हैं, कि परिवारों और समुदायों को समझाया जा सके कि बाल विवाह अपराध है।

साथ ही, जहां बाल विवाहों को रुकवाने के लिए समझाने बुझाने का असर नहीं होता, वहां हम कानूनी हस्तक्षेप का भी इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने कहा कि कानून पर अमल बाल विवाह के खात्मे की कुंजी है। हम सभी को साथ मिलकर इस पर अमल सुनिश्चित करने की जरूरत है।

कहा कि आईसीपी, बाल विवाह मुक्त भारत का गठबंधन सहयोगी है, जिसने वर्ष 2022 में राष्ट्रव्यापी अभियान की शुरुआत की और इसके 200 सहयोगी संगठन भुवन ऋभु की बेस्टसेलर किताब व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन: टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड मैरेज में सुझाई गई कार्य योजना पर अमल करते हुए पूरे देश में काम कर रहे हैं।

रिपोर्ट के तथ्यों और आंकड़ों की चर्चा करते हुए रवि कांत ने कहा कि इस तरह के मामलों में सजा की बेहद मामूली दर चिंता का विषय है। वर्ष 2022 में बाल विवाह के सिर्फ 11 प्रतिशत मामलों में दोषसिद्ध हुई, जबकि इसी अवधि में बच्चों के खिलाफ अन्य अपराधों में दोषसिद्धि की दर 34 प्रतिशत थी।

यह बाल विवाह के मामलों में गहन जांच और अदालती सुनवाई की जरूरत को उजागर करता है। यह एक निवारक के रूप में काम करने के अलावा समुदायों को यह भी संकेत देगा कि बाल विवाह ठोस कानूनी परिणामों के साथ गंभीर अपराध है।

उन्होंने बताया कि उक्त रिपोर्ट में दो अहम सिफारिशें की गई है, जिसमें लंबित मामलों के निपटारे के लिए फास्ट ट्रैक अदालतों के गठन के अलावा बाल विवाह को बलात्कार की आपराधिक साजिश के बराबर मानते हुए इसमें सहभागी माता-पिता, अभिभावकों और पंचायत प्रतिनिधियों के लिए सजा को दोगुना करने का सुझाव भी शामिल है।

इस दौरान सहयोगिनी के जिला समन्वयक फुलेद्र रविदास, प्रकाश महतो, नीतू कुमारी, मंजू देवी, कुमारी किरण, अनिल कुमार हेंब्रम, विकास कुमार, अभय कुमार सिंह आदि उपस्थित थे।

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