कहीं फिर से प्राइड के चुनावी डीएनए में तो नहीं उलझ गये बिहारी?

प्रहरी संवाददाता/ मुजफ्फरपुर (बिहार)। मेरा गृह राज्य बिहार इन दिनों फिर से अपने प्राइड के मसले में उलझा नजर आ रहा है। मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक, हर जगह बिहार के प्राइड का सवाल जोर-शोर से उठ रहा है। नीतीश सरकार जो हाल के दिनों में कोरोना और बाढ़ के दोहरे संकट के बीच में अपनी विश्वसनीयता लगभग खो चुकी थी।

जिसके संसाधनों का टोटा पूरी तरह उजागर हो चुका था। इस बात में किसी को शुबहा नहीं रहा था कि वह किसी भी क्रिटिकल मसले को हैंडल करने में पूरी तरह सक्षम नहीं है, वह अब इस प्राइड की लड़ाई का नेतृत्व कर रही है। वह युवा पीढ़ी, वह मध्यम वर्ग जिसे इस सरकार पर रत्ती भर भरोसा नहीं बचा था, इस प्राइड की लड़ाई में वर्तमान सरकार के साथ खड़ी नजर आ रही है।

बिहारी प्राइड के प्रतीक बन चुके सुशांत सिंह राजपूत

हाल के समय तक सोशल मीडिया पर कोरोना संक्रमण (Coronavirus) के बढ़ते आंकड़े और अस्पतालों की बदहाली के वीडियोज वायरल हो रहे थे। टूट रहे तटबंधों और डूब रहे गांवों की तस्‍वीरें और बेघर हो रहे लोगों की व्यथा हमें संवेदनशील बना रही थीं। आज वहां इस बात के पल-पल के अपडेट्स हैं कि बिहार पुलिस किस तरह महाराष्ट्र में जाकर वहां की सरकार और वहां की व्यवस्था के विरुद्ध एक बिहारी युवा दिवंगत अभिनेता और अपनी मौत के बाद बिहारी प्राइड के प्रतीक बन चुके सुशांत सिंह राजपूत को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ रही है।

बिहार डीजीपी ने कही ये बात

बिहार के डीजीपी बयान दे रहे हैं कि जिस रोज हम सुबूत जुटा लेंगे, रिया चक्रवर्ती को जमीन खोद कर निकाल लेंगे। कल तक इन्‍हीं डीजीपी को नाकारा और मीडिया में बने रहने के लिए हथकंडे अपनाने वाला बताने वाले लोग आज उनके इस बयान पर लहालोट हो रहे हैं। कोई उनसे यह नहीं पूछ रहा कि आठ साल बाद भी मुजफ्फरपुर की नवारुणा का केस क्यों सॉल्व नहीं हो पाया?

उसके कातिलों को क्यों जमीन खोद कर नहीं निकाला गया? उस केस की इन्क्वायरी में तो डीजीपी खुद शामिल थे। जब सीबीआई के हाथ में मामला गया तो उसने वर्तमान डीजीपी से भी पूछताछ का समय मांगा है ऐसा क्यों? यह मान लें कि नवारुणा का केस एक जटिल मामला है। मगर जो बिहार पुलिस इस कोरोना काल में भी बढ़ते लूट, रेप और दूसरे अपराध पर काबू नहीं पा रही, वह मुम्बई में बिहारी प्राइड की रक्षा करने पहुंच गयी। वह हमें नायक सरीखी लगने लगी है।

खुद हमारे मुख्यमंत्री जो अब तक रोज कोरोना और बाढ़ के खतरे को कम करने के लिए निर्देश जारी कर रहे थे, वे अब बयान दे रहे हैं कि अगर सुशांत के पिता ने कहा तो वे सीबीआई जांच की सिफारिश करेंगे। बहुत मुमकिन है कि आने वाले बिहार विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बनकर सामने आ जाये और कामकाज में असफल साबित हो चुके सत्ताधारी दल इस मसले पर चुनावी बेड़ा पार कर जाये।

मुख्यमंत्री बिहारी प्राइड के जाने-माने खिलाड़ी हैं

दरअसल हमारे मुख्यमंत्री बिहारी प्राइड के जाने-माने खिलाड़ी रहे हैं। वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने इसी तरह बिहारी डीएनए का सवाल उठाया था। उनका आरोप था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के लोगों के डीएनए को खराब कहा है। वे इस बात को बिहारी प्राइड का सवाल बनाना चाह रहे थे। उन्होंने इसके लिए पूरे बिहार के लोगों के डीएनए सैंपल कलेक्ट करवाये थे और पीएम को भेजा था। उन्हें इस अभियान में सफलता भी मिली।

उनका गठबंधन चुनाव जीत भी गया। मगर हम सब जानते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महज दो साल बाद फिर से उसी व्यक्ति के साथ खड़े हुए, जिन्होंने कथित रूप से उनके और बिहार के डीएनए को खराब बताया था। यह उनका फेवरेट गेम है और इस चुनाव में वे संभवतः इसे फिर से खेल रहे हैं।इस बात के संकेत इस तरह मिलता हैं कि डिजिटल रैलियां कर रहे राजनेता अब लालू वर्सेज नीतीश काल का राग छोड़ कर सुशांत के मसले पर जनता को संबोधित करने लगे हैं। भागलपुर के सुल्तानगंज में एक स्थानीय नेता ने तो उनके नाम पर एक फिल्म सिटी बनाने की घोषणा तक कर डाली है।

हर किसी के लिए बिहारी प्राइड क्‍यों नहीं?

हालांकि बिहारी प्राइड के सवाल से मेरी कोई असहमति नहीं है। इस बात से मेरी असहमति जरूर हैं कि बिहारी प्राइड का सवाल हर बार एक सफल और बड़े व्यक्ति के साथ ही क्यों जुड़ता है? 12 साल पहले इसी महाराष्ट्र में चलती बस पर राहुल राज नामक बिहारी युवक का एनकाउंटर कर दिया गया था। हमने उसे न्याय दिलाने की कितनी कोशिशें कीं? उसी महाराष्ट्र और महाराष्ट्र ही नहीं असम में और दूसरे कई राज्यों में जब बिहार के लोगों के साथ बदतमीजी होती थी, तो वह बिहारी प्राइड का सवाल क्यों नहीं बनता था?

सवाल यह भी है कि बिहारियों के साथ बाहर हुए अन्याय, अपमान और दुर्व्यवहार ही क्यों हममें बिहारी प्राइड की भावना जगाते हैं। जब एक बिहारी अफसर एम्स की सीढ़ियों पर रात भर पड़ा रहता है, तो हमारा बिहारी प्राइड क्यों नहीं जागता? हमारा बिहारी प्राइड तब क्यों नहीं जागता, जब बशिष्ठ नारायण सिंह जैसे गणितज्ञ की लाश एंबुलेंस के इंतजार में पीएमसीएच के बाहर पड़ी रहती है? हर साल बाढ़ में डूबते और बेघर होते लोगों की बदहाली देखकर, चमकी बुखार से मरते बच्चों को देखकर, जल निकासी की व्यवस्था फेल होने की वजह से डूब जाती राजधानी की बदहाली को देखकर हमारा बिहारी प्राइड क्यों नहीं जागता? अपने ही राज्य के मजदूरों को पैदल हजारों किमी का रास्ता नापते देख, ट्रेनों में मरते देख हमारा प्राइड क्यों नहीं जागता?

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