मुंबई शहर का आइना है मुंबई डायरी

कभी न रूकने वाली मुंबई शहर न सिर्फ देश की आर्थिक राजधानी है बल्कि यह देश के सबसे बड़े रोजगार और व्यवसाय का केंद्र भी है। यहां प्रतिदिन लाखों लोग देश के अलग-अलग राज्यों से अपनी आकांक्षाएं और सपने लेकर आते हैं और इनमें से अधिकांश लोग यहीं के होकर रह जाते हैं। मुंबई किसी को निराश नहीं करती है। दिन के चौबीस घंटे और साल के 365 दिनों तक व्यस्त रहने वाले इस शहर में हर दिन नई-नई घटनाएं देखने को मिलती हैं। मुंबई के वरिष्ट पत्रकार फरहान हनीफ वारसी ने इन घटनाओं को काफी करीब से देखा है, और अपने अनुभव को जाहिर किया है। जो इस वक़्त आपके हाथों में है।

अरशिया पब्लिकेशंस (Arshia Publications), दिल्ली ने फरहान हनीफ (Farhan Hanif) के इन चयनित आलेखों को एक उर्दू पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है जिसका नाम है “मुंबई डायरी” (Mumbai Diary)। इसमें प्रकाशित अधिकांश आलेख दैनिक “उर्दू टाइम्स” (Urdu Times) में प्रकाशित हो चुके हैं। ये ऐसे आलेख हैं जिसे मुंबई का आइना कहा जा सकता है जहां से मुंबई का पूरा दॄश्य देखा जा सकता है। इसमें लगभग 185 आलेखों को संग्रहीत किया गया है जिनमें से कुछ आलेख छोटे हैं और कुछ बड़े हैं। मगर सभी आलेख बहुत ही दिलचस्प और मुंबई की झांकी दिखाने वाला है।

मुंबई डायरी के बारे में महशूर फिल्मकार श्याम बेनेगल तथा फिल्म कलाकार सायरस साहुकार ने भी प्रशंसा की है। वे कहते हैं कि मुंबई शहर में हर उस आदमी का स्वागत होता है जिनके अंदर योग्यता है। ये शहर एक बहुत बड़े वेटिंग रूम की तरह है जहां हर कोई किसी न किसी चीज के लिए प्रतीक्षारत है और मुंबई शहर कभी किसी को निराश नहीं करती। बात बिल्कुल सच है।
शायद इसलिए मशहूर शायर सरदार अली जाफरी ने लिखा है –

न जाने क्या कशिश है बंबई तेरे शबिस्तां में,
कि हम शाम-ए-अवध, सुबह-ए बनारस छोड़ आए हैं।

मजेदार बात यह है कि “मुंबई डायरी” में जितने भी आलेख शामिल किए गए हैं वे सभी सामान्य जनजीवन से जुड़े हुए हैं और वास्तविक जीवन के काफी करीब हैं। इनमें ये है मुंबई मेरी जान, लोकल ट्रेन का जीवन, जश्ने-ए-आजादी, फुटपाथ, फैशन स्ट्रीट, जिन्ना हॉल, जे.जे.अस्पताल, अंडरवर्ल्ड, बैलगाड़ी, हीरो नंबर वन, अक्सा बीच, दिवाली कार्ड, महिलाओं की लोकल, खाने कमाने का तरीका, बुलंद हौसले, मदारी और बंदर, मोबाइल वाला भिखारी, पान का धंधा, चर्चगेट की खाऊ गली, रोमियो की शामत, मुंबई और एड्स, मुंबई की नवरात्रि, बरसात और बस, गला एक और आवाजें एक सौ चालीस, प्याज का इत्र, कुर्ला के गधे, सरकारी अस्पताल, माहिम दरगाह, जुहू के गुव्वारे, मुंबई के चूहे, पॄथ्वी थिएटर, शराब और मुंबई, कबूतरखाना, सबसे पुराना प्रिंटिंग प्रेस, आदि प्रमुख हैं।

“ये है मुंबई मेरी जान” में लेखक कहता है – मुंबई 24 घंटे जागता है। उस समय भी जब दूसरे शहर सो जाते हैं। मुंबई एक सुंदर सपना है। यहां नोट उड़ते हैं लेकिन उन्हीं के हाथ लगते हैं जिनहें पकड़ने का सलीका आता है।

मुंबई की जीवन रेखा कहलाने वाली “लोकल ट्रेन” के बारे में लेखक की राय है – लोकल ट्रेनें अगर इस शहर की धड़कन है तो सड़कों पर दौड़ने वाली टैक्सियां उसका ऑक्सिजन है। जहां लोकल ट्रेनों की सीमा समाप्त होती है वहां से टैक्सियों का सफर शुरू होता है। यही टैक्सियां हमें बांद्रा में होने वाले माउंट मेरी के मेले में ले जाती हैं जहां सभी धर्म के लोग एकत्र होकर अपनी मुरादें पाते हैं। इन्हीं टैक्सियों में हम जुहू के पॄथ्वी थिएटर और मराठी नाटक तक जाते हैं जहां नाटकों की सरगर्मी थिएटर के पीछे मचलती लहरों से कम नहीं हैं।

मुंबई में अंडरवर्ल्ड के चर्चे क्यों होते हैं? महिलाओं की लोकल का क्या फायदा है? आजाद मैदान के अम्पायर चिकी क्यों खाते हैं? चर्चगेट की खाऊ गली और क्रॉस मैदान की फैशन स्ट्रीट पहले नहीं थी, अब कैसे आबाद हुई? संक्षेप में, लेखक ने अपनी डायरी में आंखों की तरह चमकते और दिल की तरह धड़कते मुंबई के हर दॄश्य को पेंट किया है। नवरात्रि पर हाजी अली के हीरा पन्ना में सुरसंगीत, दुर्गा देवी को खुश करने के लिए मुस्लिम नौजवान भी जब गरबा रास के पंडालों में डांडिया और आंखें लड़ाते हैं तो फरहान हनीफ की कलम से छुप नहीं पाते। कुल मिलकार, पुस्तक में शामिल किए गए सभी आलेख एक से बढ़कर एक हैं और इसकी रोचकता का आनंद तो पढ़ने के बाद ही लिया जा सकता है।


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