राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द करने के खिलाफ सड़क पर उतरा माले

यह राहुल गांधी पर नहीं, देश के लोकतंत्र पर हमला है-माले 

ममता सिन्हा/तेनुघाट (बोकारो)। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद्द किए जाने के खिलाफ 26 मार्च को भाकपा-माले कार्यकर्त्ता गिरीडीह की सड़कों पर उतरकर केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की।

मोदी शासन में लोकतंत्र पर जारी हमलों की अगली कड़ी में राहुल गांधी की बीते दिनों आनन-फानन में लोकसभा सदस्यता से बर्खास्तगी के खिलाफ गिरिडीह शहर के टावर चौक पर आयोजित प्रतिरोध सभा में माले के कई वरिष्ठ नेता, पूर्व विधायक, कार्यकर्ता और नागरिक जुटे।

प्रतिरोध सभा को भाकपा-माले राज्य कमेटी सदस्य सह किसान महासभा के राज्य सचिव पूर्व एमएलए कॉमरेड राजकुमार यादव, पूरन महतो, सीताराम सिंह, पवन महतो, बिरनी प्रमुख रामू बैठा, राजेश सिन्हा, रामेश्वर चौधरी, पूनम महतो, मिना दास, जयंती चौधरी, किशोरी अग्रवाल, विजय पांडेय, अशोक पासवान, अखिलेश राज का नेतृत्व था। इनके साथ सैकड़ो माले नेता व् महिला नेत्री उपस्थित थे।

प्रतिरोध सभा में माले नेताओं ने कहा कि अडाणी घोटाले में घिरी मोदी सरकार के दबाव में राहुल गांधी की संसद सदस्यता खत्म की गई है। संसदीय परंपरा में यह पहली दफा है जब सत्ता पक्ष ही संसद नहीं चलने दे रहा है। वक्ताओं ने कहा कि संसद में विपक्ष अडाणी घोटाले की जेपीसी जांच की लगातार मांग उठा रहा है।

अडाणी को बचाने में लगी मोदी सरकार ने उलटे राहुल गांधी की सदस्यता ही खत्म करवा दी। यह देश के लोकतंत्र का मजाक है। नेताओं ने कहा कि बीते 23 मार्च को कथित मोदी मानहानि मामले में राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन सजा को 30 दिनों तक सस्पेंड रखा गया था। राहुल गांधी को उच्चतर न्यायालय में अपील का अधिकार दिया गया था।

कोर्ट की इस बात को खारिज करते हुए एक दिन बाद ही आनन-फानन में उनको लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया। इससे जाहिर होता है कि मोदी सरकार विपक्ष से कितनी भयभीत है। यह भारत के लोकतंत्र के लिए एक काला अध्याय है। भाजपा अपने राजनीतिक विरोधियों के दमन में न्यायालयों से लेकर ईडी-सीबीआई सबका दुरूपयोग कर रही है।

कहा गया कि देश में महंगाई-बेरोजगारी चरम पर है। रहिवासियों में गुस्सा है। देश के लोकतंत्र और आम जनों के जीवन पर जब-जब संकट आया है, झारखंड की धरती से प्रतिरोध की आंधी उठ खड़ी हुई है। एक बार फिर झारखंड देश के इस निरंकुश-फासीवादी शासन माॅडल को शिकस्त देगा और देश में लोकतंत्र की पुनर्बहाली का रास्ता खोलेगा।

वक्ताओं ने कहा कि समय की मांग है कि इस निरंकुश आपातकाल के खिलाफ पूरा विपक्ष अपनी मजबूत एकजुटता प्रदर्शित करे और साहस के साथ आगे बढ़े, ताकि देश के लोकतंत्र पर मंडराते अब तक के सबसे गंभीर खतरे का सफलतापूर्वक सामना कर सके।

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