के बी कॉलेज में आदिवासी अस्मिता एवं पहचान विषय पर संगोष्ठी

एस. पी. सक्सेना/बोकारो। बोकारो जिला के हद में के. बी. कॉलेज परिसर में 10 अगस्त को आदिवासी अस्मिता एवं पहचान विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। महाविधालय के एससी/ एसटी सेल, कल्चरल कमिटी एवं आईक्यूएसी के संयुक्त तत्वावधान मे संगोष्ठी का आयोजन किया गया। अध्यक्षता कॉलेज के प्राचार्य डॉ के पी सिन्हा ने की।

इस अवसर पर कार्यक्रम स्थल केबी कॉलेज सभागार में छात्र छात्राओं, शिक्षको व कर्मियों उपस्थिति मे आदिवासी अस्मिता एवं पहचान विषय पर संगोष्ठी आयोजित किया गया।

संगोष्ठी में कॉलेज के प्राचार्य डॉ सिन्हा ने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस का उद्देश्य आदिवासी समुदायों के अधिकारो के प्रति जागरुकता फैलाना व उन्हे सम्मान दिलाना है। उन्होंने कहा कि यह दिवस सामाजिक न्याय, समरसता निर्माण व समानता को प्रोत्साहित करती है। विश्व आदिवासी दिवस पर सभी अमन पसंद रहिवासियों को एकसाथ मिलकर आदिवासी समुदायों के संघर्षों व उनकी सांस्कृतिक धरोहर के प्रति सम्मान दिखाने का अवसर है।

संगोष्ठी में एससी/एसटी सेल के समन्वयक प्रो. मधुरा केरकेट्टा ने कहा कि आदिवासियों की देशज ज्ञान परंपरा दुनिया के लिए सशक्त समाधान का माध्यम बन सकता है। जरूरत है इस देशज ज्ञान को चिन्हित कर इसे वैज्ञानिक मान्यता देने की।

कल्चरल कमिटी की समन्वयक डॉ नीला पूर्णिमा तिर्की ने कहा कि आदिवासियों का राष्ट्र के प्रति अमृत भाव ही था जिसने सिदू व कान्हू, तिलका मांझी, बिरसा मुंडा जैसे वीर योद्धाओं को जन्म दिया। उन्होंने कहा कि आदिवासी राष्ट्र को स्वतंत्र ही नही, बल्कि जागृत करने का काम भी करते आए हैं।

केबी कॉलेज के ब्याख्याता प्रो. लक्ष्मी नारायण राय ने कहा कि आदिवासी समृद्धि का प्रतीक होते हैं। उन्होंने कहा कि नौ अगस्त को आदिवासी संस्कृति व उनके सम्मान को बचाने के लिए आदिवासी समाज को प्रोत्साहित किया जाता है। प्रो. गोपाल प्रजापति ने कहा कि पहली बार आदिवासी दिवस नौ अगस्त 1994 को अमेरिका के जेनेवा मे मनाया गया था। आदिवासियों की देशज ज्ञान परंपरा काफी समृद्ध रही है।

आईक्यूएसी समन्वयक डॉ अरुण कुमार रॉय महतो ने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस हमें याद दिलाता है कि हम सभी को एक ही मानवता के अंतर्गत एकता व समरसता के साथ रहने की जरूरत है। डॉ प्रभाकर कुमार ने कहा कि आदिवासी जनजातियां हमारे समाज का एक अभिन्न अंग हैं। उन्हें सम्मान देना, उनकी संस्कृति, भाषा, परंपराओं को समझना व सरंक्षण देना हमारा दायित्व है।

डॉ अलीशा वंदना लकड़ा ने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस का संदेश है एक दूसरे के साथ मिलकर, समझदारी व सम्मान से रहना। प्रो. मनोहर मांझी ने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस हमें एक दूसरे के साथ गहरी आत्मीय भावना बढ़ाने, समरसता को स्थापित करने और आदिवासी समुदायों के समृद्ध हितों के लिए समर्थन के प्रति समर्पित होने का एक अवसर प्रदान करता है।

प्रो. नितिन चेतन तिग्गा ने कहा कि विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर हम उन आदिवासी वीर योद्धाओं को याद करते हैं, जिन्होंने राष्ट्र निर्माण मे महान योगदान किया। जिसमें जयपाल सिंह मुंडा, शहीद तिलका मांझी, बिरसा मुंडा, सिद्दो कान्हु आदि प्रमुख नाम है।

इस अवसर पर अन्य वक्ताओं ने भी विश्व आदिवासी दिवस को मनाए व याद किए जाने की वर्तमान प्रासंगिकता को बताया। कार्यक्रम में मंच संचालन प्रो. नितिन चेतन तिग्गा एवं धन्यवाद ज्ञापन प्रो. लक्ष्मी नारायण राय ने की।

मौके पर प्रो. गोपाल प्रजापति, डॉ आर पी सिंह, डॉ बासुदेव प्रजापति, डॉ व्यास कुमार, प्रो. अमित कुमार रवि, प्रो. साजन भारती, शिक्षकेत्तर कर्मी रविंद्र कुमार दास, रवि कुमार यादविंदु, दीपक कुमार, शिव चंद्र झा, मो. साजिद, सदन राम, बाबुनंद राम, हरिश नाग, जी सी रॉय, सुदर्शन सिंह, पुरोषतम चौधरी, भगन राम, सन्तोष राम, करिश्मा, अजय हांसदा, आशा देवी, सुसारि देवी आदि उपस्थित थे।

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