साभार/ मुंबई। महाराष्ट्र सरकार किसानों की आत्महत्या रोकने में पूरी तरफ नाकाम रही है। एक आरटीआई के जरिये जो जानकारी सामने आ रही है उसके मुताबिक महाराष्ट्र में पिछले 4 वर्ष में किसान आत्महत्या दो गुनी बढ़ गई है। 2015 से 2018 के बीच 11,995 किसानों ने आत्महत्या की है, जो 2011-14 के बीच हुई आत्महत्या से लगभग दो गुना ज्यादा है। 2011-14 के बीच कुल 6,268 किसानों ने आत्महत्या की थी। वहीं देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली भाजपा-शिवसेना सरकार के शासन काल के दौरान किसान आत्महत्या में दोगुनी वृद्धि हुई है और आत्महत्या का आंकड़ा 11,995 पहुंच गया है।
जिसमें अधिकतर आत्महत्याएं कर्ज न चुकाने के कारण हुई है। आरटीआई कार्यकर्ता जीतेंद्र घाटगे के मुताविक कर्ज़माफी एक लाख रुपए तक सीमित है, लेकिन कई किसान एक लाख रुपए से ज्यादा कर्ज लेते हैं। वहीं स्थानीय जमींदार कर्ज देने के बाद पैसा वापस लौटाने के लिए किसानों पर दबाव बनाते हैं। स्थानीय जमीनदारों से उधार लिया पैसा कर्ज माफी की स्कीम के अंतर्गत नहीं आता है। इसलिए कर्ज न लौटाने पर जमीनदारों द्वारा किसानों को धमकी दी जाती है, जिसकी वजह से ज्यादा आत्महत्या होती है।
अमरावती डिवीजन, जिसे आमतौर पर विदर्भ के नाम से जाना जाता है, वहां पिछले चार वर्ष में सबसे ज्यादा 5,214 आत्महत्याएं दर्ज की गई हैं। वहीं औरंगाबाद डिवीजन, जिसे मराठवाड़ा भी कहा जाता है, वहां किसान आत्महत्या के 4,699 मामले सामने आए हैं। दूसरी तरफ आधा महाराष्ट्र सूखे की मार झेल रहा है। उल्लेखनीय है कि मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने 2016 के बाद से किसान आत्महत्याओं के आंकड़ों की सूचना नहीं दी है।
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