कृषि अनुदान में घोटाले का संकेत!

गोपालगंज में बैठक का बहिष्कार

धनंनजय सिंह/

गोपालगंज (बिहार)। बिहार सरकार के नियोजन में मात्र 8000 हजार मासिक मानदेय पर isc होने के बावजूद कार्य कर रहे किसान सलाहकार के सब्र का बांध टूट गया है। उन्होंने डी आर डी ए की साप्ताहिक बैठक का बहिष्कार कर बाहर निकाल गए। किसान सलाहकार अपने पदाधिकारियों के रवैये से तंग आकर जिलाधिकारी को आवेदन देकर पूरे प्रकरण के जांच की मांग की है।

क्या है मामला : दरअसल राज्य सरकार के कृषि विभाग द्वारा किसानो को अनुदानित दर पर बीज व कृषि यंत्र मुहैया कराने की योजना चलाई जा रही है। लेकिन इस वर्ष कृषि के लिए आवंटित अनुदान की राशि का अधिकांश हिस्सा खर्च नहीं हो सकी और नियमानुसार बची राशि को सरेंडर करना पड़ा। इसके लिए समन्वयक को एवं किसान सलाहकार जिम्मेदार मानकर इनमें से कई को नियोजन मुक्त एवं अब जिले के दूर दूर के प्रखंडों में स्थानांतरित कर रहे हैं।

क्या कहते हैं : किसान सलाहकार एवं आंदोलित समन्वयकों का कहना है कि इस मामले में हमें नाहक दोषी ठहराया जा रहा है। स्थिति यह है कि अनुदान पर दी जाने वाली बीज की गुणवत्ता उपयुक्त नहीं है और किसान अपनी राशि लगाकर उसे खरीदना नहीं चाहते। इसी प्रकार अनुदान पर दी जाने वाली कृषि उपकरणों की भी है। यहां कृषि उपकरणों की कीमत अधिक है और फिर किसानों को तत्काल अपनी राशि से इसे खरीदना पड़ता है।

लेकिन अनुदान जारी करने में किसानों को बार बार कृषि विभाग का चक्कर लगाना पड़ता है। इसके बाद भी समय पर अनुदान की राशि किसानों को नहीं मिल पाती। ऐसे में हमलोग लाख कोशिश कर किसानों को मनाते हैं तो भी वे अनुदान योजना के लाभार्थी बनने से हिचकते हैं। हम लोग विभागीय बैठक में इस सच्चाई को बयान करते हैं तो हमें उल्टे डांट दिया जाता है।

आक्रोशित किसान सलाहकार एवं कृषि समन्वयकों की यह भी व्यथा है कि उन्हें नियुक्ति काल से ही प्रति सप्ताह मंगलवार को जिला की बैठक में बुलाया जाता है। अपने क्षेत्र में गांव गांव घूमना पड़ता है। हमारी सारी मेहनत तब धरी रह जाती है जब किसानों द्वारा अनुदान योजना की वर्तमान स्थिति पर आक्रोश व्यक्त किया जाता है। इसे लेकर किसान सलाहकार एवं कृषि समन्वयकों ने जिलाधिकारी को एक आवेदन दिया है।

उक्त आवेदन में यह स्पष्ट रूप से आरोप लगाया गया है कि अनुदान योजना में विभागीय पदाधिकारी और आपूर्तिकर्ता की मिलीभगत के कारण समय पर बीज नहीं मिलता और न ही अनुदान प्राप्त होता है। इन्हीं कारणों से योजना का लक्ष्य पूरा नहीं होता। लिहाजा इसकी जांच अपने स्तर से कराएं। इसकी प्रति आवश्यक कार्रवाई हेतु विभागीय मंत्री, निदेशक और संयुक्त कृषि निदेशक को भी भेजी जा रही है।

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