गैर गांधी अध्यक्ष की कांग्रेस को जरूरत

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संतोष कुमार झा। इसलिए कि कांग्रेस के अध्यक्ष को जमीन पर उतरना जरूरी है। ऐसे में जब राहुल प्रियंका (Rahul Gandhi & Priyanka Gandhi) को जमीन पर उतारने की बात कोई करता है, दिल हलक पर उतर आता है। जब सड़कों पर गोडसे की फौज घूम रही है, तब ठंडे दिमाग से इनकी सुरक्षा की परतें हटा दिया जाना याद आता है। तब असुरक्षित गांधी को सड़कों पर उतरने की बात कहने वाला, षड्यंत्रकारी लगता है।

गौर से देखिये। ये लोग आखरी आइकन हैं जो प्रतिरोध का चेहरा हैं। आप डायनेस्टीक परिपाटी को गरिया लीजिये। इनकी शून्य उपलब्धियों की गिनती कर लीजिये। इनके गांधी सरनेम की वैलिडिटी पर बहस कर लीजिए, मगर देश की राजनीति जिस मोड़ पर है, इनका जिंदा और आंखों के सामने रहना एक सम्बल है।

इनका एक शब्द, एक वाक्य चिपक जाता है, छप्पन इंच के सीने की धौंकनी बढ़ जाती है। साढ़े तीन सौ की रोड रोलर बहुमत वाली सत्ता के पैरोकार, हेडलेस चिकन भागने लगते है। बौखला कर उल जलूल बकने लगते है। यह भय है। गांधी होने का प्रिविलेज है, जो इनके चेहरे, पृष्ठभूमि और इनकी पार्टी को मिल रहे बारह करोड़ कमिटेड वोटर्स की ताकत की वजह है।

यह प्रिविलेज किसी और के पास नही। तो इनका होना जरूरी है। इनका नैतिक होना जरूरी है। इनका मुस्कुराते रहना जरूरी है। इनका बोलते रहना जरूरी है, जिंदा रहना जरूरी है। इसलिए दैनिक राजनैतिक कर्म और सड़कों से दूर रहना भी जरूरी है। इनका टीवी पर आना और प्रतिरोध की शक्ल बना रहना जरूरी है।

जी हां, टीवी पर छिछोरों का राज है। वह कुछ गम्भीर और शांत चेहरों की बाट जोह रहा है। दोयम दर्जे के प्रवक्ता, दल की दोयम दर्जे की छवि प्रस्तुत करते हैं। संबित को संबितई में मात देने की कोशिश करते हैं। लाइव टीवी पर एंकर को भड़वा और दलाल कहकर या ट्रिलियन के जीरो पूछकर आप बड़ी लकीर खड़ा नही करते। हम देखना चाहते है जब प्रियंका किसी शो में रवीश, विनोद दुआ, पुण्य प्रसून, उर्मिलेश और शेखर गुप्ता जैसे जहीन लोगो के साथ जहिनियत से गुफ्तगू करते दिखें।

रोज एक नए एजेंडे की भीड़ में एक अलग मुद्दा खड़ा करें। द्विपक्षीय बहसों में उलझने की जरूरत नही। बी एंड डी दलालों को छेड़ने की जरूरत नही। बस अर्थव्यवस्था, बेरोजगारी, भाईचारे, राष्ट्रीय सुरक्षा, संस्थानों के भ्रंश और खरीद बिक्री के मसले बहस के केंद्र में लाने की जरूरत है।
स्टूडियो के सुरक्षित माहौल में बड़े कद के लोग उन मुद्दों पर बातें करे, जो मायने रखती है। वो सफाइयां दे जो सोशल मीडिया पर दिए जा सकें। इतिहास से भविष्य तक की सही तस्वीर पेश करें। तभी देश का माहौल बदलेगा, चौक चौराहों की बहस बदलेगी। आप मानिए न मानिये, अध्यक्षी से बड़ी उपयोगिता यही है। राष्ट्र की जरूरत वर्तमान में यही है।

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