लाखों पर्यटकों ने किया हरिहरक्षेत्र मेला के पुरातात्विक धरोहरों का दर्शन

अवध किशोर शर्मा/सारण (बिहार)। सारण जिला के हद में स्थित हरिहरक्षेत्र सोनपुर मेला के 32 दिनों की अवधि में लाखों पर्यटकों व तीर्थयात्रियों ने यहां के पुरातात्विक महत्व के धरोहरों का दर्शन किया। जिसमें इटली, बेल्जियम, नेपाल आदि के विदेशी पर्यटक भी शामिल हैं। इन पर्यटकों ने प्राचीन मठ व् मंदिरों और उनमें स्थापित मूर्तियों को अपने कैमरे में कैद भी किया। मठ तथा मंदिरों में पर्यटकों ने माथा भी टेका। तिलक- चंदन भी लगवाए।

पुरातात्विक धरोहर को एक नजर देखने के बाद देशी-विदेशी पर्यटकों को इस बात का एहसास हो रहा था कि प्रत्येक मायने में यह मेला अन्य मेलों की तुलना में अजूबा है। निश्चित रुप से पुरातत्व की दृष्टि से यह मेला काफी समृद्ध है। इसे बिहार के पुरातत्वविदों और इतिहासकारों ने भी माना है।

यहां के चप्पे-चप्पे में पुरातत्व के मोती बिखरे हुए हैं। नदी के किनारे खाक चौक ठाकुरबाड़ी में लाल बलुआही पत्थर से निर्मित रेलिंग स्टोन है, जिसे पुरातत्वविदों ने शुंगकालीन वेदिका स्तंभ का खंडित भाग बताया है। जिसके कारण पर्यटकों के लिए यह मठ आकर्षण का केंद्र बना रहा।

च्यवन कुंड के दक्षिणी किनारे आपरुपी गौरी-शंकर मंदिर परिसर में पक्षीराज गरुड़ पर आसीन भगवान विष्णु की प्राचीन मूर्ति है, जो गुप्तकालीन काले बेसाल्ट पत्थर से निर्मित है। इनके वाम भाग में शिवलिंग धारण किये 6-7 वीं सदी की चतुर्भुजी पार्वती की प्रतिमा है। उनके दायें भाग में विघ्नहर्ता श्रीगणेश की प्रतिमा है।

पुरातत्व निदेशालय बिहार ने इस धरोहर को वर्ष 2000 के सोनपुर मेले में भी प्रदर्शित किया था। इसके अतिरिक्त एक फीट की सैंड स्टोन से निर्मित गज-ग्राह युद्ध की लघु प्रतिमा को भी प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया था।

इसी मंदिर समूह प्रांगण में गौरी शंकर की काम विजय मुद्रा की मूर्ति पालकालीन है। पुरातत्वविद् डॉ चितरंजन प्रसाद सिन्हा की माने तो सोनपुर मेला क्षेत्र की अधिकांश मूर्तियां पालकालीन 9-10वीं शताब्दी की है। निकट ही नदी किनारे बैजलपुर स्थित जड़भरत आश्रम में भगवान श्रीविष्णु का शीर्ष भाग मिला, जिसे पहले भ्रमवश स्थानीय रहिवासी राजा रहुगण मानते थे। यह स्थान भी तपोभूमि होने के कारण देशी पर्यटकों की पसंद में शामिल रहा।

हरिहरक्षेत्र तीर्थ की महिमा को स्थापित करने वाला बाबा हरिहरनाथ मंदिर में स्थापित श्रीहरि विष्णु की खड़ी प्रतिमा गुप्तकालीन है, जबकि सामने स्थित शिवलिंग मोटे ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित है। शेषनाग नवनिर्मित है। मेला अवधि में सबसे ज्यादा देशी, विदेशी पर्यटकों ने इसी मंदिर का अवलोकन किया।

काली मंदिर प्रांगण में एक प्रस्तर खंड मौजूद है, जिसे मकर तथा मछली के प्रस्तर का खंडित भाग बताया गया है। जिस पर कभी गंगा की मूर्ति स्थापित थी। पर्यटक उसके बारे में भी जानकारी हासिल करते दिखे। यह पाल कालीन है। काली घाट की सार्थकता को सिद्ध करने वाली काली मंदिर में दक्षिणमुखी काली की मूर्ति व शिवलिंग सातवीं सदी की है, जबकि मंदिर बंगला आर्ट का सुंदर नमूना है।

इस मंदिर में भी पर्यटकों ने परिभ्रमण किया। राधा-कृष्ण मंदिर से प्राप्त प्राचीन क्षतिग्रस्त डोर फ्रेम पुरातात्विक दृष्टिकोण से आठवी-नौवीं शताब्दी की है जिस पर शिव, कमल पुष्प एवं सूर्य आदि का चित्र अंकित है। यह वर्तमान में हरिहरनाथ मंदिर के संग्रहालय में सुरक्षित है।

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