माता-पिता से मिलती है बच्चों को संस्कार-कथा वाचिका राधा किशोरीजी

मन में बसा के तेरी मूर्ति उतारूं मैं कान्हा तेरी आरती से गूंज उठा सम्पूर्ण इलाका

प्रहरी संवाददाता/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में सोनपुर स्थित राधा कृष्ण मंदिर के तत्वाधान में बाबा हरिहरनाथ परिसर में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत  कथा ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन 29 अगस्त की संध्या मन में बसा के तेरी मूर्ति उतारूं मैं कान्हा तेरी आरती की गूंज से सम्पूर्ण सोनपुर का इलाका भक्तिमय हो गया।

इस अवसर पर वृंदावन की सुप्रसिद्ध कथावाचिका राधा किशोरी जी ने कथा आरंभ करने से पूर्व सनातन समाज में हो रही संस्कारों में भारी गिरावट पर चर्चा की। उन्होंने सभी से आग्रह किया कि वे अपने बच्चों को संस्कारगत शिक्षा जरूर दें। कहा कि आज के समय में समाज में संस्कारों की भारी कमी हो गई है। दुर्भाग्य से बच्चे हमारे पास नहीं रहते हैं।

गांव में अच्छी पढ़ाई की सुविधा नहीं रहने के कारण बच्चे बाहर शहर में रहते हैं। ऐसे में उन्हें संस्कार कहां से मिलेगा।
कथावाचिका ने कहा कि संस्कार तो बच्चों को अपने माता-पिता से मिलते हैं। भगवान श्रीकृष्ण का उदाहरण देते हुए कहा कि प्रभु जब पांडवों को समझाकर द्वारका लौटते हैं तो द्वारकावासियों को उनके आने की खबर मिलती है।

द्वारकावासी उनके स्वागत की अपने – अपने ढंग से तैयारी करते हैं। प्रभु पधारते हैं तो सबसे पहले सभी द्वारकावासियों को हाथ जोड़कर प्रणाम करते हैं। फिर अपने माता – पिता को साष्टांग प्रणाम करते हैं। माता-पिता के प्रति सम्मान है श्रीकृष्ण का आदर्श। कहा कि प्रभु तो भगवान थे, फिर भी उन्होंने अपनी लीलाओं के माध्यम से आमजनों को संस्कार की सीख दी।

उन्होंने कहा कि बेटियों से अपना पैर नहीं छुवाएं। बेटियां ससुराल जाती है, तो बड़ों के पैर छू सकती है पर नैहर में नहीं। अपने सनातन धर्म की संस्कृति में कन्याओं से पैर नहीं छुवाना चाहिए। कन्या पूजनीय होती है।

उन्होंने कहा कि नव दुर्गा की पूजा के समय कन्याओं का पैर पूजन करते हैं। कन्या का चरण छू सकते हैं, छुआ नहीं सकते। बेटियां हाथ जोड़कर राधे राधे या जय श्रीकृष्णा कहकर अभिवादन करें। गीता का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जो जीव अपने से बड़ों को प्रणाम करता है, छोटों को सम्मान देता है। उसे भगवान नि:शुल्क चार चीज प्रदान करते हैं आयु, विद्या, यश और बल।

उन्होंने कहा कि मां की बात बच्चा ज्यादा समझता है। इसलिए उसे प्रथम गुरु की उपाधि प्राप्त है। उन्होंने कहा कि पांडवों को छोड़कर भगवान श्रीकृष्ण के द्वारका चले आने के बाद पाण्डवों ने भी हस्तिनापुर का राज अपने पौत्र परीक्षित को सौंप दिया और सभी पांडव द्रौपदी के साथ स्वर्गारोहण के लिए प्रस्थान कर जाते हैं। उन्होंने कहा कि हर घर में कलयुग का वास है।

उन्होंने राजा परीक्षित के ऊपर कलयुग के सवार होने से लेकर श्रृंगी ऋषि द्वारा श्राप लगने की कथा सुनाई। कहा कि राजा परीक्षित का अपने बड़े बेटे जन्मेजय को राज्य सौपना और गंगा के तट पर जाकर अनशन व्रत करना, सभी से श्राप से मुक्ति का उपाय पूछना और किसी का भी उपाय ना बताना।

राजा परीक्षित का वापस महल में जाना और सुखदेवजी का इनके यहां पधारना। इनका मुक्ति के बारे में प्रश्न करना है। फिर कथा प्रारंभ करना सुखदेवजी द्वारा सृष्टि वर्णन आदि प्रसंग पर विस्तार से प्रकाश डाला गया।

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