ऑटो के बाद अब टेक्सटाइल सेक्टर में मंदी की मार

साभार/ नई दिल्ली। हाल ही में ऑटो सेक्टर (Auto sector) में ज़ोरदार मंदी और बिक्री के 30-35 प्रतिशत तक कम होने की ख़बरें आती रही थीं। देश की सबसे बड़ी कार कंपनी मारुति सुज़ुकी (Maruti suzuki) समेत ह्यूंडई, महिंद्रा, हॉन्डा कार और टोयोटा किर्लोस्कर मोटर्स जैसी प्रमुख वाहन कंपनियों की बिक्री में जुलाई में दहाई अंक की गिरावट दर्ज की गई थी, और यह भी बताया गया था देशभर में सैकड़ों डीलरशिप बंद हो गई हैं। अब देश का टेक्सटाइल सेक्टर भी मंदी की चपेट में आता नज़र आ रहा है, और टेक्सटाइल मिलों के संगठन का दावा है कि न सिर्फ बड़ी तादाद में नौकरियां खत्म हो रही हैं, बल्कि देशभर में एक-तिहाई मिलें बंद हो चुकी हैं।

“नॉर्दर्न इंडिया टेक्सटाइल मिल्स कॉरपोरेशन (NITMA) का दावा है कि भारतीय स्पिनिंग उद्योग इस वक्त सबसे बड़े संकट से गुज़र रहा है, जिसके कारण बड़ी संख्या में नौकरियां खत्म हो रही हैं। अंग्रेज़ी समाचारपत्र ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में मंगलवार को आधे पेज का एक बड़ा-सा विज्ञापन छपा है, जिसमें नौकरियां खत्म होने के बाद फैक्टरी से बाहर आते लोगों का स्केच बनाया गया है। इसके नीचे बारीक आकार में लिखा है कि देश की एक-तिहाई धागा मिलें बंद हो चुकी हैं, और जो चल रही हैं, वे भारी घाटे में हैं। उनकी स्थिति ऐसी भी नहीं है कि वे भारतीय कपास ख़रीद सकें, सो, कपास की आगामी फ़सल का कोई ख़रीदार नहीं होगा। अनुमान है, 80,000 करोड़ रुपये का कपास उगने जा रहे है, सो, इसका असर कपास के किसानों पर भी होगा।”

रवीश कुमार लिखते हैं, “सोमवार को फरीदाबाद टेक्सटाइल एसोसिएशन के अनिल जैन ने बताया था कि टेक्सटाइल सेक्टर में 25 से 50 लाख के बीच नौकरियां गई हैं। इस संख्या पर यक़ीन नहीं हुआ था, लेकिन आज टेक्सटाइल सेक्टर ने विज्ञापन देकर कलेजा ही दिखा दिया है। धागों की फैक्टरियों में एक और दो दिन की बंदी होने लगी है, धागों का निर्यात 33 फीसदी कम हो गया है।”

उन्होंने लिखा, “नरेंद्र मोदी सरकार ने वर्ष 2016 में 6,000 करोड़ रुपये के पैकेज और अन्य रियायतों का ज़ोर-शोर से ऐलान किया था, और दावा किया था कि तीन साल में एक करोड़ रोज़गार पैदा होंगे। उल्टा नौकरियां चली गईं। पैकेज के ऐलान के वक्त खूब संपादकीय लिखे गए थे, तारीफ़ें हो रही थीं। नतीजा सामने है। खेती के बाद सबके अधिक लोग टेक्सटाइल में रोज़गार पाते हैं, और वहां का संकट इतना मारक है कि विज्ञापन देना पड़ रहा है। टीवी में नेशनल सिलेबस की चर्चा बढ़ानी होगी।”

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