प्रहरी संवाददाता/मुजफ्फरपुर(बिहार)। बिहार विधानसभा चुनाव की सुगबुगाहट के बीच नेताओं के साथ मारपीट की घटनाओं में तेजी आ गई है। नीतीश सरकार के कई मंत्रियों और विधायकों को बिहार के अलग-अलग हिस्सों में विरोध प्रदर्शन का सामना करना पड़ रहा है। आरजेडी के भी कई विधायकों के साथ इस तरह की घटनाएं हो रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि बिहार की जनता इस बार इतना उग्र क्यों है? बिहार में अगर विकास हुआ है तो फिर मंत्रियों और विधायकों का जनता विरोध क्यों कर रही है? क्यों इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव बदला-बदला सा नजर आ रहा है? बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा अब किसी भी वक्त हो सकती है। इधर जनता के बढ़ते विरोध से एनडीए गठबंधन में खासी घबराहट है।
बता दें कि विकास के मुद्दे पर बिहार की जनता तीखे सवालों से परहेज करती रही है। बिहार में हमेशा से ही विकास की नहीं जाति पर बात होती रही है। इस बार जनता सत्ताधारी दल के विधायकों और मंत्रियों से विकास पर ही सवाल पूछ रही है। सोशल साइट्स पर एनडीए विरोधी गतिविधियों ने बीजेपी को सकते में डाल दिया है।
हाल के दिनों में नीतीश सरकार के कई मंत्रियों और विधायकों ने मारपीट का आरोप लगाया है। एनडीए के ये विधायक और मंत्री आरजेडी समर्थकों पर इसका ठीकरा फोड़ रहे हैं, लेकिन हकीकत में नजारा कुछ और ही है। पिछले दिनों बिहार के औरंगाबाद जिले के गोह विधानसभा क्षेत्र के बीजेपी विधायक मनोज शर्मा और बिहार सरकार के मंत्री और बीजेपी नेता प्रेम कुमार का गोह के एक गांव में ग्रामीणों ने जोरदार विरोध किया। मंच पर बैठे विधायक और मंत्री के खिलाफ जमकर नारेबाजी की गई। इस सभा में सीएम नीतीश कुमार के खिलाफ भी जमकर नारेबाजी हुई। इसी तरह कुछ दिन पहले ही बिहार के ग्रामीण विकास मंत्री शैलेश कुमार को उनके विधानसभा क्षेत्र जमालपुर में लोगों ने विरोध किया। पहले से ही शिवहर के जेडीयू एमएलए सरफुद्दीन का वीडियो तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। इस वीडियो में जनता विधायक को खदेड़ रही है। लोगों का आरोप है कि पांच साल तक विधायक जी नहीं आए अब चुनाव है तो कह रहे हैं कि पिछले पंद्रह सालों से यहां विकास की गंगा बह रही है।
बिहार में सत्ताधारी दलों के विधायकों और मंत्री को खदेड़ने का सिलसिला लगातार जारी है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ सत्ताधारी दलों के ही विधायकों को खदेड़ा जा रहा है। आरजेडी के भी कई विधायकों को जनता खदेड़ने के साथ-साथ तीखे सवाल पूछ रही है।
कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने बिहार के विकास की पोल खोल दी है। बिहार के 50 प्रतिशत से भी ज्यादा युवाओं के पास रोजगार नहीं है। वर्ष 2005 मे नीतीश कुमार ने दावा किया था कि राज्य में इतना विकास करेंगे कि राज्य के लोग दूसरे राज्यों में रोजगार के लिए नहीं जाएंगे। 15 सालों बाद स्थिति और खराब हो गई है। दूसरे राज्यों में काम कर रहे लाखों मजदूर लॉकडाउन का शिकार हो गए हैं। लॉकडाउन का खामियाजा बिहार की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ा है। लाखों प्रवासी मजदूरों की रोजी-रोटी छिन गई है। ऐसे में अगर बिहार में पिछड़े, अति पिछड़े और दलित जातियों का विकास हुआ तो ये दूसरे राज्यों में रोजगार की तलाश में क्यों गए?
138 total views, 1 views today