खदिमाने गौस वाज़ कमेटी के जुलुस में शामिल हुए हजारों लोग
मुश्ताक खान/मुंबई। बुधवार को नेहरू नगर पुलिस के कड़े बंदोबस्त के बीच कुर्ला पूर्व स्टेशन परिसर से खदिमाने गौस वाज़ कमेटी द्वारा मुहर्रम का भव्य जुलुस ताजिया के साथ निकाली गई। इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत मुहर्रम महीने के पहले दिन के साथ होती है, इसे हिजरी कैलेंडर के रूप में जाना जाता है।
इस्लाम के जानकारों के मुताबिक मुहर्रम की 10 तारीख को हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी, इस लिहाज से इस दिन को शहादत दिवस के तौर पर मनाया जाता है। इस जुलुस में शामिल लोगों के चेहरे पर ख़ुशी और गम के भाव देखने को मिला। नेहरूनगर के एस जी बर्वे मार्ग पर ताजिया के साथ निकले इस जुलुस में बड़ी संख्या में नागरिकों के साथ पुलिस के जवान और अधिकारी मौजूद थे।
गौरतलब है कि कुर्ला पूर्व, नेहरू नगर में खदिमाने गौस वाज़ कमेटी द्वारा करीब 6 दशक पहले मुहर्रम का जुलुस ताजिया के साथ निकलने की शुरुआत की थी। जिसे मौजूदा कमेटी के सदस्यों ने अब भी बरकरार रखा है। इस कमिटी के अध्यक्ष मंसूर शेख हैं। जबकि उनके मातहत शहीद शेख, मेहबूब हुसैन, अजीज़ भाई, फरहान शेख, लतीफ़ शेख, यूनुस शेख और मजीद शेख आदि लोग मिलकर कमेटी की देख भाल करते हैं।
हर साल की तरह इस वर्ष भी खदिमाने गौस वाज़ कमेटी द्वारा निकली गई जुलुस में बड़ी संख्या में बच्चे जवान और बुजुर्गों ने शिरकत की। जबकि जुलुस की भव्यता के मद्देनजर नेहरू नगर पुलिस स्टेशन के एसीपी शशिकांत भंडारी, सीनियर पीआई युसूफ सौदागर, पीआई मनीषा कुलकर्णी, संतोष साल्वे के अलावा बड़ी संख्या में पुलिस के जवान अपनी आधा दर्जन वाहनों के साथ इस जुलुस में शामिल लोगों का मार्गदर्शन किया।
खबर के मुताबिक मुहर्रम की शुरुआत भारत में 7 जुलाई से हो गई है। इसी तरह सऊदी अरब में भी 7 जुलाई से ही मुहर्रम की शुरुआत हुई है। इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत मुहर्रम महीने के पहले दिन से होती है, इसे हिजरी कैलेंडर के रूप में जाना जाता है।
मुहर्रम की 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन पैगम्बर मोहम्मद के नाती इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। मुहर्रम महीने को गम या शोक के तौर पर भी मनाया जाता है। इसलिए मुहर्रम की 10 तारीख को लोग मातम भी मनाते हैं। इस दिन को कर्बला की जंग के साथ अल्लाह के नेक बंदों की कुर्बानी को भी याद किया जाता है।
हुसैन के काफिले पर यजीद की फौज का हमला
मुहर्रम की 10 तारीख को यजीद की फौज और हुसैन के काफिले के बीच जंग हुई थी। यजीद की फौज बहुत बड़ी संख्या में थी और हुसैन के साथ सिर्फ 72 लोग थे। हुसैन ने अपने साथियों से कहा कि वे उन्हें छोड़कर चले जाएं, लेकिन कोई भी टस से मस नहीं हुआ। यजीद बहुत ताकतवर था और उसके पास बहुत सारे हथियार भी थे।
लेकिन हुसैन के पास उसके जवाब में इतनी ताकत नहीं थी। फिर भी हुसैन ने यजीद के सामने झुकने के बजाए जंग का ऐलान कर दिया। हुसैन ने अपने साथियों के साथ मिलकर यजीद की फौज का डटकर मुकाबला किया और इस जंग में वो शहीद हो गए। यह इमाम हुसैन और उनके साथियों की ईमान और हौसले का जीता जागता मिसाल है।
मुहर्रम का महीना इस्लाम के लोगों के लिए बहुत खास होता है। यह महीना त्याग और बलिदान की याद दिलाता है। मुहर्रम, बकरीद के 20 दिन बाद मनाया जाता है। हजरत इमाम हुसैन इस्लाम को दुनिया में फ़ैलाने वाले हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे थे। मुहर्रम पर हुसैन की याद में ताजिया उठाया जाता है और मुस्लिम समुदाय के लोग मातम मनाते हैं।
Tegs: #Muharram-procession-took-place-under-strict-arrangements-of-nehru-nagar-police
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