हिंदी दिवस पर मेरी रचना- सुमंत

किसी भी देश की सभ्यता, संस्कृति और परंपरा को अच्छी तरह जानना, समझना हो तो सबसे पहले वहां की भाषा को जानना चाहिए। भाषा एक सशक्त कारक है जो पूरे देश को एकजुट करता है और यह क्षमता हमारी मातृभाषा हिन्दी में है।

भाषा के प्रचार-प्रसार में उसके सहित्य की अहम भूमिका होती है। कोई भी भाषा कितनी दमदार है यह उसके सहित्य के जरिए ही समझा जा सकता है। भाषा का सशक्त होना उस देश की नैतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था या सुदृढ़ता का परिचायक है।

यद्यपि हमारी हिन्दी भी बदलाव के दौर से गुजर रही है और एक प्रकार से नवीनता को अपनाकर पल्लवित और पुष्पित हो रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ने भी हमारी हिन्दी को प्रार्थमिकता देते हुए सम्मान से नवाजा है। उम्मीद है हमारी समृद्ध सँस्कृति अक्षुण्ण होने के साथ-साथ विकसित मातृभाषा के सानिध्य में राष्ट्रीय चेतना की समवाहिका बनेगी।

मेरी पहचान

हिंदी है मेरी पहचान।
कहते हैं हम सीना तान।।
देश की डगमग होती नैया।
अगर न रखें इसका ध्यान।।

क्यों हिंदी अपमानित होती।
क्यों न देते इसको मान।।
आन बान और शान है हिंदी।
करते हम शत-शत प्रणाम।।

अंग्रेजी ने हमें बनाया।
वषों पहले था गुलाम।।
आज उसी की चाकरी करते।
कहाँ गया अपना सम्मान।।

हिंदी ज्वाला क्रांति की थी।
सेनातनयों का संघर्ष महान।।
भारत को आजाद कराने में।
पहला था इनका योगदान।।

विनती है हिंदी को ना दो।
दोयम दर्जे का फरमान।।
भारत का आधार है हिंदी।
करेगी सपनों को साकार।।

आओ मिलकर संकल्प करे हम।
हिंदी सोचें, हिंदी बोलें।।
संस्कृत अभिलाषा पूर्ण करे हम।
दिलों में है अतुल स्थान।।

सुमंत कुमार
सहायक प्राध्यापक
महंत दर्शन दास महिला महाविद्यालय
मुजफ्फरपुर

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