भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के जन नायक थे किशोरी प्रसन्न सिंह

गंगोत्री प्रसाद सिंह/हाजीपुर (वैशाली)। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के जन नायक किशोरी प्रसन्न सिंह का जन्म 12 फरवरी 1903 को शिवरात्री के दिन वैशाली जिला (Vaishali district) के हद में लालगंज अंचल के ग्राम जगोडीह पौरा के बाबन डीहा मूल के एक सामान्य किसान परिवार में हुआ था।

जन्म के एक वर्ष बाद उनकी माताजी का निधन हो गया। उनके निधन के बाद उनका लालन पालन पातेपुर के गांव बलिगांव में अपने फुआ के पास हुआ।

बचपन से हीं मेघावी किशोरी बाबू जब सन 1920 में जीए स्कूल हाजीपुर के वर्ग दशम के छात्र थे। तब स्कूल के हेडमास्टर पण्डित जयनन्दन झा थे। वर्ष 1919 में जलियांवाला बाग कांड के बाद देश में अंग्रेजो के प्रति नफरत फैल गई। पण्डित जयनन्दन झा गान्धीजी से काफी प्रभावित थे।

अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई के उद्देश्य से उन्होंने हाजीपुर में स्वतन्त्रता सत्याग्रहियों के संगठन की शुरुआत की। वर्तमान हाजीपुर का गांधी आश्रम पहले आम बॉस के जंगलात थे। यह जमीन पोहियर स्टेट की थी। जिसे पण्डित जयनन्दन झा ने दान मांग लिया और एक आश्रम की स्थापना की।

वर्ष 1920 में महात्मा गांधी चंपारण जाने के क्रम में हाजीपुर गांधी आश्रम 7 दिसम्बर 1920 को आये और आश्रम का शुभारंभ किया। महात्मा गांधी से प्रभावित होकर बहुत से युवा गांधी आश्रम से जुड़ गए। गांधीजी से प्रभावित होकर किशोरी बाबू पढ़ाई छोड़कर देश की आजादी के आंदोलन में कूद पड़े।

आश्रम में अक्षयवट राय, राम देनी शर्मा, बसावन सिंह, वासुदेव खलीफा जैसे देशभक्त इनके साथी बने। सन 1922 में कांग्रेस के गया अधिवेशन में किशोरी बाबू ने भाग लिया, जहाँ उनका सम्पर्क नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से हुआ और किशोरी बाबू कलकत्ता चले आये।

किशोरी बाबू फुटबॉल (Football) के अच्छे खिलाड़ी थे। वे कलकत्ता के मोहन बगान से जुड़े। 1929 में ओलम्पिक में भाग लेने के लिये हुई दौड़ प्रतियोगिता (Race Competition) के फाइनल में अंग्रेज धावक को पछाड़ कर प्रथम स्थान प्राप्त किया, लेकिन अंग्रेजो ने इन्हें ओलम्पिक में आगे भाग लेने की अनुमति नही दी।

किशोरी बाबू स्वतन्त्रता आंदोलन में कांग्रेस पार्टी (Congress Party) से जुड़े। उन्होंने कांग्रेस के 1927 में मद्रास, 1928 में कलकत्ता, 1929 में लाहौर अधिवेशन में भाग लिया। तब किशोरी बाबू बिहार कांग्रेस सेवा दल के एक प्रमुख स्तम्भ थे। इस दौरान किशोरी बाबू कई बार जेल भी गए।

सन 1930 में गांधीजी के आह्वान पर सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान जिले के स्वतन्त्रता सेनानियो ने किशोरी बाबू के नेतृत्व में गांधी आश्रम में एकत्रित होकर नमक सत्याग्रह का आयोजन किया। आयोजन में सत्याग्रहियों की बडी संख्या को देख कर अंग्रेजों की पुलिस कार्यवाई करने से हट गई। उस अवसर पर सत्याग्रहियो की ली गई तस्वीर आज भी आंदोलन की याद दिलाती है।

किशोरी बाबू की शादी मुजफ्फरपुर जिले के महमदपुर गांव के राम उदार सिंह की पुत्री सुनीति देवी के साथ हुई। सुनीति देवी किशोरी बाबू के राष्ट्र प्रेम से ज्यादा प्रभावित थी। उन्होंने गृहस्थ जीवन के बजाय किशोरी बाबू के आंदोलन में साथ देने का फैसला किया।
जिले की प्रथम महिला क्रांतिकारी जिसे लोग झांसी की रानी के नाम से पुकारते थे।

सुनीति देवी साइकिल चलाने के साथ अच्छी घोड़ सवार भी थी। वे पुरुषो के समान पैजामा कुर्ता पहनती थी। जिले का गाँधी अश्रम औऱ गोरौल का सोन्धो आश्रम स्वतन्त्रता आंदोलन के गर्म दल और नरम दल दोनो का केंद्र था।

किशोरी बाबू क्रांतिकारियों के दल के मुखिया भी थे, जिनमें योगेन्द्र शक्ल, बैकुंठ शुक्ल, चन्द्रमा सिंह, अक्षयवट राय, रामचन्द्र शर्मा इत्यादि क्रांतिवीर जुड़े हुए थे। सुनीति देवी और बैकुंठ शुक्ल की पत्नी राधिका देवी महिला क्रांतिकारी दल की सदस्य थी। जिनका काम क्रांतिवीरों के पास संवाद और हथियार पहुंचाना था।

हाजीपुर के क्रांतिकारियों के सम्बंध चन्द्रशेखर आजाद और भगत सिंह के क्रांतिकारी संगठनों के साथ था। कहा जाता है कि सुनीति देवी कई एक वार घोड़े पर सवार हो बनारस और कानपुर तक की यात्रा की। लाहौर षड्यंत्र केश में भगत सिंह और उनके साथियों को गद्दार फणीन्द्र नाथ घोष ने पकड़वा दिया और अंग्रेज सरकार से इनाम और सुरक्षा पाकर चैन से बेतिया में रहने लगा।

हाजीपुर में जब गद्दार फणीन्द्र घोष के हत्या को अंजाम देने के लिये क्रांतिकारियों की टोली तैयार हो रही थी, तब सुनीति देवी ने बैकुंठ शुक्ल के साथ बेतिया जाने की जिद की। इस वजह से बैकुण्ठ शुक्ल के साथी का फैसला लॉटरी से चन्द्रमा सिंह के पक्ष में आया। आज हम इस वीरांगना को भूल चुके हैं।

सन 1935 में स्वामी सहजानन्द सरस्वती द्वारा गाजीपुर में आयोजित किसान आंदोलन में भाग लेने के बाद किशोरी बाबू किसान आंदोलन से जुड़ गए। 1938 में सोनपुर में आयोजित समर स्कूल ऑफ पॉलिटिक्स कैम्प में किशोरी बाबू ने भाग लिया, जिसमें राहुल सन्कृत्यायान, आचार्य नरेंद्र देव, ई एम एस नम्बूदरीपाद डांगे के संम्पर्क के बाद किशोरी बाबू की विचार धारा में परिवर्तन हुआ और वे साम्यवादी पार्टी से जुड़ गए।

आजादी के बाद किशोरी बाबू किसान और मजदूरों के हित के लिये संघर्ष करते रहे। सन 1967 में हाजीपुर विधान सभा से एक बार विधायक चुने गए। 18 जून 1984 को उनका निधन हो गया।

हाजीपुर के पूर्वी दिघी में सनचिरैया पोखर के पास इनका आश्रम है जो अभी वीरान पड़ा हुआ है। जो कम्युनिस्ट दल का अब कार्यालय है। जिसकी देखभाल अमृत गिरि कर रहे हैं। आज इस महा मानव को उनकी 119वीं जयन्ति पर शत शत नमन।

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