हठधर्मिता और देश सेवा का सर्वोच्च पैमाना

एस.पी.सक्सेना/ बोकारो। वर्तमान में देश में इन दिनों मीडिया का रुझान फिल्मी कलाकार सुशांत सिंह राजपूत मौत मामलों को लेकर जोर शोर से है। साथ ही कई राजनीतिक दलों की आपस की छींटाकसी देश सेवा के लिए दिखावा करनेवाले नेताओं को बेपर्दा कर रहे हैं झारखंड के राजनीतिक विश्लेषक विकास सिंह। विकास सिंह ने सुशांत सिंह मौत मामलें में सीबीआई जांच की मांग करनेवालों से कई अन्य ज्वलंत मुद्दों पर भी जांच कराने के अलावा अटल चंद्रशेखर मित्रता के माध्यम से देश सेवा मामले पर वर्तमान नेताओं पर व्यंगात्मक कटाक्ष किया है।
प्रस्तुत है राजनीतिक विश्लेषक विकास सिंह की जुबानी दो लेख:-

1
सुशांत सिंह राजपूत प्रकरण में सीबीआई जांच की सिफारिश के बाद कुछ लोग पालघर में हुई साधुओं की हत्या की भी सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। ये वही लोग हैं जो राष्ट्रभक्ति का नारा बुलंद करते रहते हैं लेकिन कभी भी पुलवामा की घटना की सीबीआई जांच की मांग नहीं किये। वही लोग साधुओं की लिंचिंग पर सेकुलरों से सवाल कर रहे हैं।

उनसे कहना है कि साधुओं की लिंचिंग क्यों हुई, ये सेकुलरों से मत पूछिए। उनसे पूछिए जो लिंचींग करनेवाले मॉब को माला पहना रहे थे। भीड़ की हत्या को वैधता देने वाले सूत्रधारों से पूछने की हिम्मत नहीं है, इसलिए आप लेखकों-पत्रकारों को ताना मार रहे हैं। उनको अवार्ड वापसी गैंग बताने में भी आप ही सबसे आगे थे। अपनी आत्मा से पूछिए।

झारखंड से उत्तर प्रदेश तक, दादरी से लेकर राजस्थान तक लिंच मॉब को “भगत सिंह के बच्चे” कौन लोग बता रहे थे? इंसपेक्टर सुबोध कुमार तो हिंदू थे। उनके हत्यारों को माला किसने पहनाई? कौन बता रहा था कि इंस्पेक्टर की जान से ज्यादा जरूरी है गाय पर बात करना?
उन्माद और घृणा में बुद्धि खो न गई हो, तो याद कीजिए कि लेखकों को अवार्ड वापसी गैंग क्यों कहा गया? इसलिए कि वे भीड़ के कानून के खिलाफ बोल रहे थे। अपने पुरस्कार वापस करके विरोध कर रहे थे।

हत्याप्रेमी गैंग के लिए निराशा की बात है कि बहुत कोशिश के बाद भी कोरोना से लेकर महाराष्ट्र तक मामला ठीक से हिंदू-मुस्लिम में तब्दील नहीं हो पा रहा है। पालघर में लिंचिंग करने वाले और मरने वाले एक ही समुदाय के लोग हैं। पालघर लिंचिंग उतनी की वीभत्स घटना है जितनी दूसरी घटनाएं थीं। हत्या अलग अलग मीटर पर नहीं नापी जाएगी। फिर भी इस पर प्रतिक्रिया अलग ढंग से क्यों आ रही है? जो लोग मॉब के लिए माला लेकर खड़े थे, वे मानवतावादी कैसे हो गए? जवाब है घृणा का घिनौना एजेंडा। यही वह रवैया है, जिसने एक घिनौने अपराध को वैधता देने की कोशिश की।

सेकुलर तब भी कह रहा था कि इसे रोक दो। सेकुलर आज भी कह रहा है इसे रोक दो। सेकुलर बुद्धिजीवी के पास क्या ताकत थी? उसने अवार्ड वापस करके विरोध किया तो उसका मजाक उड़ाया गया। कानून और अदालतों को ठेंगा किसने दिखाया? भीड़ का न्याय शुरू कैसे हुआ? कभी गाय के बहाने, कभी कोरोना के बहाने, कभी चोरी के बहाने, भीड़ के मुंह में खून लग चुका है।

इसका सूत्रधार कौन है? अब भी खुलकर इसकी निंदा करने में किसका हलक सूख रहा है? क्या भारत मे पहले अपराध नहीं होते थे? क्या अपराधी को सजाएं नहीं हुईं? भीड़ का न्यायतंत्र क्यों खड़ा किया गया? सवाल उठाने वाले को देशविरोधी कौन बोल रहा था?

जो लोग सेकुलरिज्म का आज मजाक उड़ाते हैं, क्या वे समझते हैं कि किसी भी युग में साम्प्रदायिकता को बड़े सम्मान से देखा जाएगा? मजाक उड़ाने वाले इस देश का और लोकतंत्र का मजाक उड़ा रहे हैं। सेकुलरिज्म लोकतंत्र का अभिन्न अंग है। कम्युनलिज्म लोकतंत्र का दुश्मन। आप इस का नुकसान भले कर रहे हैं। क्रूरता और बर्बरता को आप मानवीयता सिद्ध नही कर सकते। ऐसा करने की कोशिश में तमाम धरती पछाड़ आये और इसी माटी में बिला गए।

विरोधियों की मत सुनिए, तो कम से कम लोकतंत्र के लिए घृणा की राजनीति को हतोत्साहित कीजिए। वरना अखलाक से शुरू सिलसिला इंसपेक्टर सुबोध तक पहुंच गया तो साधु-संत, और आम नागरिक की क्या हैसियत है। मध्यकालीन बर्बरता, जिसे दुनिया सदियों पहले त्याग चुकी है, यह आपको कहीं का नहीं छोड़ेगी।

2
व्यक्तित्व जब छोटा होता है तो व्यक्ति पद से या पैसा से अपने को ऊँचा दिखाने की कोशिश करता है। अगर व्यक्तित्व विराट हो तो पद या पैसा बौना हो जाता है। वर्ष 1984 में अटल बिहारी बाजपेयी और चन्द्रशेखर दोनो लोकसभा चुनाव हार चुके थे। दोनो में अटूट दोस्ती भी थी। चन्द्रशेखर जी बलिया में थे। उसी समय बाजपेयी जी का फोन आया, बोले…चन्द्रशेखर जी !

मेरी पार्टी मुझे राज्यसभा में भेज रही है, आप भी राज्यसभा में चलिये, मेरी पार्टी आपको समर्थन कर देगी। हम दोनों देश सेवा साथ करेंगे! चन्द्रशेखर जी ने जवाब दिया.. पंडित जी आप ही जाईये, मैं बलिया में रहकर भी देश सेवा कर लूँगा! छोटे लोग छोटी पसँद- कृपया इसे सिंधिया जी से जोड़कर नहीं देखा जाये। मेरा मंतव्य केवल इंसानो के लिये है।

 501 total views,  1 views today

You May Also Like