रामचरितमानस से संघर्ष करने की प्रेरणा मिलती है-उज्ज्वल शांडिल्य

एस. पी. सक्सेना/बोकारो। कथावाचक उज्ज्वल शांडिल्य जी महाराज ने बोकारो जिला के हद में कथारा चार नंबर में आयोजित महायज्ञ में श्रीराम कथा के चौथे दिन 2 फरवरी को देश की दशा पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि रामचरितमानस से हमें जीवन से संघर्ष करने की प्रेरणा मिलती है।

श्रीराम कथा प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि प्रत्येक नागरिक को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। अपनी आदतों में छोटे छोटे बदलाव कर हमसब राष्ट्र की सेवा कर सकते हैं। अपने जन्मदिन पर एक पौधा अवश्य लगाएं। पानी बर्बाद न करें।

बिजली का प्रयोग जरूरत के अनुसार ही करें। केवल पाकिस्तान को गाली देने मात्र से कोई राष्ट्रभक्त सिद्ध नहीं हो सकता। अपने कर्मों से मनुष्य राष्ट्रभक्त बनता है। उन्होंने कहा कि एक सभ्य नागरिक से राष्ट्र का उत्कर्ष होता है। रामकथा मनुष्य को सभ्य बनाती है। मनुष्य को सच्चा मनुष्य बनाने का काम रामकथा करती है।

आचार्य उज्ज्वल शांडिल्य ने कहा कि आज अधिसंख्य जनों में काम, क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष जैसे दुर्गुण भरे पड़े हैं। उन सभी दुर्गुणों से रामकथा मुक्ति प्रदान करती है। गोस्वामी तुलसीदास ने उस काल में रामायण की रचना की, जब भारत गुलाम था। मुगलों के अत्याचार से भारतवासी त्रस्त थे।

ऐसे में रामचरितमानस ने समाज के लोगों की दशा और दिशा बदलने का कार्य किया। हमारे अनेक स्वतंत्रता सेनानियों को भी रामचरितमानस से संघर्ष करने की प्रेरणा मिली। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता संग्राम में श्रीरामचरितमानस का भी बड़ा योगदान था।

उन्होंने कहा कि समाज का कोई भी व्यक्ति हो, चाहे वह पढा लिखा हो या अनपढ़। अमीर हो या गरीब। बच्चा हो या बूढ़ा। स्त्री हो या पुरुष। हरेक व्यक्ति रामायण की दो पांच चौपाई अवश्य जानता है। इससे रामायण का महत्व समझा जा सकता है।

श्रीराम विवाह की कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि भगवान् के चौबीस अवतारों में सबसे सुंदर विवाह रामचन्द्र जी का हुआ। राम ने विवाह से पहले ताड़का, मारीच और सुबाहु जैसे आतंकवादियों से लोहा लिया। पति के श्राप से पत्थर बनी अहिल्या का उद्धार किया। पतितों को पावन करने वाले श्रीराम पतितपावन हैं।

महात्मा गांधी ने श्रीराम के इसी गुण को देखा और “रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम” गाया। आगे चलकर श्रीराम ने मिथिला जाकर शंकर के धनुष को तोड़ दिया। उन्होंने कहा कि शंकर का धनुष अहंकार का प्रतीक है। अहंकार को वही मिटा सकता है, जिसपर गुरुदेव की कृपा हो।

गुरु विश्वामित्र की आज्ञा पाकर श्रीराम ने उस धनुष को तोड़ दिया और सीताजी से विवाह किया। उन्होंने इस बीच राम विवाह पर एक से बढ़कर एक मधुर भजन प्रस्तुत किए। जिन्हें सुनकर श्रोता झूमने पर मजबूर हो गए। कथा के विश्राम में आरती और प्रसाद का वितरण किया गया।

इस अवसर पर कथारा चार नंबर यज्ञ समिति के सचिव अजय कुमार सिंह, वेदब्यास चौबे, एम एन सिंह, चंद्रशेखर प्रसाद, राजेश पांडेय, देवाशीष आस, इंद्रजीत सिंह, देवेंद्र यादव, तपेश्वर चौहान आदि उपस्थित थे।

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